मटर की खेती की करने वाले किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान फसल में लगने वाले रोग और कीट से होता है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने मटर की नई किस्म विकसित की है, जो रोग प्रतिरोधी है और इसमें फली छेदक कीट भी नहीं लगेंगे।
गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, के वैज्ञानिकों ने मटर की नई किस्म पंत मटर-399 विकसित की है। विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग ने मटर की किस्मों एचएफपी-530 और पंत मटर-74 से इस नई किस्म को विकसित किया है।
पंत मटर-399 किस्म को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. रविंद्र कुमार पंवार बताते हैं, “मटर की खेती करने वाले किसान रतुआ, रस्ट जैसी बीमारियों से परेशानी होती, इन बीमारियों से किसान की लागत भी बढ़ जाती है और उत्पादन पर भी असर पड़ता है। विश्वविद्यालय लंबे समय से ऐसी किस्म विकसित करने के प्रयास में था, जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता दूसरी किस्मों के मुकाबले ज्यादा हो। 12 साल के शोध के बाद इस किस्म को विकसित कर पाएं हैं।”
दूसरी मटर की किस्मों में रोग की वजह से उत्पादन में कमी आ जाती है, पंत मटर-399 की खासियत है कि ये रतुआ, रस्ट, चूर्णील, फफूंदी, पाउडरी मिल्ड्यू जैसे बीमारियों की प्रतिरोधी है साथ फली छेदक कीट भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। दूसरी किस्मों में प्रति हेक्टेयर पैदावार 18-20 हेक्टेयर होती है, लेकिन रोग व कीट की वजह से पैदावार में कमी आ जाती है। पंत मटर-399 की औसत उपज 18-22 हेक्टेयर है, रोग व कीटों से प्रतिरोधी होने के कारण इसमें अच्छा उत्पादन मिलता है।
भारत में 5,415.52 हजार टन मटर का उत्पादन होता है, मटर की खेती करने वाले प्रमुख प्रदेशों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, झारखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य हैं, इसमें यूपी में देश का कुल 46.37 प्रतिशत मटर का उत्पादन होता है।
दूसरी किस्मों के तुलना में इस किस्म के पौधों की लंबाई भी ज्यादा होता है। दूसरी किस्मों की औसत लंबाई 60 से 70 सेमी होती है, जबकि पंत मटर-399 पौधे की औसत लंबाई लगभग 135-140 सेमी होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इससे एक पौधे में फलियां भी ज्यादा लगती हैं। यह किस्म लगभग 125-130 दिन में तैयार हो जाती है।
गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड से 2021 से पंत मटर-399 बीज किसानों को मिलेगा। किसान सीधे विश्वविद्यालय से संपर्क कर बीज पा सकेंगे।