आलू के साथ कद्दू की सहफसली खेती करके कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा
Virendra Singh 22 Oct 2018 7:13 AM GMT
आलू नगदी फसल है, 90 से 100 दिन में पैसा मिल जाता है। लेकिन कई बार इसमें नुकसान भी हो जाता है। ऐसे में जो किसान आलू के साथ सहफसली खेती करते हैं उनके लिए मुनाफे की गुंजाइश ज्यादा हो जाती है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हजारों किसान आलू के साथ कद्दू की खेती करते हैं। इससे आलू की लागत में कद्दू की फसल तैयार हो जाती है, जो उन्हें दोहरा मुनाफा देकर जाती है।
बाराबंकी में बेलहरा कस्बे को सब्जियों की बेल्ट कहा जाना लगे हैं। आलू, कद्दू, लौकी, हरी मिर्च, लहसुन और गोभी की यहां बड़े पैमाने पर खेती होती है। बेलहरा निवासी किसान श्रीचंद मौर्य 55 वर्षीय बताते हैं हमारे यहां लगभग 50 एकड़ क्षेत्रफल से भी ज्यादा एरिया में इस बार किसानों ने आलू के साथ कद्दू की सहफसली खेती की और अच्छा मुनाफा भी हम लोग पा रहे हैं। आलू के साथ कद्दू की सहफसली खेती करना बिल्कुल आसान है और इसमें लागत भी बहुत कम आती है। देखिए वीडियो
जब हम लोग अपने खेतों में आलू की बुवाई करते हैं तो आलू की 10 से 12 नालियों के बाद एक पंक्ति कद्दू की बो देते हैं। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 12 से 14 फिट होती हैं और पौधे से पौधे की दूरी 15 इंच रखी जाती है। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जिस पंक्ति में कद्दू बोया जाता है उसमें नाली नहीं बनाई जाती है।
मार्च माह में लगभग आलू खुद जाता है और फिर कद्दू की पंक्ति के दोनों तरफ मेड़ बनाकर उसमें आवश्यकतानुसार डीएपी खाद डालकर निराई के बाद नालों में पानी लगा दिया जाता है और अगले पानी मे यूरिया और सूक्ष्म तत्व डाल देते हैं। जिससे पौधे का विकास तेजी से होता है और अप्रैल के पहले हफ्ते से ही कद्दू का उत्पादन शुरू हो जाता है।
वहीं आलू के साथ कद्दू की सहफसली खेती करने वाले किसान जाहिद खान कहते हैं इस बार हमने 3 एकड़ खेत में आलू के साथ कद्दू की सहफसली खेती की है। आलू के साथ में कद्दू की सहफसली खेती में लागत बहुत कम आती है। यह लागत कम इसलिए भी हो जाती हैं क्योंकि आलू एक ऐसी फसल है जिसमें पर्याप्त मात्रा में खाद डाली जाती है। जिससे जब तक आलू खुदता नहीं है तब तक कद्दू में कोई खास खाद पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती है। आलू खुद जाने के बाद ही कद्दू में खाद का इस्तेमाल होता है।
कद्दू की खेती करने वाले कैलाश चंद्र मौर्य बताते हैं कि हम लोग कद्दू के देसी बीज ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। कुछ किसानों को छोड़कर हमारे एरिया में ज्यादातर किसान कद्दू के देसी बीजों पर ही विश्वास करते हैं। एक एकड़ कद्दू की फसल में लगभग 60 से 70 कुंटल तक कद्दू का उत्पादन हो जाता है। इस वक्त कद्दू लोकल बाजारों में 700 से 800 रुपया कुंटल तक बिक रहा है और अगर यह रेट इसी तरह बना रहा तो हमें अच्छी आय होने की उम्मीद है।
कृषि विशेषज्ञ सिद्धार्थ मिश्र बताते हैं कद्दू की फसल में रेड पंपकिन बीटल नामक कीट लगता है उसकी रोकथाम करनी पड़ती है साथ ही साथ फल आने की अवस्था मे फल मक्खी ( फ्रूट फ्लाई ) का भी प्रकोप होता है। जिससे फल सड़ने लगते हैं और फसल का उत्पादन कम हो जाता है।
साथ ही माहू की रोकथाम के लिए थायोडॉन नामक कीटनाशक का उपयोग करना चाहिए। कद्दू की फसल मे फफूंद जनित चूर्णिल आसिता रोग का भी प्रकोप होता है जिसकी रोकथाम के लिये 0.1 प्रतिशत मेंकोज़ेब का प्रयोग करना चाहिए। कद्दू की खेती से खेत की उर्वरा शक्ति बनी रहती है क्योंकि इनके पौधों को खेत में मिलाने पर कार्बनिक जीवांश बढ़ता है।
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