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बागवानी फसलों की खेती करने वाले किसानों की मददगार बनेगी ‘रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस’ तकनीक

सीएसआईआर-सीएमईआरआई द्वारा विकसित रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस से किसान पॉलीहाउस में मौसमी और गैर-मौसम वाली दोनों ही तरह की फसलों की खेती कर सकते हैं।
#Polyhouse

पॉली हाउस में खेती करके किसान न केवल अच्छा उत्पादन पाते हैं, बल्कि कई तरह के नुकसान से भी बच जाते हैं। लेकिन पूरी तरह से बंद पॉलीहाउस के जितने फायदे हैं तो नुकसान भी हैं, इसलिए वैज्ञानिक ऐसे पॉली हाउस को विकसित कर रहे हैं, जिसकी छत को जब चाहे खोल या बंद कर सकते हैं।

सीएसआईआर-केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएमईआरआई), दुर्गापुर के वैज्ञानिक ‘रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस’ विकसित कर रहे हैं, यह पॉलीहाउस पंजाब के एक्सटेंशन सेंटर लुधियाना में लगाया जा रहा है।

‘रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस’ पॉली हाउस को विकसित करने वाली टीम के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ जगदीश माणिक राव, गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “अभी हमारे यहां नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस ही लगाते हैं, लेकिन अब हम इसी के साथ ही ‘रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस’ विकसित कर रहे हैं। इसमें हम पॉली हाउस की छत को खोल या फिर बंद कर सकते हैं, जिस फसल को जैसा मौसम चाहिए हम इसमें वैसा ही वातावरण दे सकते हैं। जैसे कि कोई फसल बारिश में होती है तब हम इसकी छत हटा सकते हैं। अगर बारिश की जरूरत नहीं या फिर हवा ज्यादा तेज है तो हम छत को बंद कर सकते हैं।”

डॉ जगदीश माणिक राव नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस की फायदे बताते हैं, ” जैसे कि सुबह के समय सर्दियों में धूप कम होती है, जबकि फसल को बराबर धूप चाहिए होती है, ऐसे में हम छत को हटाकर धूप को फसल तक पहुंचा सकते हैं। यह पूरी तरह से ऑटोमैटिक तरह से काम करेगा, पीएलसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए हम सेंसर लगा रहे हैं, जैसे रेन सेंसर, कॉर्बन डाई ऑक्साइड सेंसर, ह्युमिडिटी सेंसर, टेम्प्रेचर सेंसर जैसे सेंसर लगा रहे हैं। फसल को जैसी जरूरत होगी है उसी हिसाब से हम उसे वातावरण देंगे।”

ऑटोमैटिक रिट्रैक्टेबल रूफ, पीएलसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए कंडीशनल डेटाबेस से मौसम की स्थिति और फसल की जरूरतों के आधार पर संचालित होगी। (Representative Picture: freepic)

अभी तक पॉली हाउस में अंदर अलग से ब्लोअर लगाना पड़ता है, वेंटीलेशन की व्यवस्था करनी पड़ती है, पॉली हाउस के अंदर की मिट्टी भी गर्म हो जाती है, लेकिन हम छत हटाकर उसे प्राकृतिक वातावरण दे सकते हैं। इसमें सूर्य के प्रकाश की मात्रा, जल तनाव, आर्द्रता, कार्बन डाई-ऑक्साइड और फसल और मिट्टी के तापमान के स्तर को बदलने के लिए किया जाएगा। वैज्ञानिक इसमें रेन सेंसर भी लगा रहे हैं जिससे जैसे बारिश हुई और हमारे फसल के लिए बारिश की जरूरत नहीं है तो छत अपने आप बंद हो जाएगी। ये पूरी तरह से ऑटोमैटिक रहेगा।

‘नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस’ की तुलना में ‘रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस’ में कितना खर्च आएगा, इस बारे में माणिक राव कहते हैं, “नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस में प्रति वर्ग मीटर एक हजार रुपए खर्च होते हैं, इस तरह अगर किसान को पता है कि कौन सी फसल को क्या जरूरत है तो नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस की तरह ही रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस भी होगा, जिसे किसान मैनुअली ओपन या क्लोज कर सकता है। इसमें दोनों का बराबर ही खर्च आएगा, लेकिन अगर किसान पूरी तरह से ऑटोमैटिक पॉली हाउस चाहता है तो प्रति वर्ग मीटर 1000 रुपए से 1500 तक हो जाता है। ये किसान के ऊपर निर्भर करता है कि उसे कैसा चाहिए।”

सीएसआईआर-सीएमईआरआई के एक्सटेंशन सेंटर, लुधियाना में ‘नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस फैसिलिटी’ और ‘रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस’ लगाया जा रहा है। रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस सिस्टम कैसे काम करता है के लाभों पर वैज्ञानिक प्रयोगात्मक आंकड़े की कमी है, इसलिए फसल उत्पादन और उपज की गुणवत्ता की तुलना करने के लिए प्राकृतिक रूप से हवादार पॉलीहाउस और रिट्रैक्टेबल रूफ पॉली हाउस दोनों में बागवानी फसलों की खेती की जाएगी। उसके बाद दोनों में तुलना कि जाएगी कि किसानों के लिए कौन सा पॉली हाउस ज्यादा बेहतर है।

पिछले महीने 31 जुलाई को सीएसआईआर-सीएमईआरआई के निदेशक डॉ. (प्रो.) हरीश हिरानी ने लुधियाना में ‘नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस फैसिलिटी’ का उद्घाटन किया और रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस की आधारशिला रखी।

सीएमईआरआई के निदेशक डॉ. हरीश हिरानी ने ‘नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस फैसिलिटी’ का उद्घाटन किया और रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस की आधारशिला रखी।

प्रोफेसर हिरानी ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि किसानों को अत्यधिक या अपर्याप्त ठंड, गर्मी, बारिश, हवा, और अपर्याप्त वाष्पोत्सर्जन से जुड़े अन्य कारकों जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और साथ ही भारत में कीटों के कारण भी वर्तमान में लगभग 15 प्रतिशत फसल का नुकसान होता है तथा यह नुकसान बढ़ सकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन कीटों के खिलाफ पौधों की रक्षा प्रणाली को कम करता है। पारंपरिक पॉलीहाउस से कुछ हद तक इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।”

उन्होंने आगे कहा, “पारंपरिक पॉलीहाउस में मौसम की विसंगतियों और कीटों के प्रभाव को कम करने के लिए एक स्थिर छत होती है। हालांकि, छत को ढंकने के अब भी नुकसान हैं जो कभी-कभी अत्यधिक गर्मी और अपर्याप्त प्रकाश (सुबह-सुबह) का कारण बनते हैं। इसके अलावा, वे कार्बन डाईऑक्साइड, वाष्पोत्सर्जन और जल तनाव के अपर्याप्त स्तर के लिहाज से भी संदेवनशील होते हैं। खुले क्षेत्र की स्थितियों और पारंपरिक पॉलीहाउस स्थितियों का संयोजन भविष्य में जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिहाज से एक ज्यादा बेहतर तरीका है।”

डॉ. हरीश हिरानी ने रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी के बारे में बताया कि हर मौसम में काम करने लिहाज से उपयुक्त इस प्रतिष्ठान में ऑटोमैटिक रिट्रैक्टेबल रूफ (स्वचालित रूप से खुलने-बंद होने वाली छत) होगा जो पीएलसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए कंडीशनल डेटाबेस से मौसम की स्थिति और फसल की जरूरतों के आधार पर संचालित होगा। इस प्रौद्योगिकी से किसानों को मौसमी और गैर-मौसम वाली दोनों ही तरह की फसलों की खेती करने में मदद मिलेगी।”

वैज्ञानिक छह महीने तक दोनों पॉली हाउस पर परीक्षण करेंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार अगले छह महीने में किसानों तक यह तकनीक पहुंचाना चाहते हैं। यह तकनीक हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर-आईएचबीटी), पालमपुर के सहयोग से विकसित की जा रही है।

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