इन कारणों से गलत है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नए साल का भाषण
Bhasker Tripathi 1 Jan 2017 6:52 PM GMT

लखनऊ। कृषि ऋण पर दो महीनों के ब्याज की छूट, किसानों को पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराने के लिए कॉपरेटिव बैंक और सोसाइटी को वित्त का आवंटन और तीन करोड़ किसानों के क्रेडिट कार्ड को 'रूपे' कार्ड में बदलने की घोषणा; ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नए साल से एक दिन पहले शाम को दिए गए संबोधन के मुख्य बिंदु थे।
मोदी ने अपने भाषण में प्रमुखता से इस बात का भी ज़िक्र किया कि विमुद्रीकरण के चलते ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पहुंची ठेस की खबरें गलत हैं। इस बात को साबित करने के लिए उन्होंने जो तथ्य दिये वो कई कारणों से भ्रामक हैं।
पिछली रबी फसल से तुलना गलत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमुद्रीकरण से किसानी को पहुंचे नुकसान की खबरों को गलत बताते हुए कहा, "पिछले कुछ हफ्तों में ऐसी छवि पेश की जा रही थी कि कृषि क्षेत्र को (विमुद्रीकरण के द्वारा) बर्बाद कर दिया गया," इसका तथ्य देते हुए उन्होंने आगे कहा, "ऐसा करने वालों को किसानों ने खुद ज़रूरी जवाब दे दिया। रबी की बुआई पिछले साल के मुकाबले 6 प्रतिशत ज्यादा हुई है। उर्वरकों का उठाव 9 प्रतिशत ज्यादा रहा"।
प्रधानमंत्री द्वारा पिछले साल की फसल बुआई की तुलना इस साल से किया जाना गलत है। वर्ष 2015 में भयानक सूखे के बाद हुई रबी की बुआई में पैसों की कमी, जल भण्डारों में पानी की कमी आदि ऐसे कारण थे जिनकी वजह से बुआई काफी कम हुई थी।
"पिछले साल सूखा था इसलिए फसल बुआई की तुलना पिछले से साल से करना ठीक नहीं। इस तरह की गणनाओं में हमेशा कम से कम (सामान्य मौसम वाले) पिछले तीन सालों का औसत लिया जाता है," कृषि अर्थशास्त्री डॉ आर.के. सिंह ने कहा।
डॉ सिंह ने आगे कहा कि केंद्र के आंकड़े बढ़ा-चढ़ा कर दिखाए गए लगते हैं। पहली बात तो ये कि सरकार गेहूं और दाल के साथ हर फसल की बुआई बढ़ने की बात करती है, लेकिन ज़मीन तो सीमित है तो अगल दाल बढ़ी तो गेहूं में कमी आती, पर वो नहीं दिखती।
रबी की फसल वर्षा आधारित नहीं होती। ऐसे में बुआई कितनी होगी ये काफी हद तक देश के जल भण्डारों में पानी की उपलब्धता पर भी निर्भर करता है। नवंबर और दिसम्बर के महीनों में ही रबी की बुआई पूरी होती है तो इन महीनों के दौरान भण्डारों में पानी का प्रतिशत महत्वपूर्ण होता है।
केंद्र सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार दिसम्बर 2015 में देश के सभी प्रमुख जलाशयों में उनकी कुल क्षमता का 51 प्रतिशत पानी था, जबकि दिसम्बर 2016 में यह आंकड़ा 65 प्रतिशत रहा। आंकड़ों के अनुसार भी इस साल बुआई के लिए बेहतर स्थिति थी।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि किसान को खेती के कार्यों में रुकावट न आए इसलिए नाबार्ड को 20,000 करोड़ रुपए का फंड दिया जाएगा, जिसका आगे प्रयोग कॉपरेटिव बैंकों और सोसाइटियों को कम ब्याज पर पैसा देने के लिए किया जाएगा। पिछले महीने भी नाबार्ड को 21,000 करोड़ रुपए आवंटित किये गए थे।
उन्होंने कहा कि नाबार्ड कॉपरेटिव बैंकों और सोसाइटियों को कम ब्याज पर पैसा उपलब्ध कराने में जो नुकसान झेलते हैं, उसकी पूर्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी।
उत्तर प्रदेश योजना आयोग के सदस्य व किसान जागृति मंच के प्रमुख प्रो सुधीर पंवार के अनुसार, प्रधानमंत्री ने अपने भाषाण में अपने ही तथ्यों के विपरीत बातें कहीं। उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री अगर ये कह रहे हैं कि विमुद्रीकरण के बाद भी किसान ने ज्यादा फसल बो दी तो क्या उनके कहने के मतलब है कि किसान बिना पैसों के ज्यादा अच्छे से खेती करता है?"
प्रो पंवार ने कहा कि यदि मौसम की परिस्थितियां अच्छी हैं तो एक किसान कभी भी अपने खेत खाली नहीं छोड़ता। असल स्थिति यह कि विमुद्रीकरण के चलते किसानों ने गैर संस्थागत कर्ज यानि बैंकों के अलावा इधर-उधर से पैसा लेकर बुआई पूरी की है। कागज़ी आंकड़े तो पूरे हो गए पर एक किसान ने जो कठिनाई झेली उसका आकलन कौन करेगा?
विमुद्रीकरण से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नुकसान
वर्ष 2014 और 2015 में लगातार सूखा झेलने से बने कृषि संकट के बाद 2016 में अच्छे मानसून से बंपर खरीफ फसल हुई, जिससे उम्मीद की जा रही थी कि न सिर्फ किसानों की माली हालत सुधरेगी, बल्कि ग्रामीण भारत से मांग भी बढ़ेगी। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। बंपर फसल और विमुद्रीकरण के चलते बाज़ारों में खरीफ फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे गिर गए।
देश की वित्तीय स्थिति पर नज़र रखने वाली कई संस्थाओं ने रिपोर्ट जारी की कि सड़ने वाली कम अवधि की सब्जियों व अन्य फसलों के दाम में भी विमुद्रीकरण के चलते भारी गिरावट आई, जिससे सबसे ज्यादा छोटे और मंझोले किसान प्रभावित हुए।
देश की अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली एक निजी संस्था जेएम फाइनेन्शियल सिक्योरिटी लि. की सात राज्यों में सर्वे के बाद आई रिपोर्ट के अनुसार फसलों के दाम में देखी जा रही भारी गिरावट पूरी तरह खरीफ में बंपर उत्पादन के कारण नहीं है। कृषि बाज़ारों में नकदी की कमी होने से व्यापार में भारी गिरावट दर्ज की गई है जिसके कारण भी फसलों के दाम संभल नहीं पाए। छोटे किसान, जिनके पास बैंकिंग सुविधाएं नहीं थीं, उन्होंने पैसों की आवश्यकता के चलते अपनी फसल बहुत कम दाम पर बेच दी।
"अलग-अलग गाँवों में लोगों से संवाद करने पर हमें यही मिला कि नकदी न होने के चलते ही मण्डियों के व्यापार में कमी आई जिसकी वजह से खरीफ की फसलों के दाम मज़बूत नहीं हो पाए। इसका सबसे बुरा असर छोटे और मंझोले किसानों की आय पर पड़ा है," जेएम फाइनेंस की रिपोर्ट में कहा गया। इस रिपोर्ट को वित्तीय मुद्दों के 'मिंट' अख़बार ने भी प्रकाशित किया है।
संस्था ने अपनी रिपोर्ट में छोटे व मंझोले किसानों और बड़े किसानों की आय पर इस वित्त सत्र में क्या फर्क पड़ा है, उसका प्रतिशत में अनुमान भी जारी किया है। संस्था के मुताबिक, जहां छोटे व मंझोले किसानों की खेती से आय में वृद्धि पिछले वित्त सत्र में 20.6 प्रतिशत थी, वहीं इस सत्र में ये घटकर महज़ 8.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यानि 11.8 प्रतिशत की कमी।
हालांकि, जेएम फाइनेन्शियल की रिपोर्ट के मुताबिक बड़े किसानों की आय पर असर कम ही पड़ेगा। पिछले वित्त सत्र में जहां बड़े किसानों की आय में वृद्धि 20.6 प्रतिशत थी तो वो लगभग चार प्रतिशत घटकर इस साल महज़ 16.1 प्रतिशत ही रहने का अनुमान है। बड़े किसानों पर कम असर पड़ने की वजह उनका बैंकिंग सुविधाओं और सरकारी योजनाओं से सक्रिय रूप से जुड़ा होना बताया गया है।
जेएम फाइनेन्शियल ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि रबी फसल अच्छी होने से किसानों की स्थिति थोड़ी बेहतर हो सकती है।
हालांकि, देश के वित्तीय मुद्दों पर नज़र रखने वाली एक अन्य संस्था एम्बिट कैपिटल प्रा लि. के मुताबिक रबी की फसल बेहतर होने के बाद भी किसानों की स्थिति इतनी आसानी से नहीं सुधरेगी।
एम्बिट कैपिटल ने कई मण्डियों में व्यापारियों से बात करके ये संभावना जताई है कि रबी की फसल बाज़ार में आने के समय फसलों के मूल्यों में एक बार फिर भारी गिरावट आ सकती है क्योंकि नोटबंदी के चलते खरीफ की न सड़ने वाली फसलों को बड़े व्यापारियों ने भारी मात्रा में खरीदकर भण्डार कर लिया है। इन भण्डारित फसलों को व्यापारी बाज़ार के भावों को कम करने के लिए बाज़ार में उतार सकते हैं। इससे किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी।
केसीसी को रूपे डेबिट में बदलने के नुकसान
एक और बड़े फैसले की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने ऐलान किया कि तीन करोड़ किसानों के किसान क्रेडिट कार्ड को 'रूपे' डेबिट कार्ड में बदला जाएगा। इससे बदलाव ये होगा कि किसानों को पैसे निकालने के लिए बैंक जाना अनिवार्य नहीं रहेगा, वो कहीं से भी पैसे निकाल सकेंगे।
प्रो पंवार के अनुसार, "पहले ही कई रिपोर्ट में ये देखा जा चुका है कि किसान खेती के लिए जारी कराए गए कर्ज का इस्तेमाल गैर-कृषि कार्यों में कर देते हैं, और फिर सालों तक कर्ज में फंसे रहते हैं। अगर अब केसीसी को डेबिट कर देंगे तो कृषि ऋण के दुरुपयोग की गुंजाइश और बढ़ जाएगी"।
कृषि अर्थशास्त्री डॉ आर.के. सिंह का मानना है कि सरकार को केसीसी को डेबिट बनाने के साथ ही ऐसे नियम भी बनाने चाहिए जिनसे कार्ड का इस्तेमाल सिर्फ कृषि कार्यों में ही हो सके।
narendra modi Demonetization Rural Economy New Year Speach
More Stories