लखनऊ। छत्तीसगढ़ के बालोद ज़िले के सोनई डोंगरी गाँव के किसान मुकेश साहू का रुझान खेती में नहीं था। लेकिन आज वो भी किसान बन गए हैं और अरहर और सहजन की खेती कर रहे हैं। मुकेश साहू गाँव कनेक्शन के पाठकों से अपनी बातें साझा कर रहे हैं कि कैसे उन्होंने गुजरात में जाकर किसान बनने की सोची।
हमारे गाँव में लोग पारंपरिक खेती करते आ रहे हैं, लेकिन खेती करने के बारे में कभी ध्यान से नहीं सोचा था। मेरी खेती में कैसे रुचि हुई मैं दूसरे किसान से बताना चाहता हूं। इसी साल फरवरी में मेरे यहां के कुछ किसानों ने महाराष्ट्र में हो रही गन्ने की खेती का उन्नत तरीका देखने की इच्छा जाहिर की। मैं पुणे मे रहता हूं तो मैंने उन आठ किसानों को पुणे के आस-पास हो रही गन्ने की खेती देखने के लिए आमंत्रित किया।
मेरी खेती-बाड़ी में रुचि न के बराबर थी, फिर भी किसानों के साथ मैं भी खेतों में घूमने गया और देखा कि किस तरह बेहतर तकनीक का उपयोग करके कम से कम मजदूरी या लागत के साथ उन्नत खेती की जा रही है। जिस तरह से महाराष्ट्र के किसानों ने हमारा मार्गदर्शन किया उससे मैं काफी प्रभावित हुआ। एक दिन एक वीडियो देखा जिसमें दिखाया गया था कि प्रति एकड़ सौ टन गन्ने का उत्पादन कैसे ले सकते हैं और उस वीडियो में सुगरकेन ग्रोवर्स ऑफ इंडिया (गन्ना उत्पादक किसान समूह, भारत) का जिक्र किया गया था, जोकि सूरत, गुजरात के रहने वाले नवनीत पटेल ने बनाया है, मैं तुरंत ही उस ग्रुप से जुड़ गया।
इधर मन में विचार चल ही रहा था कि इस साल गाँव में हो रही खेती मे कुछ बदलाव किया जाए। तभी एक दिन सुगरकेन ग्रोवर्स ऑफ इंडिया ग्रुप के किसान भाई आशुतोष देशमुख जी ने अपने खेत मे लगाए गए अरहर का फ़ोटो डाला, जिसे देख मऩ मे विचार आया कि क्यों न हम लोग भी इस बार अरहर को खेत मे मुख्य फसल की तरह लगाकर देखें। छत्तीसगढ़ में बारिश अधिक होने के कारण धान की खेती की जाती है।
थोड़ा बहुत अरहर खेत के मेड़ मे लगा दिया जाता है। मैंने बिल्कुल भी देरी न करते हुए आशुतोष जी को फ़ोन लगाया आशुतोष जी ने मुझे फोन पर ही खेत मे अरहर लगाने की सारी जानकारी दी जैसे की कतार से कतार की दूरी, पौधे से पौधे की दूरी, बीज लगाने का तरीका, पौधे की बढ़वार के लए कटाई -छटाई इत्यादि। इतना ही नहीं आशुतोष जी ने अपने खेत मे लगाए जा रहे सहजन (ड्रमस्टिक) की खेती के बारे मे भी बताया जो कि हमारे लिया बिल्कुल ही नया था।
अरहर और सहजन की खेती के बारे मैंने अपने गाँव मे बताया तो उनको अच्छा तो लगा लेकिन मन में एक डर था कि हम ठीक से इसकी खेती कर पाएंगे कि नहीं फिर एक विचार आया कि क्यों न आशुतोष जी के यहां जाकर खेत देखकर आया जाए। गाँव से मेरे चाचा जी अपने एक किसान मित्र के साथ अगले दिन शाम को अमरावती के लिए निकले। इधर मैं भी अपने एक एक दोस्त के साथ पुणे से अमरावती के लिए निकल पड़ा। सुबह आठ बजे हम लोग अमरावती पहुंच गए। फिर अमरावती में ही एक रिटायर्ड इंजीनियर, जो की सहजन की खेती कर हैं, उनके घर गए और सहजन की खेती की सारी जानकरी ली। उनसे ओडीसी किस्म का बीज भी लिया। हिम्मत और भी बढ़ी जब पता चला कि सहजन बहुत ही कम खर्च में अच्छा मुनाफा देने वाली फसल है। तभी तो हम एक एकड़ के बजाए ढाई एकड़ के लिए बीज लेकर आए।
वहां पर हमने अरहर की धारवाड़ पद्धति से बुवाई के बारे में जाना। आशुतोष जी ने हमें अपने बाकी का खेत दिखाया जिसमें सहजन, केला और संतरा लगा हुआ था। खेत देखकर लगा कि हमें भी ऐसी ही मिश्रित खेती करना चाहिए, जिससे अगर एक फसल मे नुकसान हो भी जाए तो दूसरे फसल से भरपाई हो। आशुतोष जी ने बीज बोने और खरपतवार निकालने की भी मशीन बनाई है, जिससे बहुत ही कम समय मे बुवाई और खरपतवार निकालने का काम किया जा सकता है, ऐसी छोटी मशीन तो हर एक किसान के पास होनी चाहिए, खासकर जब खेत मे काम करने वाले मजदूरों की बहुत कमी है।
हम लोग बहुत सारी नई चीजें सीख कर वापस अमरावती के लिए रवाना हो रहे थे। मैं तो कहूंगा कि हर किसान को जो परिवर्तन चाहता है, एक बार ज़रूर दूसरे सफल किसानों के खेतों में जाकर देखना चाहिए। निश्चित ही नया सीखने को मिलेगा।
आखिर में हम ने दो एकड़ मे खेत में अरहर और दो एकड़ में सहजन लगा दिया है। इतना ही नहीं अरहर लगाने की विधि से प्रभावित होकर आसपास के गाँव के दस से भी अधिक किसान पहली बार खेतों मे अरहर लगा रहे हैं।