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सीडलेस खीरे की खेती: दूसरे किस्मों के मुकाबले अधिक उत्पादन देने वाली किस्म

सीडलेस खीरे की इस किस्म की खेती किसान साल में तीन बार कर सकते हैं, साथ ही यह किस्म दूसरी किस्मों के मुकाबले अधिक उत्पादन भी देती है।
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पिछले कुछ वर्षों में बाजार में सीडलेस खीरे की मांग बढ़ी है, लेकिन किसानों के सामने एक ही समस्या आती थी कि बीज कहां से खरीदे, जिससे बढ़िया उत्पादन कर सकें। ऐसे में किसान आईसीएआर-आईएआरआई द्वारा विकसित सीडलेस खीरे की खेती कर सकते हैं।

आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते किसानों के लिए पूसा समाचार लेकर आता है, जिसमें किसानों को नई जानकारी देने के साथ ही उनकी कई समस्याओं का हल किया जाता है। इस हफ्ते किसानों को सीडलेस खीरे की खेती की जानकारी दी जा रही है। आईएआरआई के शाकीय विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ एसएसए डे खीरे की खेती की के बारे में बताते हैं, “जैसे लोग जानते हैं कि पॉली हाउस में खीरे की खेती करते हैं तो उसमें कुछ खास प्रजातियां लगाई जाती हैं, इस तरह की प्रजातियों को हम पार्थेनोकार्पिक कुकुंबर या फ्रेंच कुकुंबर और कभी-कभी चाइनीज कुकुंबर कहते हैं।”

वो आगे कहते हैं, “ये खीरे की दूसरी प्रजातियों से अलग होता है, इसमें एक तो बीज नहीं होते हैं, दूसरा इसकी हर एक गांठ में एक-एक फ्रूट लगते हैं और कभी-कभी एक गांठ में एक से अधिक फल लगते हैं, इसलिए इस प्रजाति के खीरे में ज्यादा उत्पादन मिलता है।”

पूसा ने पार्थेनोकार्पिक खीरे की कुछ नई किस्में विकसित की हैं। डॉ डे आगे कहते हैं, “पूसा पार्थेनोकार्पिक खीरा-6, ये किस्म किसानों के बीच काफी प्रचलित है। अगर आपके पास कोई प्रोटेक्टेड स्ट्रक्चर, जैसे पॉली हाउस या नेट हाउस है तो साल में तीन बार इसकी खेती सकती है।”

अगर उत्तर भारत की बात करें तो इसे दो बार फरवरी-मई और जुलाई-नवंबर में नेट हाउस में लगाया जा सकता है। लेकिन अगर हम दक्षिण भारत में इसकी खेती करते हैं तो इसे साल में तीनों बार नेट हाउस में लगाना होता है, इस किस्म का बीज आप पूसा संस्थान से ले सकते हैं।

सीडलेस खीरे की खेती करने वाले प्रगतिशील किसान संतराम आर्य और आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ एसएसए डे।

सीडलेस खीरे की खेती करने वाले प्रगतिशील किसान संतराम आर्य और आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ एसएसए डे।

हरियाणा के पानीपत जिले के जलवाड़ा गाँव के प्रगतिशील किसान संतराम आर्य ने पिछले साल से नेट हाउस में सीडलेस खीरे की खेती शुरू की है। वो बताते हैं, “पूसा से मैं पूसा-6 बीज लेकर आया था, बहुत अच्छा उत्पादन मिल रहा है और पौधे भी अच्छे से विकसित हुए हैं। सबसे अच्छी बात है कि वहां का बीज भी सस्ता है।”

100 वर्ग मीटर के संरक्षित खेती में इससे 12-15 कुंतल खीरे का उत्पादन हो जाता है या तो इसमें खीरे के एक पौधे से 4-5 किलो तक खीरा मिल जाता है। औसत फल की लंबाई, चौड़ाई और वजन क्रमशः 14.24 सेमी, 3.45 सेमी और 105 ग्राम होता है।

पूसा पार्थेनोकार्पिक खीरा-6 उत्तर भारतीय मैदानों के लिए संरक्षित स्थिति में खेती के लिए उपयुक्त पार्थेनोकार्पिक गाइनोइसियस खीरा की पहली अतिरिक्त अगेती (पहली फल कटाई के लिए 40-45 दिन) उन्नत प्रजाति है। कम लागत वाले पॉलीहाउस के तहत सर्दियों के मौसम (ऑफ-सीजन, नवंबर-मार्च) के दौरान इसकी औसत फल उपज 126.0 टन/हेक्टेयर (1260 किग्रा/100 एम2) है।

इसके फल बोआई के 40-45 दिन बाद (बेमौसमी, नवंबर-मार्च) सर्दियों के मौसम में कम लागत वाले पॉलीहाउस में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। औसत फल का वजन 105 ग्राम है। प्रस्तावित किस्म को व्यावसायिक रूप से उगाया जा सकता है और लाइसेंसधारी/स्वदेशी बीज उद्योगों द्वारा मूल के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है।

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