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ज्वार-बाजरा जैसे मोटे अनाज से भी बना सकते हैं पॉपकॉर्न जैसे कई उत्पाद

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राजेंद्र नगर(हैदराबाद)। अगर आने वाले समय में मूवी देखते समय मल्टीप्लेक्स में आपको ज्वार या फिर बाजरे से बने पॉपकॉर्न जैसे प्रोडक्ट मिले तो हैरान मत होइएगा, क्योंकि भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान ऐसे कई उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है।

तेलंगाना स्थित कदन्न भारतीय अनुसंधान संस्थान लगातार मोटे अनाज से ऐसे उत्पाद बनाने की कोशिश कर रहा है, जिससे लोगों का ध्यान इनकी तरफ जाए। भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. संगप्पा बताते हैं, “हम किसानों को एक बार फिर ज्वार, बाजरा, रागी जैसे मोटे अनाजों की खेती की तरफ ले जा रहे हैं। इनसे चावल, गेहूं से बहुत पोषण मिलता है। इसके लिए हम लोगों को इनके उत्पाद बनाने का भी प्रशिक्षण दे रहे हैं।

वो आगे बताते हैं, “अभी तक सिर्फ मक्के का पॉपकॉर्न मिलता था, लेकिन हमने ज्वार, बाजरा, से न सिर्फ पॉपकॉर्न बनाया, साथ ही सावां, कोदो, कुटकी, जैसे मोटे अनाजों से भी बिस्किट, सेवई, फ्लेक्स जैसे कई उत्पाद बनाए हैं। अभी तक गेहूं के आटे से बना पास्ता ही मार्केट में मिलता था, अब हमने बाजरे का पास्ता बनाया है। हमारे यहां मोटे अनाज से 60 से ज्यादा प्रोडक्ट बनाए गए हैं। हम इसकी पूरी ट्रेनिंग भी किसानों को भी देते हैं।”

भारतीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, “देश में सन 1966 के करीब 4.5 करोड़ हेक्टेयर में मोटा अनाज की खेती हुआ करती थी, अब के समय में रकबा घटा हैं जो ढाई करोड़ हेक्टेयर के करीब है। खरीफ के सीजन में शेष 27 प्रतिशत मोटे अनाज उत्पादन में मक्का (15%), बाजरा (8%), ज्वार (2.5%) और रागी (1.5%) शामिल हैं।

रागी में चावल के मुकाबले 30 गुणा ज्यादा कैल्शियम होता है और बाकी अनाज की किस्मों में कम से कम दोगुना कैल्शियम रहता है। काकुन और कुटकी (कोदो) जैसी उपज में आयरन की मात्रा बहुत होती है। इन अनाजों की पौष्टिकता को देखते हुए इन अनाजों को मोटे अनाज की जगह पोषक अनाज के नाम से संबोधित करना ज्यादा उचित रहेगा।

“उत्तर भारत में खासकर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश में किसान बड़ी मात्रा में मोटे अनाज की खेती करते हैं, क्योंकि इसमें पानी की कम जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या मार्केटिंग की आती है, इसलिए किसान इसमें वैल्यू एडिशन करके इसे मार्केट में आसानी से बेच सकते हैं। आज जो मोटे अनाज हैं जैसे रागी, सावां, कोदो, इनको खाने से हमें पोषण मिलता है, “डॉ. संगप्पा ने आगे बताया।

मोटे अनाज की प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग के लिए यहां करें सपंर्क

डॉ. विलास ए टोनापी

भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान

राजेंद्र नगर, हैदाराबाद, तेलंगाना

ईमेल : millets.icar@nic.in, director.millets@icar.gov.in

फोन : +91 – 040 – 2459 9301

डॉ. रवि कुमार फोन: 040-24599379

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