लखनऊ। मध्य प्रदेश के किसानों पर मौसम एक बार फिर कहर बनकर टूटा है। कई जिलों में जहां भारी बारिश से सोयाबीन की पूरी फसल बर्बाद हो गयी है तो कहीं बारिश न होने से फसल मुरझा रही है। किसान संकट में हैं। जलवायु परिवर्तन किसानों के लिए आफत लेकर आया है, ऐसे में परेशान किसान मुआवजे की मांग को लेकर प्रदर्शन भी कर रहे है।
मध्य प्रदेश के सिहोर जिले में आधी से ज्यादा सोयाबीन की फसल भारी बारिश की भेंट चढ़ चुकी है। परेशान और हताश किसान कलेक्ट्रेट के चक्कर काट रहे हैं। खराब फसलों की प्रदर्शनी लगा रहे हैं तो जल सत्याग्रह करके उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
सीहोर में सबसे ज्यादा नुकसान कोलांस नदी से सटे गांवों में हुआ है। कोलंसकला, ढाबला, भोजनगर, उलजावन सहित दर्जनों गांव तो ऐसे गांव हैं जहां पूरी फसल ही बर्बाद हो चुकी है। ढाबला के किसान माखन राजपूत बताते हैं “भारी बारिश के कारण नदी का पानी खेतों में भर गया। पूरी फसल बर्बाद हो गयी। इस साल फसल अच्छी थी, हम उम्मीद कर रहे थे कि बढ़िया मुनाफा होगा, लेकिन सब चौपट हो गया।”
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वहीं कोलंसकला के रवि धर्मेंद्र मेवाड़ कहते हैं “मेरी भी पूरी फसल बर्बाद हो गयी है। ज्यादा बारिश के कारण पेड़ गिर गये हैं। अब उनका उठना मुश्किल है। अब हम जाएं तो कहां जाएं। सरकार से गुहार लगा रहे हैं। 15 एकड़ की खेती खत्म हो गयी है। अब तो बस मुआवजे का ही आसरा है, हम इसके लिए रुक-रुककर जल सत्याग्रह भी कर रहे हैं।”
सीहोर में इस साल अब तक 114 सेमी से ज्यादा बारिश हो चुकी है। जबकि पिछले साल इस अवधि में महज 51 सेमी बारिश हुई थी। इतनी बारिश की उम्मीद किसानों को भी नहीं थी। ऐसे में सोयाबीन और उड़द की फसल चौपट हो गयी है। सीहोर के एसडीएम वरुण अवस्थी कहते हैं “गांव में फसलें खराब हुई हैं। हमने खुद जाकर निरीक्षण लिया है। नुकसान का आकलन अभी किया जा रहा है।”
खंडवा के तहसील बंधाना, गांव पोखरपुर के युवा किसान सोनू तोमर बताते हैं “इस बार हमारे यहां बहुत बारिश हुई है। खेतों में पानी लग गया है। 10 एकड़ में से लगभग छह एकड़ की फसल खराब हो गयी है। वर्ष 2016 का मुआवजा अब जाकर मिला है, वो भी पूरा नहीं। इस साल तो और नुकसान होने की आशंका है। बताया जा रहा है कि अभी और बारिश होने वाली है, ऐसे में बची खुची फसल भी बर्बाद हो जाएगी।”
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ये तो रही बारिश की बात। अब वहां नजर डालते हैं जहां बारिश समय पर नहीं हुई और सोयाबीन की फसल बर्बाद हो गयी। इंदौर के छोटा बांगड़गांव, वार्ड नंबर १६ में रहने वाले किसान सुधांशु शुक्ला बताते हैं “30 एकड़ में लगी सोयाबीन की फसल बर्बाद होने के कगार पर है। धूप खूब कड़क हो रही है। लेकिन पानी नियमित रूप से न मिल पाने के कारण फसल उठ नहीं पा रही। पौधे सूखने लगे हैं। अगर एक दो दिन में बारिश नहीं होती तो बहुत ज्यादा नुकसान हो जाएगा। अब सब ऊपर वाले के हाथ में है।”
मध्य प्रदेश में सोयाबीन का रकबा इस साल बढ़ा है। यहां 44.41 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन लगाया गया है जबकि महाराष्ट्र में 32.13 लाख हेक्टेयर और राजस्थान में 9.45 लाख हेक्टेयर है। लेकिन रकबा बढ़ने से इस बात की गारंटी तो नहीं दी सकती कि पैदावार भी बढ़ेगी, कम से कम मौसम के मिजाज को देखकर तो ये सोचा ही जा सकता है। कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन एक बार फिर किसानों के लिए काल बनने जा रहे है।
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शाजापुर जिले के तहसील कालापीपल, गांव कोटरी के किसान कमलेश ठाकुर भी बहुत परेशान हैं। वे बताते हैं “ऐसा नहीं है कि बारिश नहीं हुई है, लेकिन बारिश तब नहीं हो रही जब सोयाबीन को इसकी आवश्यकता रहती है। एक से नौ सितंबर तक सोयाबीन को एक पानी चाहिए होता है, लेकिन यहां की धूप देखते हुए लग रहा है कि आगमी कुछ दिनों तक बारिश नहीं होने वाली है। 10 एकड़ में लगी सोयाबीन की फसल का रंग बदल रहा है, एक दो दिन में बारिश नहीं होती तो पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी।”
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोयाबीन रिसर्च सेंटर इंदौर के निदेशक डॉ वीएस भाटिया कहते हैं “अगर आप मालवा क्षेत्र को देखेंगे तो यहां सोयाबीन की फसल बहुत अच्छी हुई है। बाकि जलवायु परिवर्तन का असर तो पड़ ही रहा है। इससे भीब बचाव के तरीकों पर हम लगातार काम कर रहे हैं। ऐसी प्रजातियों पर काम कर रहे हैं जिस पर बदलते मौसम का विपरीत असर न पड़े।”