नई दिल्ली। कुपोषण भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती की तरह है। इसको दूर करने के लिए वैज्ञानिक खाद्यान्नों में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए फसलों का जीनोमिक अध्ययन करने में वैज्ञानिक लगातार जुटे हुए हैं। वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अब गेहूं में जिंक की सघन मात्रा के लिए जिम्मेदार महत्पूर्ण जीनोमिक क्षेत्रों का पता लगाया है जो अधिक जिंक युक्त गेहूं की पोषक किस्में विकसित करने में मददगार हो सकते हैं।
गेहूं के अलग-अलग जर्मप्लाज्म से उत्पादित दानों में जिंक की सांद्रता का विश्लेषण करके शोधकर्ताओं ने 39 नए आणविक मार्करों के साथ-साथ गेहूं में जिंक उपभोग, स्थानांतरण और भंडारण के लिए महत्वपूर्ण जीन्स वाले दो जीनोम खंडों का पता लगाया है। भारत और मेक्सिको में विभिन्न पर्यावरणीय दशाओं में कम और अधिक जिंक वाले गेहूं को अध्ययन के उगाया गया।
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मेक्सिको स्थित अंतरराष्ट्रीय मक्का एवं गेहूं सुधार केंद्र (सिमिट), ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी, लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, करनाल स्थित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और सिमिट से संबद्ध नई दिल्ली स्थित वैश्विक गेहूं कार्यक्रम के शोधकर्ताओं द्वारा यह अध्ययन संयुक्त रूप से किया गया है। अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किये गए हैं।
सिमिटसे जुड़े शोधकर्ता डॉ गोविंदन वेलु ने बताया, “गेहूं के जिंक के घनत्व में सुधार के लिए प्रभावी जीन्स की पहचान के लिए यह अध्ययन किया गया है। जीनोम वाइड एसोसिएशन मैपिंग विश्लेषण से हमें गेहूं में जिंक के घनत्व के लिए जिम्मेदार कई प्रमुख जीनोमिक क्षेत्रों के बारे में पता चला है। इस अध्ययन में पहचाने गए प्रत्याशी जीन्स एवं जीनोमिक क्षेत्रों की मदद से बेहतर जिंक घनत्व वाले पोषक गेहूं की किस्में विकसित की जा सकती हैं।”
जिंक और आयरन के सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण कुपोषण या हिडेन हंगर से दुनियाभर में करीब दो अरब लोग प्रभावित हैं। भारत में जिंक की कमी से करीब 30 प्रतिशत लोग ग्रस्त हैं और पांच साल से कम उम्र के बच्चे तथा गर्भवती महिलाएं पोषक तत्वों की कमी के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
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इस अध्ययन से जुड़े बीएचयू के शोधकर्ता डॉ. विनोद कुमार मिश्र ने बताया, “जिंक की विभिन्न मात्रा वाले गेहूं की किस्में मौजूद हैं। पर, हम यह पता लगाना चाहते थे कि जिंक की अधिक मात्रा निर्धारित करने के लिए कौन-से जीन्स जिम्मेदार हैं। इस तरह की जानकारी भावी शोधों और नई फसल किस्मों के विकास में मददगार हो सकती है। इस अध्ययन में गेहूं के 330 जर्म प्लाज्म को एक जैसे वातावरण और परिस्थितियों में उगाया गया है और यह देखा गया है कि समान वातावरण में अगर किसी गेहूं में जिंक की मात्रा अधिक पायी जाती है तो उसके पीछे कौन-से जीन्स जिम्मेदार हैं।”
वो आगे बताते हैं, “इससे पहले भी इस तरह के अध्ययन हुए हैं, पर यह अध्ययन अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें पूर्व अध्ययनों की अपेक्षा अधिक संख्या में अनुवांशिक मार्करों का उपयोग किया गया है। किसी जीव अथवा पादप के गुणों के लिए जिम्मेदार जीन्स की पहचान करने में ये मार्कर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अनुवांशिक अध्ययन में मार्करों की भूमिका मील के पत्थर की तरह होती है, जो जीन्स तक पहुंचने में मदद करते हैं।”
पारंपरिक फसल प्रजनन और अत्याधुनिक जीनोमिक पद्धति के उपयोग से गेहूं जैसे प्रमुख खाद्यान्नों में पोषण मूल्यों को शामिल करना लाभकारी हो सकता है। प्रमुख जीनोमिक क्षेत्रों और आणविक मार्करों की पहचान होने से मार्कर आधारित प्रजनन के जरिये संवर्द्धित फसल कतारों का चयन सटीक ढंग से किया जा सकेगा।
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अध्ययनकर्ताओ की टीम में डॉ. गोविंदन वेलु और डॉ. विनोद कुमार मिश्र के अलावा सिमिट, मेक्सिको के रवि प्रकाश सिंह, लियोनार्डो क्रेस्पो हेरेरा, फिलोमिन जूलियानाएवं सुसेन ड्रिसिगेकर, फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया के जेम्स स्टेंगुलिस, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क के रवि वल्लुरू, पीएयू केवीरेंदर सिंह सोहू और गुरविंदर सिंह मावी, बीएचयू के अरुण बालासुब्रमण्यम, आईआईडब्ल्यूबीआर के रवीश चतरथ, विकास गुप्ता और ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह और सिमिट के वैश्विक गेहूं कार्यक्रम, नई दिल्ली के अरुण कुमार जोशी शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)