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उत्तर प्रदेश के रटौल आम को मिला जीआई टैग, जानिए पाकिस्तान और भारत के बीच इस किस्म को लेकर क्यों चल रहा है विवाद

बागपत रटौल गांव के आधार पर इस किस्म का नामकरण हुआ है। यह अपनी खास सुगंध और स्वाद के कारण आम लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। पाकिस्तान भी इस आम के स्वामित्व के लिए दावा करता रहता है, लेकिन मूल रूप से इस आम की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के रटौल गांव से हुई है।
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उत्तर प्रदेश की दूसरी आम की किस्मों की तरह ही रटौल किस्म भी दुनिया भर में मशहूर है, इस किस्म को लेकर काफी समय से भारत और पाकिस्तान दोनों देश जीआई टैग के लिए प्रयास कर रहे थे, लेकिन इसका जीआई टैग भारत को मिल गया है।

उत्तर प्रदेश के बागपत में उगाए जाने वाले प्रसिद्ध रटौल आम को वाराणसी में आयोजित एक कार्यक्रम में भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा भौगोलिक संकेत (जीआई) प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया।

बागपत रटौल गांव के आधार पर इस किस्म का नामकरण हुआ है। यह अपनी खास सुगंध और स्वाद के कारण आम लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। पाकिस्तान भी इस आम के स्वामित्व के लिए दावा करता रहता है, लेकिन मूल रूप से इस आम की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के रटौल गांव से हुई है। रतौल मैंगो प्रोड्यूसर एसोसिएशन अपने भौगोलिक संकेत प्रमाणन के लिए 10 वर्षों से अधिक समय से प्रयास कर रहा था। इसकी जीआई प्रमाणन प्रक्रिया को केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ द्वारा वर्ष 2020 में एक सूत्रधार के रूप में तेज किया गया था और आखिर में में उसे जीआई मिला।

उत्तर भारत के उत्कृष्ट आमों में से एक यह आम पश्चिमी यूपी में केवल सीमित लोगों के द्वारा जाना जाता है, लेकिन जिन्हें भी इसका स्वाद लेने का अवसर मिलता है, वे इसके स्वाद और सुगंध के प्रशंसक बन जाते हैं। पाकिस्तान में पहले ही इस किसको भारत से ले जाकर अनवर रटौल के रूप में उगाया जा रहा है और मध्य पूर्व के देशों में निर्यात भी किया जा रहा है। हालांकि इस किस्म की उत्पत्ति भारत में हुई थी, लेकिन इसके निर्यात बाजार पर हमारे पड़ोसी देश का मुख्यतः आधिपत्य है।

हालांकि उत्तर भारत के आम प्रेमियों को रतौल के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन टैग के कारण किसानों को बाजार में अतिरिक्त लाभ मिल सकता है। इस किस्म के निर्यात की उत्कृष्ट संभावनाएं हैं क्योंकि कई रटौल प्रेमी पाकिस्तान द्वारा निर्यात किए जाने वाले आमों पर आधारित हैं। दोनों देशों मैं इस आम के तैयार होने के सीजन में अंतर होने के कारण अधिक प्रतिद्वंदिता की संभावना नहीं है।

इस अवसर पर केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ ने चौसा और गौरजीत के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन जमा किए हैं। इन दो किस्मों के पंजीकरण में कुछ समय लगेगा और अगर यह संभव हो जाता है तो यूपी भी आम के पंजीकरण में पश्चिम बंगाल से आगे निकल जाएगा। पश्चिम बंगाल आम की किस्में जैसे फाजली, हिमसागर और लखन भोग पंजीकृत हो जाने के कारण आगे है।

बनारसी लंगड़ा के लिए पंजीकरण प्रक्रिया जारी है और निकट भविष्य में भारत के इस प्रसिद्ध आम को प्रमाण पत्र मिलने की संभावना है। बौद्धिक संपदा अधिकारों की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के आम की किस्में अति महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि ये किस्में पाकिस्तान में उत्तर प्रदेश के भीतर रहने वाले किसानों के रिश्तेदारों ले जाकर उत्पादित की जा रही हैं। पाकिस्तान कई देशों को इस किस्म का निर्यात भी करता है। इस प्रकार, जीआई संरक्षण मूल देश के कारण भारतीय उत्पादों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छे बाजार की स्थापना में मदद कर सकता है।

जीआई सर्टिफिकेशन से इस आम की मांग विदेशों के साथ-साथ घरेलू बाजार में भी बढ़ेगी, जिससे इसकी खेती करने वाले किसानों को इसका फायदा मिलेगा।

(डॉ शैलेंद्र राजन, आईसीएआर-केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक हैं)

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