वैज्ञानिकों ने चने में जेनेटिक कोड की खोज की है, इससे चने की अधिक पैदावार वाली किस्मों के साथ ही जलवायु परिवर्तन के हिसाब से अधिक उत्पादन करने वाली किस्म तैयार करने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों के अनुसार इस पर सूखे और गर्मी का भी असर नहीं होगा।
डॉ. त्रिलोचन महापात्र, सचिव, कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (डीएआरई) और महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कहा, “यह वैश्विक कृषि अनुसंधान के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है और ये अद्वितीय वैज्ञानिक समाधान दुनिया की कृषि सम्बंधित समस्याओं को कम करने में मदद करेंगे।”
तीन वर्षों के शोध और ४५ देशों के लगभग ४२९ चने की किस्मों से ये जेनेटिक कोड खोजा गया है। इससे किसानों को चना की ऐसी किस्म मिल सकेंगी, जो प्रतिकूल प्रस्थितियों में भी ज्यादा उत्पादन दे सकेंगी। भारत में दलहन में सबसे ज्यादा उत्पादन चना का होता है, चना का उत्पादन बढ़ने से दालों में आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी।
आईसीआरआईएसएटी (ICRISAT) के महानिदेशक डॉ. पीटर कार्बेर्री ने कहा की कि इस नई खोज से कृषि प्रजनकों, को विविध जर्मप्लाज्म और जीन का उपयोग करके जलवायु-परिवर्तन के लिए तैयार चने की नई किस्म विकसित करने में मदद मिलेगी, जो विकासशील देशों में कृषि उत्पादकता में वृद्धि और स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान होगा।
डॉ. राजीव वार्ष्णेय जोकि इस परियोजना के प्रमुख और आईसीआरआईएसएटी के रिसर्च प्रोग्राम डायरेक्टर जेनेटिक गेन्स (आरपीजीजी) और डायरेक्टर सेण्टर ऑफ एक्सीलेंस इन जीनोमिक्स एंड सिस्टम्स बायोलॉजी (सीईजीएसबी), ने बताया की “जीनोम-वाइड एसोसिएशन के अध्ययन से हमें 13 महत्वपूर्ण लक्षणों के लिए जिम्मेदार जीन्स की पहचान करने में सफलता मिली है। उदाहरण के लिए, हमने आरईन1, बी-1, 3-गलूसैंस, आरईएफ6 जैसे जीन्स की खोज की, जो फसल को 380सी तक तामपान सहन करने और उच्च उत्पादकता प्रदान करने में मदद कर सकता है।
भारत में चने की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और बिहार में की जाती है। देश के कुल चना क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत भाग और कुल उत्पादन का लगभग 92 प्रतिशत इन्ही प्रदेशों से प्राप्त होता है। भारत चने का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है, सबसे अधिक उत्पादन मध्य प्रदेश (43%), महाराष्ट्र (10%), राजस्थान (14%), आंध्र प्रदेश (7%), उत्तर प्रदेश (9%), व कर्नाटक (6%) है।
90 प्रतिशत से अधिक चने की खेती दक्षिण एशिया में होती है। लगातार सूखे और बढ़ते तापमान से वैश्विक स्तर पर 70 प्रतिशत से अधिक उत्पादन का नुकसान हुआ है। क्योंकि चने की खेती ठंडे मौसम में होती है, इसलिए लगातार बढ़ता तापमान चने का उत्पादन घट रहा है।
विश्व स्तर के 21 शोध संस्थानों के कृषि वैज्ञानिकों ने मिलकर किया काम
वैश्विक स्तर के 21 शोध संस्थानों के कृषि वैज्ञानिको ने 45 देशों से मिली चने की 429 प्रजातियों का सफलतापूर्वक अनुक्रमण करके सूखे और गर्मी के प्रति सहिष्णुता रखने वाले नए-नए जीन की खोज की है। टीम का नेतृत्व हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स- (आईसीआरआईएसएटी) के डॉ. राजीव वार्ष्णेय ने किया। इस टीम में भारतीय अनुसंधान परिषद के दो महत्वपूर्ण संस्थानों भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के अलावा 19 अन्य संस्थानों के वैज्ञानिक सम्मिलित हैं।