केले के फल तोड़कर जिस तने को किसान बेकार समझकर फेक देते हैं, उस बेकार तने से कई तरह के सामान बनाते हैं कुशीनगर के किसान रवि प्रसाद।
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर सेवरही ब्लॉक के हरिहरपुर गाँव के रहने वाले 36 वर्षीय रवि ने तीन साल पहले ही जिले में केले के रेशे से तमाम तरह के उत्पाद बनाने का काम शुरु किया था। ये अब तक 450 महिलाओं और 55 से 60 पुरुषों को अपने इस काम से जोड़ चुके हैं। जिले में 10-12 लोग इसकी फैक्ट्री भी लगा चुके हैं। दूसरे जिले के किसान रवि से इसका प्रशिक्षण लेने आते हैं। रवि, सूरत और अहमदाबाद में केले के रेशों की सप्लाई करते हैं, वहां इसकी साड़ियां बनती हैं।
रवि प्रसाद अपने स्टॉल पर लगे सामानों की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, “तीन साल की मेहनत से हम लोग बैग, कालीन, चप्पल, मैट या जिस भी तरह के सामान का ऑर्डर मिलता है सब बनाते हैं। हमारी इस पहल को सरकार ने ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोजेक्ट’ (ओडीओपी) के तहत शामिल किया है।”
“एक मेले में ढाई से तीन लाख रुपए तक की बिक्री हो जाती है जिसमें सवा से डेढ़ लाख रुपए मुनाफ़ा हो जाता है। किसान को केले के फल के साथ-साथ उस तने के भी पैसे मिलते हैं जिसे पहले वो फेंक देते थे। जिले की बेरोज़गार महिलाओं को इससे रोज़गार मिला है,” रवि ने आगे बताया।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय, देश के सैकड़ों हुनरमंद दस्तकारों और शिल्पकारों को यूपी के लखनऊ में चल रहे 24वें हुनर हाट में अपने उत्पादों को बेचने का मौका दे रहा है। इस हुनर हाट में यूपी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोजेक्ट’ (ओडीओपी) को भी एक बड़ा मंच मिला है। लखनऊ के अवध शिल्पग्राम में 22 जनवरी से शुरु होकर 4 फरवरी तक चलने वाले इस हुनर हाट में उत्तर प्रदेश के 75 जिलों से उत्पाद आए हैं। इसमें हर जिले से वहां का प्रसिद्ध उत्पाद शामिल किया गया है। इसके अलावा देश के अलग-अलग राज्यों से वहां के विशेष उत्पाद इस हुनर हाट में सजे हैं। ये हुनर हाट सैकड़ों हुनरमंदों को उनके उत्पाद की मार्केटिंग का एक बड़ा प्लेटफॉर्म दे रहा है।
इस वीडियो से करिए पूरे हुनर हाट की सैर :
रवि बताते हैं, “हमारे जिले में सैकड़ों एकड़ में केले की फ़सल होती है। केले के तने से जब रेशे निकालते हैं तो बहुत सारा कूड़ा निकलता है उससे हम लोग आर्गेनिक खाद बना लेते है। ये खाद खेतों में डालने से 15 से 20 प्रतिशत उपज बढ़ जाती है। किसी तालाब में मछली के लिए जब ऑक्सीजन कम हो जाती है तो केले का पानी डाला जाता है। हम अपने उत्पादों में केले के पानी में ही रंग मिलाकर कलर करते हैं ये रंग कभी छूटता नहीं है।” कुशीनगर जिले में 5,000 हेक्टेयर के इलाके में केले की फसल होती है। यहां से देश के कई बड़े शहरों में बड़े पैमाने पर केले का निर्यात किया जाता है।
रवि बताते हैं कि इस रेशे के उत्पाद बनाने के लिए छोटा सेटअप ढाई लाख रुपए और बड़ा सेटअप पांच लाख रुपए में लग जाता है। आमदनी के अनुसार लागत छह महीने या एक साल में निकल आती है।
आपके दिमाग में केले के बेकार तने से उत्पाद बनाने का विचार कहाँ से आया? इस सवाल के जवाब में रवि प्रसाद कहते हैं, “तीन साल पहले दिल्ली के प्रगति मैदान में लगी एक प्रदर्शनी में गया था, वहां एक स्टॉल पर केले के तने से बैग, योगा मैट, चटाई, चप्प्ल, कालीन देखा। वहीं से मुझे ख्याल आया कि हम अपने जिले में भी इसे शुरु कर सकते हैं। मैं कोयंबटूर में 28 दिन की ट्रेनिंग लेकर आया। अब तो मैं अपने जिले और दूसरे जिले में भी किसानों को ट्रेनिंग देता हूँ।”
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