अंगूर की खेती करने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या फसल में लगने वाले रोगों से आती है, वैज्ञानिकों ने अंगूर की नई किस्म विकसित की है जो फफूंद रोग रोधी होने के साथ ही, दूसरी किस्मों के मुकाबले अधिक पैदावार भी मिलती है।
आघारकर अनुसंधान संस्थान, पुणे की वैज्ञानिक डॉ. सुजाता तेताली ने अंगूर दो किस्मों अमेरिकन काटावबा और विटिस विनिफेरा को मिलाकर नई प्रजाति एआरआई-16 विकसित की है, ये यह किस्म 110-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
अंगूर की नई किस्म की खासियत के बारे में डॉ सुजाता तेताली बताती हैं, “यह बहुउपयोगी किस्म है, इससे जूस, जैम और रेड वाइन बना सकते हैं, रेजिन (किशमिश) के लिए भी ये किस्म सही होती है। इसमें एक अलग फ्लेवर होता है। जल्दी तैयार होने वाली किस्म है, उत्पादन भी अच्छा मिलता है और सबसे जरूरी बात इसकी खेती में पेस्टीसाइड और दूसरे केमिकल भी कम डालने पड़ते हैं। क्योंकि ये किस्म रोग और कीट प्रतिरोधी भी है।”
यह किस्म डाउनी, पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति मध्यम प्रतिरोधी जबकि एंथ्राक्नोज़ बीमारी के प्रति पूरी तरह से प्रतिरोधी होती है।
आमतौर पर दो तरह के अंगूर की खेती होती है, एक जिसे टेबल वैरायटी बोलते हैं, जो खाने के प्रयोग में लायी जाती है, एक जो प्रोसेसिंग में प्रयोग की जाती है। लेकिन ये किस्म दोनों काम आती है। इस किस्म से प्रति 45 टन से 48 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन हो जाता है।
डॉ. सुजाता आगे कहती हैं, “अभी तक दूसरी किस्मों की खेती महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में होती है, लेकिन इस किस्म का ट्रायल हमने पश्चिम बंगाल में भी किया है, जहां पर इसका अच्छा रिजल्ट भी मिला है। पश्चिम बंगाल में अंगूर होते हैं, लोगों को पता ही नहीं था, वहां पर हमारे जानने वाले एक वैज्ञानिक ने दूसरी किस्मों के साथ ही एआरआई-16 किस्म को भी लगाया, दूसरी किस्मों से बहुत बढ़िया रिजल्ट इस किस्म का मिला है।”
अंगूर उत्पाद के मामले भारत का दुनिया में 12वां स्थान है। देश में अंगूर के कुल उत्पादन का 78 प्रतिशत सीधे खाने में इस्तेमाल हो जाता है जबकि 17-20 प्रतिशत का किशमिश बनाने में, डेढ़ प्रतिशत का शराब बनाने में तथा 0.5 प्रतिशत का इस्तेमाल जूस बनाने में होता है।
क्षेत्र के हिसाब से इस किस्म किस्म के तैयार होने में समय और उत्पादन भी अलग-अलग मिलता है। अभी संस्थान ने इस किस्म को महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडू और तेलंगाना में रिलीज किया है, लेकिन वैज्ञानिकों की माने तो इसकी खेती मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी अच्छी हो सकती है। अभी उत्तर प्रदेश के लखनऊ में भी इसकी खेती ट्रायल के रूप में की गई है, जहां पर अच्छे फल आए हैं।
आमतौर पर यह किस्म 110-120 दिनों में तैयार हो जाती है, लेकिन क्षेत्र और जलवायु के हिसाब से इसमें कम और ज्यादा समय भी लग जाता है। डॉ सुजाता कहती हैं, “तमिलनाडू में 74-75 दिनों में पक जाती है, महाराष्ट्र 100-110 दिन और जैसे-जैसे हम उत्तर में आते हैं यहां 130 दिन में तैयार होती है। दक्षिण भारत के राज्यों में जल्दी तैयार हो जाती है, जबकि उत्तरी राज्यों में इसे पकने में ज्यादा समय लगता है।”
देश में अंगूर की 81.22 प्रतिशत खेती अकेले महाराष्ट्र में होती है। यहां अंगूर की जो किस्में उगाई जाती हैं वे ज्यादातर रोग रोधी और गुणवत्ता के लिहाज से भी उत्तम हैं। अंगूर की नयी किस्म एआरआई-516 अपने लाजवाब जायके के लिए पसंद की जा रही है। लागत कम होने और पैदावार अधिक मिलने से किसानों को यह किस्म पसंद आ रही है।