जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के सुहैब जॉन भट के सेब के पांच बाग हैं, जिनमें फल तो अच्छे आए हैं, लेकिन ज्यादातर फलों का आकार और रंग स्कैब बीमारी की वजह से बदरंग हो गया है, जिसकी वजह से अच्छी कीमत नहीं मिल रही। ये सिर्फ सुहैब अकेले की परेशानी नहीं है, कश्मीर के ज्यादा सेब किसानों की यही कहानी है।
कोविड-19 संक्रमण रोकने के लिए भारत में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के साथ शुरू हुए लॉकडाउन से खेती और बागवानी से जुड़े लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। सेब किसान भी इससे बच नहीं पाए। मार्च-अप्रैल में सेब में फूल आते हैं, जिस समय बीमारियों और कीटों से फसल को बचाने के लिए दवाई का छिड़काव किया जाता है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से किसानों को दवा ही नहीं मिल पायी, जिसकी वजह से सेब के बागों में स्कैब जैसी दूसरी बीमारियों का संक्रमण बढ़ गया।
सेब बागवान सुहैब जॉन भट गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “मार्च-अप्रैल में बाग में दवाई छिड़कने का सही समय होता है, तभी लॉकडाउन लग गया था। जिससे दवाई ही नहीं मिल पायी, बहुत से किसानों के साथ यही हुआ है। इस बार सेब भी अच्छा आया है। हमारे बाग में तीस पर्सेंट सेब स्कैब से खराब हो गया है। कुछ लोगों का तो 50-60 पर्सेंट तक सेब स्कैब की वजह से खराब हो गया है।”
जम्मू-कश्मीर की आधी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सेब के उत्पादन और व्यापार व्यवसाय में शामिल है। सेब को कई तरह की वायरस, फंगस जनित बीमारिया प्रभावित करती है। भारत में पहली बार साल 1935 में कश्मीर घाटी सबसे पहले स्कैब का संक्रमण देखा गया था। इसकी वजह बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था। जल्द इस पार काबू नहीं पाया जाता है तो यह फल और पत्तियों पर बड़े आकार के काले धब्बे के रूप में दिखता है।
गाँव कनेक्शन ने अप्रैल महीने में कश्मीर के कई किसानों से बात की थी, जब यहां के किसानों को कीटनाशक नहीं मिल पा रहा था। सेब में फूल आने पर दो बार छिड़काव करना होता, फंगीसाइड और पेस्टीसाइड जैसे दूसरी दवाईयां बाहर स आती हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से कश्मीर तक पहुंच ही नहीं पायीं, जिसका खामियाजा अब किसानों को भुगतना पड़ रहा है।
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पिछले कुछ महीनों में सेब की खेती के लिए मौसम भी अनुकूल नहीं रहा, मार्च-अप्रैल में लगातार बारिश होती रही, बादल घिरे रहे जिसकी वजह से स्कैब को बढ़ने के लिए अनुकूल परिस्थितयां मिलती रहीं। शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (SKUAST) के पादप रोग विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ. मुस्ताक अहमद भट गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “जब स्कैब का शुरूआती दौर था, तब बारिश होती रही, जिसकी वजह से स्प्रे करने का मौका नहीं मिला था, जिन्होंने स्प्रे किया भी तो बहुत देर हो गई थी। तब तक बीमारी फैल गई थी, इसलिए स्कैब का नियंत्रण नहीं हो पाया। ये तो मुख्य कारण था स्कैब का, हम किसानों को समय स्प्रे का समय बताते हैं, अगर उस समय पर स्प्रे नहीं होता है तो स्कैब बढ़ता रहता है।”
“स्कैब तो हमेशा आता रहता है, लेकिन ये निर्भर करता है कि हम अपने बाग की देखभाल कैसे कर रहे हैं। स्कैब हमेशा फसल में रहता है, बशर्ते किसानों को उससे बचाव करना होता है। हमारे यहां का वातावरण इन्हें बढ़ने का मौका देता है। शुरूआती दौर में बारिश होती रही, जिसकी वजह से बागों में नमी बनी रही। क्योंकि 10-15 दिनों में स्प्रे करना होता है। बागवानों को मौका ही नहीं मिला, जब स्प्रे किया तो तब तक बढ़ गए थे। एक तो बारिश और दूसरा कोविड की वजह से बागवानों को दवाई नहीं मिल पायी।” डॉ. मुस्ताक अहमद भट ने आगे बताया।
बागवानी निदेशालय, कश्मीर के श्रीनगर, बडगाम, फुलवामा, अनंतनाग, बारामूला, कुपवाड़ा जैसे जिलों में साल 2018-19 में 164742 हेक्टेयर में 1882319 मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ था। एपीडा की वेबसाइट के अनुसार भारत में सबसे अधिक सेब उत्पादन कश्मीर में होता है, दूसरे नंबर पर हिमाचल प्रदेश और उसके बाद उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश जैसे प्रदेश आते हैं। देश के कुल सेब उत्पादन का लगभग 77 प्रतिशत सेब कश्मीर में ही होता है।
हिमाचल प्रदेश के शिमला जैसे जिलों में स्कैब का संक्रमण देखा गया है, हिमाचल प्रदेश में सबसे साल 1977 में पहली बार स्कैब देखा गया था। साल 1982 से 1983 के बीच यहां के बागवानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार फिर यहां के बागवानों को काफी नुकसान हो रहा है।
संक्रमित बाग में खास देखभाल की जरूरत होती है, संक्रमित पुराने पत्ते गिर जाते हैं अगर इन्हें हटाया नहीं गया तो सेब की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए पत्तियों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए।
बागवानी निदेशालय, कश्मीर के निदेशक डॉ. एजाज़ अहमद भट कहते हैं, “अभी से हम नुकसान का नहीं बता सकते हैं इस बार पिछले साल के मुकाबले प्रोडक्शन कम होने की उम्मीद है, इस लगातार बारिश का मौसम रहा जिसका भी असर पड़ा और दूसरा बाहर से लोग अपनी मधुमक्खियों को यहां सेब के बाग में लाते हैं, जिससे अच्छा पॉलिनेशन हो जाता है। कोविड की वजह से वो इस बार आ ही नहीं पाए और आए भी तो बहुत देर में आए जिसका सेब प्रोडक्शन पर पड़ा है।
गाँव कनेक्शन ने लॉकडाउन के दौरान देश भर के किसानों के बीच सर्वे भी किया था, जिसके अनुसार लॉकडाउन का समय किसानों पर भारी पड़ा था। सब्जी और फलों की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। गांव कनेक्शन के सर्वे में शामिल 41 फीसदी किसानों ने कहा कि वे लॉकडाउन के चलते समय से अपनी फसल नहीं काट पाए, जबकि 55 फीसदी किसान अपनी उपज समय पर बेच नहीं पाए। 38 फीसदी के करीब किसानों को अपनी उपज निजी व्यापारियों को बेचनी पड़ी।
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के शोपियां सेब बागवान सज्जाद अहमद कहते हैं, “पिछले साल नवंबर से ही परेशानी शुरू हो गई थी, जब बर्फबारी की वजह से हमें काफी नुकसान उठाना पड़ा, जिसकी वजह पत्तियां वगैरह वहीं पड़ी रहीं, मार्च में जब फिर दवाई छिड़कने का समय आया तो लगातार बारिश होती रही और उसके बाद लॉकडाउन लग गया, कोई बागवान दवाई का स्प्रे ही नहीं कर पाया। इससे स्कैब को बढ़ने का मौका मिल गया।”
पिछले साल नंवबर 2019 को भी सेब किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की सात सदस्यीय टीम जम्मू-कश्मीर गई थी, 16 नवंबर 2019 को अपनी रिपोर्ट में बताया था कि प्रदेश में पांच अगस्त के बाद से लगे कर्फ्यू और भारी बर्फबारी से बागबानी किसानों को कम से कम 7000-8000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, हालांकि प्रदेश कृषि विभाग की ओर से नुकसान का कुल आंकलन 3,500 करोड़ रुपए का था। कृषि विभाग के अनुसार जम्मू-कश्मीर के बागबानी सेक्टर का सालाना कारोबार लगभग 10,000 करोड़ रुपए का है।
बागवानों की माने तो लॉकडाउन से उन्हें नुकसान हुआ है तो कुछ फायदा भी हुआ है। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के सुहैब जॉन भट बताते हैं, “स्कैब से नुकसान तो हुआ है, लेकिन कोविड में कुछ फायदें भी हुए हैं, पहले हमें सेब बेचने के लिए 50 किमी दूर तक जाना पड़ता था, लेकिन इस बार यहां पर टूरिस्ट तो आ नहीं रहे हैं तो होटल वालों ने सेब व्यापारियों को ही होटल दे दिए दिए, इस बार एक-दो किमी पर सेब व्यापारी मिल जा रहे हैं।