घट सकता है दलहन का उत्पादन, महंगी होगी अरहर की दाल

Ashwani NigamAshwani Nigam   8 Nov 2016 7:26 PM GMT

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घट सकता है दलहन का उत्पादन, महंगी होगी अरहर की दालखेती।

लखनऊ। गोरखपुर जिल के सैरो गांव के किसान रामआधार यादव ने पिछले कई सालों के बाद अपने खेतों में अरहर की फसल लगाई है। दस बीघे में फले अरहर की फसल को देखकर कुछ दिन पहले वह उत्साहित थे कि इस साल दाल की पैदावार अच्छी होगी। अरहर की महंगी दाल खरीदने से छुटकारा मिलेगा, लेकिन अब वह मायूस हैं। उनके खेतों पर पत्ती बेधक और चूसक कीड़े ने हमला कर दिया है, जिससे अरहर की पत्तियां सूख कर गिर रही हैं। पेड़ सूख रहे हैं। अरहर में इस समय कलियां निकलने का मौसम है। यही उनकी चिंता का सबसे बड़ा कारण हैं। ऐसा सिर्फ इनके खेत का हाल नहीं है, बल्कि पूर्वांचल के गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, मऊ, जौनपुर और महाराजंगज जैसे जिलों में भी हजारों एकड़ अरहर की फसल कीड़ों की चपेट में हैं।

पत्ती बेधक और चूसक कीड़ों का प्रकोप बढ़ा

किसान इन कीड़े से बचने के लिए दवाओं का छिड़काव भी कर रहे हैं, लेकिन उसका असर जितना होना चाहिए, नहीं हो रहा है। इस बारे में भारतीय दलहन अनुंसधन संस्थान कानुपर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आईपी सिंह ने बताया है कि अरहर की फसलों पर पत्ती बेधक और चूसक कीड़ों का प्रकोप बढ़ा है। ऐसी जानकारी संस्थान के पास आई है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने अरहर की फसल इस कीड़े से बचाने के लिए फ्लूमेंडिया माइड नामक दवा के घोल का छिड़काव करने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि इस दवा का अरहर की फसल पर रिसर्च करके देखा गया है। इसके इस्तेमाल से अरहर की फसल को पत्ती बेधक-पत्ती चूसक कीड़े से बचाया जा सकता है।

पांच साल बाद इस कीड़े ने दोबारा दी दस्तक

पिछले कई सालों से उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल एरिया में अरहर की खेती कम हो रही थी। पानी की कमी और खेतों में अधिक से अधिक फसल लगाने के चक्कर में किसान अरहर की बुवाई कम कर रहे थे। लेकिन दालों की आसमान छूती कीमतों ने किसानों को फिर से अरहर की फसल की तरफ रूख किया। केन्द्र सरकार के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों को अरहर की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। जिसके नतीजे में इस साल इस क्षेत्र में किसानों ने धान के साथ ही अरहर की खेती भी बड़ी मात्रा में की है। लेकिन पत्ती बेधक और पत्ती चूसक कीड़े ने अरहर की फसल को चपेत में ले लिया है।

उकुटहा और वंजा रोग मुख्य

डा आईपी सिंह के मुताबिक अरहर में मुख्य रूप से उकुटहा और वंजा रोग लगता है। इस रोग के उपचार के लिए अरहर का बीज बोते समय ही बीज शोधन करना जरूरी था, लेकिन सालों बाद फसल लगा रहे कुछ किसानों से लापरवाही हो गई। जिसके नतीजे में लगभग पांच सालों बाद पत्ती बेधक-पत्ती चूसक कीड़े ने हमला किया है। लेकिन किसानों को इससे चिंतित होने की जरुरत नहीं है। वह समय रहते अरहर के खेतों में दवा का छिड़काव कर दें। जिससे फसल को बचाया जा सके।

तो इस साल भी अरहर की दाल रुलाएगी

कृषि मंत्रालय ने सितंबर में दलहन उत्पादन को लेकर जो अनुमान जारी किया था, उसके मुताबिक जुलाई 2016 से लेकर जून 2017 में रिकार्ड 200 से लेकर 215 लाख टन दाल का उत्पादन होगा, जिसमें अरहर दाल का उत्पादन 45 से लेकर 46 लाख तक होने की उम्मीद है। लेकिन अरहर की फसल पर कीटों के बढ़ते प्रकोप अब अरहर दाल का उत्पादन कम होने का अनुमान है। पूरे देश में हर साल लगभग 220 लाख टन दाल की जरुरत पड़ती है। जिसमें लगभग 20 से लेकर 22 प्रतिशत हिस्सा अरहर दाल का होता है। खासकर उत्तर भारत में अरहर दाल की खपत सबसे ज्यादा है। इस डिमांड को पूरा करने के लिए बाहर के देशों से अरहर की दाल को निर्यात करना पड़ता है।

कृषि मंत्रालय में भी हड़कंप

पूर्वी उत्तर प्रदेश में अरहर के खेत पर कीड़ों के हमले से किसान के साथ ही कृषि मंत्रालय में भी हड़कंप है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के निदेशक डा. एसके सिंह ने बताया कि पिछले कुछ सालों से दलहन की फसलों के क्षेत्रफल कम होने और जलवायु परिवर्तन के कारण देश में दलहन का उत्पादन काम हो रहा था, लेकिन सरकार और कृषि वैज्ञानिकों की मेहनत से दलहन उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य तय हुआ। साल 2020 तक 24 मिलियन टन दाल दलहन उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने पर जोर है। जिससे देश के हर व्यक्ति को 52 ग्राम दाल प्रतिदिन मिल सके। इसके लिए अरहर की फसल पर भी विशेष ध्यान देना होगा। दलहनी फसलों में अगर एक भी फसल खराब हुई तो यह लक्ष्य पर असर पड़ेगा।

    

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