मक्का भारत में गेहूं के बाद उगाया जाने वाली दूसरी महत्वपूर्ण फ़सल है। हमारे देश के अधिकांश मैदानी भागों से लेकर 2700 मीटर ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों तक मक्का सफलतापूर्वक उगाया जाता है। यह एक बहुपयोगी फ़सल है क्योंकि मनुष्य और पशुओं के आहार का प्रमुख अवयव होने के साथ ही औद्योगिक दृष्टिकोण से भी यह महत्वपूर्ण भी है।
भारत में इस फ़सल के खेती लगभग 1600 ई० के अन्त में ही शुरू की गई और वर्तमान में भारत संसार के प्रमुख उत्पादक देशों में एक है। भारत में मक्का की विविध क़िस्में उत्पन्न की जाती है जो कि शायद ही किसी अन्य देश में सम्भव हो। इसका प्रमुख कारण भारत की जलवायु की विविधता हैं।
कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और विटामिनों से भरपूर मक्का शरीर के लिए ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत है साथ ही बेहद सुपाच्य भी. इसके साथ मक्का शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्वों जैसे कि फ़ासफ़ोरस, मैग्निशियम, मैगनिज, ज़िंक, कॉपर, आयरन इत्यादि से भी भरपूर फ़सल है।
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भारत में मक्का की खेती तीन ऋतुओं में की जा सकती है, ख़रीफ़ (जून से जुलाई), रबी (अक्टूबर से नवम्बर) एवं ज़ायद (फ़रवरी से मार्च)।
यह समय मक्का की बुवाई के लिए खेतों को तैयार करने का उचित समय है। मानसून का आरम्भ अर्थात वर्षा के आगमन के साथ मक्का बोना चाहिए, परंतु अगर सिंचाई के पर्याप्त साधन हो तो 10-15 दिन पहले भी बुवाई की जा सकती है। बीज की बुवाई मेड़ के किनारे व ऊपर 3-5 सेमी. की गहराई पर करनी चाहिए। बुवाई के एक माह बाद मिट्टी चढ़ाने का कार्य करना चाहिए। बीज को बोने से पहले किसी फंफूदनाशक दवा जैसे थायरम या एग्रोसेन जी.एन. 2.5-3 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से उपचारित करके बोना चाहिए। बीज को एजोस्पाइरिलम या पी.एस.बी.कल्चर (5-10 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करना चाहिए।
पौधे लगाते हुए उनके बीच की दूरी का ध्यान रखना भी आवश्यक है। बीज को बोने के दौरान पौधों में अंतर लगाए जाने वाली प्रजाति के अनुसार होना चाहिए उदाहरण के लिए शीघ्र पकने वाली प्रजातियों (70-75 दिन) में कतार से कतार में 60 सेमी. एवं पौधे से पौधे-20 सेमी., मध्यम/देरी से पकने वाली प्रजातियों के लिए कतार से कतार-75 सेमी. पौधे से पौधे-25 सेमी. और हरे चारे के लिए कतार से कतार: 40 सेमी. और पौधे से पौधे में 25 सेमी. की दूरी रखना उचित रहता है।
मक्का की क़िस्में
अवधि के आधार पर मक्का की क़िस्मों को निम्न चार प्रकार में बाटा गया है:
अति शीघ्र पकने वाली किस्में (75 दिन से कम)- जवाहर मक्का-8, विवेक-4, विवेक-17, विवेक-43, विवेक-42, प्रताप हाइब्रिड मक्का-1.
शीघ्र पकने वाली किस्में- (85 दिन से कम)- जवाहर मक्का-12, अमर, आजाद कमल, पंत संकुल मक्का-3, चन्द्रमणी, प्रताप-3, विकास मक्का-421, हिम-129, डीएचएम-107, डीएचएम-109, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-1, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-2, प्रकाश, पी.एम.एच-5, प्रो-368, एक्स-3342, डीके सी-7074, जेकेएमएच-175, हाईशेल एवं बायो-9637.
मध्यम अवधि मे पकने वाली किस्में (95 दिन से कम)- जवाहर मक्का-216, एचएम-10, एचएम-4, प्रताप-5, पी-3441, एनके-21, केएमएच-3426, केएमएच-3712, एनएमएच-803 , बिस्को-2418
देरी की अवधि मे पकने वाली (95 दिन से अधिक )– गंगा-11, त्रिसुलता, डेक्कन-101, डेक्कन-103, डेक्कन-105, एचएम-11, एचक्यूपीएम-4, सरताज, प्रो-311, बायो-9681, सीड टैक-2324, बिस्को-855, एनके 6240, एसएमएच-3904.
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खेत की तैयारी ऐसे करें
भूमि की तैयारी करते समय 5 से 8 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे मिलाना चाहिए और भूमि परीक्षण उपरांत जहां जस्ते की कमी हो वहां 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट वर्षा से पूर्व डालना चाहिए। खेतों में डाले जाने वाले खाद व उर्वरक की मात्रा भी चुनी हुयी प्रजाति पर ही निर्भर करती है जो निन्मवत है:
शीघ्र पकने वाली क़िस्मों के लिए :- 80 : 50 : 30 (N:P:K)
मध्यम पकने वाली क़िस्मों के लिए:- 120 : 60 : 40 (N:P:K)
देरी से पकने वाली क़िस्मों के लिए:- 120 : 75 : 50 (N:P:K)
मक्का की खेती के दौरान खाद व उर्वरक की सही विधि अपनाने से मक्का की वृद्धि और उत्पादन दोनों को ही फ़ायदा होता है। जैसे कि डाली जाने वाली पूरी नाइट्रोजन की मात्रा का तीसरा भाग बुआई के समय, दूसरा भाग लगभग एक माह बाद साइड ड्रेसिंग के रूप में, तथा तीसरा और अंतिम भाग नरपुष्पों के आने से पहले। फ़ोसफ़ोरस और पोटाश दोनों की पूरी मात्रा को बुआई कि समय मिट्टी में डालना चाहिए जिससे ये पौधों के जड़ो से होकर पौधों में पहुँच सके और उनकी वृद्धि में अपना योगदान दे सकें।
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सिंचाई
मक्के के फ़सल को अपने पूरे फ़सल अवधि में 400-600 मिमी. पानी की आवश्यकता होती है। पानी देने की महत्वपूर्ण अवस्था पुष्पों के आने और दानों के भरने का समय होता है अतः इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है। मक्के के खेत में 15 से 20 व 25 से 30 दिनों तक खर-पतवार नियंत्रण व निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। खरपतवार को निकलते वक़्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो जड़ से नष्ट हो, बीच से टूटने से वो और तीव्रता से बढ़ते हैं।
मक्का एक ऐसी फ़सल है जिसके साथ अंतरवर्ती फ़सले भी उगायी जा सकती हैं, जैसे उरद, बोरो या बरबटी, मूँग, सोयाबीन, तिल, सेम इत्यादि। मौसम के अनुसार अंतरवर्ती फ़सल के रूप में सब्ज़ियों को उगा सकते है जो किसानों के लिए वैकल्पिक आय का माध्यम बन सकता है।
कटाई और भंडारण
प्रजाति के आधार पर फ़सल के कटाई की अवधि होती है, जैसे चारे वाली फ़सल को बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी क़िस्म बोने के 75-85 दिन बाद, व संकर और संकुल क़िस्म बोने के 90-115 दिन बाद काटना होता है। कटाई के समय दानों में लगभग 25 प्रतिशत तक नमी रहती हैं।
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कटाई के बाद मक्का फ़सल में सबसे महत्वपूर्ण कार्य गहाई है इसमें दाने निकालने के लिये सेलर का उपयोग किया जाता है। सेलर नहीं होने की अवस्था में साधारण थ्रेशर में सुधार कर मक्का की गहाई की जा सकती है इसमें मक्के के भुट्टे के छिलके निकालने की आवश्यकता नहीं है।
कटाई व गहाई के पश्चात प्राप्त दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करना चाहिए। दानों को बीज के रूप में भंडारण करने के लिए इन्हें इतना सुखा लेना चाहिए कि नमी करीब 12 प्रतिशत रहे।
“लेखिका डॉ. प्रीति उपाध्याय उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की निवासी हैं। विज्ञान में स्नातक, इलाहाबाद कृषि संस्थान से आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन में परास्नातक एवं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि संस्थान से ‘आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन’ में डॉक्टरेट की डिग्री लेने के बाद आजकल दिल्ली विश्वविद्यालय में कृषि आनुवांशिकी के क्षेत्र में अनुसंधानरत हैं।”