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हिमाचल प्रदेश: विलुप्त हो रही लाल चावल की किस्म को बचाने की पहल

औषधीय गुणों से भरपूर लाल चावल किस्म की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है। लाल चावल की बाजार में अधिक मांग होने से इसकी बढ़िया कीमत भी मिल जाती है।
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हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर से विलुप्त हो रही लाल चावल की पारंपरिक किस्म की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ने लगा है, इस बार प्रदेश में लगभग 1100 हेक्टेयर से भी ज्यादा क्षेत्रफल में धान की इस किस्म की खेती होने लगी है।

हिमाचल प्रदेश के मंडी, कुल्लु और कांगड़ा जैसे जिलों में पहले एक बड़े क्षेत्रफल में औषधीय गुणों से भरपूर लाल चावल की खेती होती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों में नई किस्मों के आने से किसानों ने इस किस्म की खेती कम कर दी थी। कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश के प्रयासों से एक बार फिर किसानों को इस किस्म की खेती करने के लिए जागरूक किया जा रहा है। लाल चावल से 100 से 200 रुपए प्रति किलो तक किसानों को मिल जाता है।

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के मझवार गाँव में हो रही धान की खेती। फोटो: सुधीर कुमार, कृषि विभाग, मंडी

कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश के निदेशक डॉ. नरेश कुमार बधान गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “लाल चावल की खेती ज्यादातर पहाड़ों पर होती है, लेकिन धीरे-धीरे इसका उत्पादन कम हो गया था, हमने इस किस्म को बचाने के किसानों को जागरूक करने की कोशिश की, जिससे अब किसान इस किस्म को लेकर जागरूक हो रहे हैं, इसीलिए इस किस्म का क्षेत्रफल भी बढ़ा है।”

हिमाचल प्रदेश की चावल प्रमुख फसलों में से एक है, यहां के दस जिलों के लगभग 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 134 हजाट टन चावल का उत्पादन होता है।

लाल चावल की किस्म की खेती जून-जुलाई महीने में होती है और अक्टूबर-नवंबर के महीने में फसल तैयार हो जाती है। लाल चावल की खेती मध्य हिमालय के ऐसे क्षेत्रों में होती है, जहां पर पानी की उपलब्धता होती है। शिमला जिला के सुरु कूट, कुथरु, गानवी, जांगल, नाडाला, कलोटी, देवीधार आदि क्षेत्रों में उगाई जाती है। चंबा जिला में लाल चावल की फसल मानी, पुखरी, साहो, कीड़ी, लाग, सलूणी और तीसा क्षेत्रों में उगाई जाती है। कांगड़ा जिला बैजनाथ, धर्मशाला और बंदला आदि क्षेत्रों में उगाई जा रही है। मंडी जिला में जंजैहली, चुराग, थुनाग क्षेत्रों में लाल चावल की फसल उगाई जाती है। 

लाल चावल पर कई सालों तक रिसर्च करने वाले प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आरपी कौशिक बताते हैं, “हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चावल की लाल किस्मों की खेती होती है। जतू, मताली, देवल, करद, छोहराटू और भिरगू जैसी किस्में यहां की पुरानी किस्में हैं, जिसकी खेती यहां किसान करते आ रहे हैं।” डॉ आरपी कौशिक सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के चावल व गेहूं अनुसंधान केंद्र, कांगड़ा के पूर्व प्रमुख रह चुके हैं।

डॉ कौशिक ने हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में पैदा होने वाले लाल चावल की 16 किस्मों में पोषक तत्वों पर रिसर्च भी की है। वो बताते हैं, “रिसर्च में हमने पाया कि चावल की दूसरी किस्मों के मुकाबले लाल चावल में पोषक तत्व ज्यादा पाए जाते हैं। इनमें आयरन और जिंक भरपूर मात्रा में पाया जाता है, इसमें 25.9 पीपीएम जिंक की मात्रा होती है, जबकि दूसरी चावल की किस्मों में 12 से 15 पीपीएम जिंक पाया जाता है।”

लाल चावल की एक खास बात होती है, इसमें सभी पोषक तत्व चावल के ऊपरी हिस्से पर ही होते हैं, इसलिए लाल चावल को पॉलिस नहीं किया जाता है। इससे पोषक तत्व बरकरार रहते हैं।

लाल चावल की परंपरागत किस्मों से दूसरे किस्मों के मुकाबले कम उत्पादन मिलता है, चावल की दूसरी किस्मों में प्रति हेक्टेयर लगभग 40 कुंतल तक चावल का उत्पादन होता है, जबकि लाल चावल की परंपरागत किस्मों से 20-22 कुंतल ही उत्पादन मिलता है।

सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के चावल व गेहूं अनुसंधान केंद्र, कांगड़ा ने लाल चावल की अभी दो नई किस्में भी विकसित की हैं, जिनसे पुरानी किस्मों के मुकाबले ज्यादा उत्पादन मिलता है। यहां के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. डीपी पांडेय बताते हैं, “हमारे यहां से लाल चावल की दो किस्में एचपीआर 2720 और एचपीआर 2795 विकसित की गई हैं, अभी कांगड़ा, मंडी और शिमला जैसे जिलों में इसकी खेती शुरू की गई है।”

वो आगे कहते हैं, “इनमें आयरन, जिंक और मैग्नीशियम की भरपूर मात्रा होती है, साथ ही शुगर मरीज चावल नहीं खाते हैं, लेकिन चावल शुगर के मरीज भी खा सकते हैं। किसानों को इसके धान रेट 60-70 रुपए प्रति किलो मिल जाता है, जबकि चावल तो 100 से 200 रुपए में बिक जाता है। जोकि बासमती से भी ज्यादा होता है।”

डॉ. नरेश कुमार बधान बताते हैं, “इस समय हिमाचल प्रदेश के लगभग 1100 हेक्टेयर में लाल चावल की खेती होने लगी है। यहां पर छोहराटू, सुकारा तियान, लाल झिन्नी, जतू और मटाली जैसी धान की किस्मों की खेती होती है। हिमाचल प्रदेश के आने वाले पांच वर्षों में लगभग चार हजार हेक्टेयर में लाल चावल की खेती का लक्ष्य है।”

मंडी जिले के उप कृषि निदेशक डॉ. अरविंद कुमार वर्मा बताते हैं, “चावल की इस किस्म का रंग भूरा होता है, लेकिन ये लाल चावल के नाम से ही पहचानी जाती है जो अपनी औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है, कृषि विभाग किसानों को बाजार भी उपलब्ध करा रहा है, जिससे किसानों को अच्छा दाम मिले, हमारे जिले में प्रति हेक्टेयर 20 कुंतल धान का उत्पादन हो रहा है।

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