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पीपीवीएफआर के माध्यम से अमरूद की नई किस्म का रजिस्ट्रेशन कराने वाले पहले किसान बने रामविलास

पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के माध्यम से रजिस्ट्रेशन कराने के बाद किसान के पास उसके सारे अधिकार सुरक्षित रहते हैं।
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पंद्रह साल की मेहनत के बाद अमरूद की नई किस्म ‘जी-विलास पसंद’ विकसित करने वाले किसान रामविलास मौर्या पीपीवी एफआर के माध्यम से अमरूद की किस्म का पंजीकरण कराने वाले पहले किसान बन गए हैं।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में मलिहाबाद के किसान रामविलास की राह इतनी आसान नहीं थी, रामविलास मौर्या ने जी-विलास पसंद नाम की अमरूद की एक किस्म विकसित की और उनके 15 वर्ष के अथक परिश्रम से इसे लोकप्रिय बनाने में भी सफलता मिली। जल्द ही ये किस्म किसानों के बीच लोकप्रिय भी हो गई। लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही इस किस्म की मांग भी बढ़ गई और उन्होंने लाखों पौधे बनाकर कई राज्यों में भेजे।

लेकिन किस्म की लोकप्रियता बढ़ने के बाद अनधिकृत रूप से पौधे बनाने वालों की संख्या भी बढ़ गई और जो फायदा उन्हें मिलना था उसको दूसरी नर्सरियों ने पौधे बना कर लेना शुरू कर दिया। इस प्रकार से हो रहे आर्थिक नुकसान के कारण रामविलास ने अपनी किस्म के पौधे बनाने के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए कई संस्थान और एजेंसियों से संपर्क किया। आखिर में में परेशान होकर उन्होंने केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान मैं इस बताया कि कैसे उनकी अमरूद की किस्म को सुरक्षित किया जा सकता है।

राम विलास कहते हैं, “ज्यादातर लोगों ने इस किस्म को पेटेंट कराने की सलाह दी, लेकिन केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान में जाने के बाद पता चला कि भारत में पौधों की किस्मों के पेटेंट का कानून नहीं है। ऐसे में संस्थान के निदेशक सलाह दी कि किस्म को पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवी और एफआर) से पंजीकृत किया जा सकता है। इस पंजीकरण से इस किस्म के कानूनी अधिकार मिल सकेंगे।”

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ शैलेंद्र राजन कहते हैं, “नई किस्म के विकास काफी समय और प्रयास की आवश्यकता पड़ती है और अधिकतर किस्म विकसित करने वाले प्रजनक उससे मिलने वाले लाभ से वंचित रह जाते हैं। किसान ने अमरूद की नई किस्म निकालने में काफी योगदान दिया है। इसलिए उन्हें भी पौध प्रजनक के भांति अधिकार मिलने चाहिए। यह अधिकार पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवी एण्ड एफआरए) नामक भारत सरकार की संस्था द्वारा प्रदत्त किये जाते हैं। इन अधिकारों को देने का उद्देश्य नई-नई किस्मों के विकास के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना है। भारत वर्ष ही एक ऐसा देश है जहां किसानों को पादप प्रजनक के अधिकार प्राप्त हैं।”

केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ को प्राधिकरण द्वारा अमरूद की किस्मों के पंजीकरण के लिए डस परीक्षण करने के लिए अधिकृत किया है। डॉ शैलेन्द्र राजन आगे बताते हैं, “अमरूद की कई किस्में पंजीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहीं हैं और विलास पंसद किस्म को पहली अमरूद की किसान किस्म के रूप में पंजीकृत होने का अवसर मिला। इस प्रकार से पौधों के किस्म के पंजीकरण से किस्मों को सुरक्षित करने का अवसर प्राप्त होगा क्योंकि देश में इनके पेटेंट का अधिकार नहीं दिया जाता है।”

किसान रामविलास ने संस्थान द्वारा विकसित वेज ग्राफिटंग तकनीकी को अपानाकर लाखों की संख्या में पौधे बनाये। इन पौधों को उन्होंने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान के किसानों को प्रदान किया। किस्म के उत्साहजनक मांग के कारण कई नर्सरियों ने अनाधिकृत रूप से पौधे बनाने प्रारम्भ कर दिये। संस्थान के सहयोग से प्राधिकरण द्वारा प्रदत्त किस्म पर अधिकार का उपयोग करके मौर्या अनाधिकृत रूप से विलास पसंद के बन रहे पौधों पर रोक के लिए कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं। 

क्या है पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण

पौधा किस्मों, किस्मों व पादप प्रजनकों के अधिकारों की रक्षा और पौधों की नई किस्मों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रभावी प्रणाली की स्थापना के लिए यह आवश्यक समझा गया कि किसानों के नई पौध किस्मों के उपलब्ध पादप संसाधनों के विकास, उन्हें सुरक्षित करने व उन्हें सुधारने की दिशा में उनके द्वारा किए गए किसी भी समय, किसी भी प्रयास को मान्यता प्रदान करने के लिए कृषकों के अधिकारों की रक्षा की जाए। इसके साथ ही कृषि विकास में तेजी लाने के लिए प्रजनकों को अधिकार प्रदान करना भी आवश्यक है, ताकि नई पौधा किस्मों के विकास के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके।

इस प्रकार की सुरक्षा से बीज उद्योग के विकास में सुविधा होगी जिससे किसानों को उच्च गुणवत्तापूर्ण बीज व रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। भारत ने बौध्दिक सम्पदा अधिकारों के संदर्भ में व्यापार से संबंधित पहलुओं पर हुए समझौते को समर्थन प्रदान किया है और इस समझौते को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक प्रावधान किए हैं। उपरोक्त उद्देश्यों को प्रभावी बनाने के लिए भारत में पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 लागू हुआ।

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