जितेंद्र वर्मा
होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)। जलवायू परिवर्तन से बढ़ते तापमान से निपटने की तैयारी में वैज्ञानिक लगे हैं, कृषि अनुसंधान केंद्र, होशंगाबाद के वैज्ञानिक गेहूं की ऐसी किस्म विकसित करने में लगे हैं, जो अधिक तापमान में भी अच्छी पैदावार दे सके।
कृषि अनुसंधान केंद्र, होशंगाबाद के वैज्ञानिक गेहूं की ऐसी किस्म पर शोध कर रहे हैं, जिसकी खेती मध्य प्रदेश में पचास साल पहले हुआ करती थी। वैज्ञानिकों के अनुसार आने वाले तीन साल में गेहूं की नई किस्म विकसित कर लेंगे।
पिछले कुछ साल से रबी के मौसम में तापमान अधिक बढ़ने से किसान परेशान हैं, गर्मियों में 45-46 डिग्री तक जाने वाले तापमान से गेहूं की फसल को किस तरह से बचाया जाए, इसको लेकर कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने शोध शुरू किया है। कृषि अनुसंधान केंद्र के उप निदेशक डॉ पीसी मिश्रा बताते हैं, “उच्च तापमान को सहन करने वाली गेंहू की किस्म पर रिसर्च किया जा रहा है। इसके के लिए पुराने गेहूं के बीज और दानों की गुणवत्ता की जांच की जा रही है। इनमें ऐसे कौन से तत्व रहते थे जिससे यह गर्मी के उच्च तापमान को भी सहन कर लेते थे। इसका शोध कर नई गेहूं की किस्में विकसित करने का प्रयास जारी है।”
उन्होंने आगे बताया कि तीन साल अलग-अलग तरीकों से पुरानी गेहूं की जांच की जाएगी। इसके बाद गेहूं की एक नई किस्म विकसित हो जाएगी। रिसर्च पूरी होने के बाद यह नई किस्म किसानों को मिल जाएगी।
शोध में पता चला कि गेहूं में कई तत्वों की कमी
कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ एएस निनामा बताते हैं, “गेहूं पर पांच सालों से रिसर्च किया जा रहा है। वर्तमान में जो गेंहू पैदा हो रहा है। उसमें जिंक जैसे तत्वों की कमी देखी गई है। उत्पादन अधिक लेने के चक्कर मे माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की अनदेखी की जा रही है। इसलिए गेंहू की नई किस्म तैयार करना जरूरी हो गया है।”
पचास साल पहले कैसे होती थी पारम्परिक खेती
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पचास साल पहले नहरें नहीं थी। बारिश के पानी और नमी का संचय कर किसान पारम्परिक खेती करते थे। इसके लिए खेतों में बारिश के पानी को इकट्ठा किया जाता था। इसके बाद देसी हल से जुताई के बाद फसल बुवाई की जाती थी यह पूरी तरह सुखी खेती होती थी। अधिक उत्पादन के लिए किसी प्रकार का रासायन उपयोग नहीं होता था। गर्मी के तेज तापमान में भी गेंहू अच्छी गुणवत्ता वाला पैदा होता था।