किसानों के नाम पर राजनीति लेकिन लड़ाई में साथ नहीं

Ashwani NigamAshwani Nigam   18 Jun 2017 12:27 AM GMT

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किसानों के नाम पर राजनीति लेकिन लड़ाई में साथ नहींदेशभर में चल रहा किसान आंदोलन।

लखनऊ। अपनी मांगों को लेकर आज देशभर का किसान सड़कों पर हैं। मध्यप्रदेश से शुरू हुआ किसान आंदोलन अब तक कई राज्यों में फैल चुका है, मगर राजनीतिक दलों के किसान संगठन किसानों की हक की लड़ाई में साथ खड़े दिखाई नहीं देते।

''जहां बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां किसान पीड़ित हैं, बीजेपी सरकार किसानों को उनकी लागत का पूरा मूल्य दिला रही है। बीजेपी राज में कोई भी किसान आत्महत्या नहीं करता है।'' भारतीय जनता पार्टी के फ्रंटल संगठन भारतीय किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह मस्त ने कुछ दिन पहले यह बयान दिया था, लेकिन भाजपा शासित मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में चल रहे किसान आंदोलन पर चुप हैं।

अब क्या कहा- हमारी सरकार ने तीन सालों में किसानों के लिए बहुत सारे काम किए हैं। अभी किसानों को कुछ लोग गुमराह करके आंदोलन करा रहे हैं। किसानों के मुददें को लेकर हमने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। किसानों को लेकर काम कर रहे हैं। इसके अलावा मैं अभी किसानों आंदोनल के मुद्दे पर कुछ नहीं कह सकता।
वीरेन्द्र सिंह मस्त, भारतीय किसान मोर्चा के अध्यक्ष सह भदोही से बीजेपी सांसद

किसानों की समस्याओं पर गैर राजनीतिक किसान संगठन के नेतृत्व में आंदोलन होना यह दिखाता है कि सभी पार्टियों के अंदर बनाए गए किसानसंगठन कहीं न कहीं कमजोर हो रहे हैं।
सत्यदेव त्रिपाठी, मुख्य प्रवक्ता, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के नेता वीएम सिंह कहते हैं,”राजनीतिक दलों के किसान संगठन सिर्फ दिखावे के लिए बनाए जाते हैं। इसके पदाधिकारी की नियुक्ति से लेकर निर्णय में राजनीतिक दलों की ही चलती है। ऐसे में यह लोग किसानों के साथ कभी खड़े नहीं होते हैं। इसी का नतीजा है कि आज देशभर के सैकड़ों गैर राजनीतिक किसान संगठनों का एकजुट होकर सरकार और सत्ताधारी दलों पर किसानों के मुद्दों को लेकरदबाव बनाना पड़ रहा है।“

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पिछले एक दशक में पहली बार अपनी उपज की उचित लाभ और कर्ज माफी की मांग को लेकर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से जून के पहले सप्ताह में शुरू हुआ किसान आंदोलन अभी जारी है, लेकिन राजनीतिक दलों के किसान संगठन चुप हैं। किसानों को यह आंदोलन गैर राजनीतिक किसान संगठनों के नेतृत्व में चल रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि चुनाव के समय किसानों का वोट हासिल करने के लिए बनाए गए किसान संगठन किसानों के इन आंदोलन से मुंह क्यों चुरा रहे हैं।

वाम दलों के अलावा अधिकतर राजनीतिक दलों में जो किसान संगठन बनाए गए हैं, उनका उपयोग सिर्फ चुनाव में किसानों को वोट लेने के लिए है।किसानों के मुद्दे पर यह संगठन अपनी पार्टी और सरकार पर दबाव नहीं बना पाते हैं।
अतुल अंजान, राष्ट्रीय सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

केंद्र सहित देश के कई बड़े राज्यों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पास भारतीय किसान मोर्चा नामक बड़ा किसान संगठन है, लेकिन वर्तमान में किसानों के चल रहे आंदोलन में यह संगठन नहीं दिख रहा है। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का हाल यह है कि उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में कांग्रेस किसान संगठन का गठन ही नहीं कया गया है।

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेन्द्र मल्लिक कहते हैं, “सिर्फ सरकारों के एजेंड में ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों के संगठनों में भीकिसानों को अहमियत नहीं मिलती है। सिर्फ दिखावे के लिए संगठन बना लिए जाते हैं।''

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उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता और पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी से जब किसानों की समस्याओं को लेकर राजनीतिक दलों से जुड़े किसानसंगठनों की भूमिका पर सवाल किया गया तो उनका जवाब था, “किसानों की समस्याओं पर गैर राजनीतिक किसान संगठन के नेतृत्व में आंदोलनहोना यह दिखाता है कि सभी पार्टियों के अंदर बनाए गए किसान संगठन कहीं न कहीं कमजोर हो रहे हैं।''

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और देश के सबसे पुराने किसान संगठन अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अतुल अंजानबताते हैं, ''वाम दलों के अलावा अधिकतर राजनीतिक दलों में जो किसान संगठन बनाए गए हैं, उनका उपयोग सिर्फ चुनाव में किसानों को वोट लेनेके लिए है। किसानों के मुद्दे पर यह संगठन अपनी पार्टी और सरकार पर दबाव नहीं बना पाते हैं।'' उन्होंने बताया कि विभिन्न राज्यों में चल रहाकिसान आंदोलन सत्तारूढ़ दलों के किसान संगठनों की पोल खोल रहा है।

देश में किसानों के मुद्दे को आवाज देने के लिए भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने वर्ष 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया था। इसके बाद देश के विभिन्न समाजवादी संगठनों ने मिलकर हिंद किसान पंचायत और विभिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों ने मिलकर संयुक्त किसान सभा बनाई,लेकिन किसानों का प्रभाव केन्द्र की राजनीति में 1977 के लोकसभा चुनाव के बाद जनता पार्टी की सरकार बनने पर पड़ा। इस चुनाव में किसान सम्मेलन और किसान रैली आयोजित करके चौधरी चरण सिंह ने किसानों को संगठित करने का प्रयास किया। किसानों के इस बढ़ते कद की वजह से जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने चौधरी चरण सिंह को उप प्रधानमंत्री बनाया। इसके बाद उत्तर प्रदेश में किसान महेन्द्रसिंह टिकैत के नेतृत्व में 1988 में भारतीय किसान यूनियन का गठन हुआ।

गैर राजनीतिक तौर पर इस संगठन ने किसानों को बहुत ताकत दी और नई दिल्ली के इंडिया गेट के बोट क्लब पर लाखों किसानों को इकट्ठा करके अपनी ताकत दिखाई। इसके बाद महाराष्ट्र के किसान नेता शरत जोशी ने शेतकारी संगठन बनाकर किसानों का एकजुट किया।

भारतीय किसान यूनियन और शेतकारी संगठन को मिलाकर 14 जुलाई 1989 को किसानों की एक अखिल भारतीय संस्था भारतीय किसान संघ बनाने की कोशिश हुई, लेकिन दोनों नेताओं की टकराव की वजह से यह परवान नहीं चढ़ पाया। इसके बाद अपनी सांगठिक कमजोरियों के चलते किसान संगठन हाशिए पर चलते गए। इसके बाद देश के सभी प्रमुख पार्टियों ने अपने राजनीतिक संगठन में किसान संगठन बनाया, लेकिन यह संगठन भी सिर्फ किसानों के नाम पर कुछ नहीं करते।

राजनीतिक दलों के किसान संगठन सिर्फ दिखावे के लिए बनाए जाते हैं। इसी का नतीजा है कि आज देशभर के सैकड़ों गैर राजनीतिक किसानसंगठनों का एकजुट होकर सरकार और सत्ताधारी दलों पर किसानों के मुद्दों को लेकर दबाव बनाना पड़ रहा है।
वीएम सिंह, नेता, राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन

      

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