आलू की खेती करने उतरीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां

Ashwani NigamAshwani Nigam   3 Nov 2016 5:49 PM GMT

आलू की खेती करने उतरीं बहुराष्ट्रीय कंपनियांफोटो: शुभम श्रीवास्तव

लखनऊ। स्नैक्स के लिए आलू चिप्स की बढ़ती खपत को देखते हुए सॉफ्ट ड्रिंक्स बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां आलू की खेती में भी उतर रही हैं। उत्तर प्रदेश के सीतापुर, लखीमपुरखीरी, उन्नाव, कानपुर देहात से लेकर मेरठ और पूर्वांचल में चिप्स बनाने के लिए काम आने वाले आलू की चिप्सोना प्रजातियों की खेतों में बुवाई का काम शुरू चुका है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां सीधे नहीं बल्कि किसानों के माध्यम से चिप्स बनाने वाले आलू की प्रजातियों को खेतों में बढ़ावा दे रही हैं। इससे एक तरफ जहां कंपनियों को अपनी पसंद का आलू सीधे मिल जाता है वहीं दूसरी तरफ किसानों को आलू का उचित मूल्य मिलने से उनका मुनाफा भी हो रहा है। चिप्सोना आलू के प्रति किसानों के बढ़ते रुझान के कारण इस साल चिप्सोना आलू का रकबा पिछले साल के मुकाबले दोगुना होने की संभावना है।

चिप्सोना आलू के प्रति किसानों के बढ़ते रुझान के कारण रकबा दोगुना होने की उम्मीद

सीतापुर जिले के गोपालुर के गाँव के नंदू तिवारी ने इस सीजन में 25 एकड़ में कुफरी चिप्सोना-3 आलू की बुवाई की है। पिछले सात साल से चिप्सोना आलू की खेती कर रहे तिवारी कहते हैं कि इस आलू की खेती करने से सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे आलू के रेट में चाहे जितना उतार-चढ़ाव रहे किसानों को आलू की पैदावार का उचित मूल्य मिल जाता है। उनका कहना है कि चिप्सोना आलू की बुवाई के समय ही पेप्सिको और दूसरी बड़ी कंपनियां किसानों के साथ आलू के खेत का करार कर लेती हैं। ऐसे में आलू तैयार होने के बाद खेत से ही वह आलू को खरीद लेती हैं। इससे किसानों को मंडी ले जाकर आलू बेचने की परेशानी से मुक्ति मिल जाती है।

110 दिन में तैयार हो जाता है आलू

चिप्सोना प्रजाति के आलू की खासियत यह है कि यह 110 दिन में तैयार हो जाता है। इस आलू में रोग लगने की संभावाना भी कम होती है। साथ ही एक हेक्टेयर में 25 से लेकर 30 टन तक इसकी पैदावार होती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जुड़े आलू के विशेषज्ञ समय-समय पर चिप्सोना आलू के खेत का निरीक्षण भी करते हैं। किसानों को खाद और पानी की सहायता भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से मिलती है। इससे किसान कई सारी परेशानियों से बच जाता है।

किसानों को मिलते हैं उचित दाम

सीतापुर के कौशलेंद्र मौर्य भी पिछले दो साल से चिप्सोना आलू की खेती बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ मिलकर कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस साल 20 एकड़ में कुफरी चिप्सोना-3 की आलू की बुवाई दो दिन पहले की है। उनका कहना है कि आलू की खेती करने में किसानों को सबसे ज्यादा परेशानी आलू पैदा होने के बाद उचित दाम नहीं मिलने को लेकर होती है। आलू जब तैयार होता है तो बाजार में उसकी कीमत बहुत कम होती है जिसका फायदा उठाकर आढ़तिए औने-पौने दामों में खरीद लेते हैं। इससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से अब किसानों को आलू का उचित दाम मिल रहा है।

केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने चिप्स के लिए विकसित की प्रजातियां

चिप्स के लिए आलू की बढ़ती मांग को देखते हुए केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने चिप्स के लिए कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-2 और कुफरी चिप्सोना-3 नामक किस्मों को विससित किया है। केन्द्रीय आलू अनुसंधान सस्थान शिमला के निदेशक डॉ. एसके चक्रवर्ती ने बताया कि भारत में आलू का उपयोग व्यापक पैमाने पर ताजे आलू की खपत के रूप में किया जाता है। आलू की खुदाई करके जो आलू मिलता है उसमें 68.5 प्रतिशत घरेलू खपत में चला जाता है। जबकि जो विकसित देश है वहां पर आलू की घरेलू उपयोगिता मात्र 31 प्रतिशत है। जबकि शेष आलू को चिप्स और ब्रेवरेज में किया जाता है। खासकर चिप्स में तो कुल आलू उत्पादन का 12 प्रतिशत होता है।

उन्होंने बताया कि भारत में आलू का प्रसंस्करण 1990 तक प्रचलन में नहीं था लेकिन अब देशी और बहुराष्ट्रीय कंपनियां आलू प्रोसेसिंग में तेजी से आगे आ रही हैं। देश में उत्पादन होने वाले कुल आलू का 7.5 प्रतिशत आलू का प्रसंस्करण किया जा रहा है। आलू की मांग में आने वाले 40 वर्षों में काफी वृद्धि की संभावना है। साल 2050 तक आलू प्रोसेसिंग उद्योग के लिए 25 मिलियन टन आलू की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में जरूर इस बात कि चिप्स और दूसरे उत्पाद के लिए जिस आलू की जरूरत है उसे किसान उगाएं। उनका कहना है कि आने वाले दिनों बहुत सारी कंपनियां आलू के उत्पादन में आगे आ सकती हैं।

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