बुंदेलखंड समेत यूपी के कई जिलों में किसान सोयाबीन से काटेंगे मुनाफे की फसल
Ashwani Nigam 19 May 2017 6:32 PM GMT

लखनऊ। सोयाबीन और उससे बनने वाले खाद्य एवं पेय पदार्थों की मांग पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। देश में अधिकतर राज्य सोयाबीन की खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले दशक से ही प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में सोयाबीन की खेती की शुरुआत हुई है। बुंदेलखंड के सभी जिलों के साथ ही बदायूं, शाहजहांपुर, रामपुर, बरेली और मेरठ में सोयाबीन की खेती हो रही है। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग प्रदेश के दूसरे जिलों में भी सोयाबीन की खेती बढ़े इसके लिए किसानों के लिए प्रयासरत है। इसी को देखते हुए खरीफ सीजन की फसल माने जाने वाले सोयाबीन की खेती के लिए इस बार कृषि विभाग ने 40 हजार हेक्टेयरे में खेती का लक्ष्य रखा है।
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आपको बता दें कि इससे पूर्व खरीफ 2016 में 30 हजार हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन विभाग इस लक्ष्य को भी पूरा नहीं कर पाया था। हालांकि इस बार विभाग इसके लिए पहले से ही प्रयासरत है। विभागीय अधिकारियों के अनुसार सोयाबीन का रकबा बढ़ाने के लिए इस बार किसानों के बीच सोयाबीन का 5100 कुंतल बीज अनुदान के रूप में वितरित किया जाएगा।
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इस बाबत उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया ''प्रदेश के किसान सोयाबीन की खेती करके समृद्ध हो सके, इसके लिए विभाग की तरफ से किसानों को हर संभव मदद दी जा रही है। खरीफ अभियान 2017 में सोयाबीन की खेती का रकबा बढ़ाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया जा चुका है। ''
भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर के कृषि वैज्ञानिक भी उत्तर प्रदेश में सोयाबीन की खेती करने के लिए यहां के किसानों का जागरूक कर रहे हैं। यहां के प्रधान वैज्ञानिक डाक्टर एमपी शर्मा ने बताया ''खरीफ सीजन में सोयाबीन की बुवाई जून के पहले सप्ताह से लेकर जुलाई के दूसरे सप्ताह तक की जाती है। ऐसे में जो किसान इसकी खेती करना चाहते हैं वह अभी से खेतों की तैयारी शुरू कर दें। '' उन्होंने बताया कि इसके लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें, इसके बाद दो-तीन जुताइयां कल्टीवेटर या देशी हल से करके पाटा चलाकर खेत तैयार कर लें। सोयाबीन की बुवाई के लिए 75-80 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की दर से करें साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि सोयाबीन का अंकुरण 75-80 प्रतिशत होना चाहिए।
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सोयाबीन की बुवाई करने से पहले बीज का उपचार जरूरी है। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने देश के अलग-अलग राज्यों के लिए सोयाबीन की उन्नत किस्मों की अनुशंसा की है। जिसमें उत्तर प्रदेश के लिए पीके-472, जेएस-71-5, पीएस-564, जेएस-2, जेएस-93-5, जेएस-72-44, जेएस-75-46, पूसा-20, पीके-416, पूसा-16 और एनआरसी-37 नामक प्रजातियां की खेती ठीक होगी और इससे किसानों को अच्छी उपज भी मिलती है।
कुपोषण को दूर करने में सहायक है सोयाबीन
सोयाबीन में 40-45 प्रतिशत प्रोटीन और 20-22 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है, इसलिए सोयाबीन देश में प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण का मुकाबला कर सकता है। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. विनित कुमार ने बताया कि आइसोफ्लावोनेस, टोकोफेरोल और लेसिथिन जैसे न्यूट्रा के कारण दैनिक आहार में सोयाबीन के उपयोग से कई घातक बीमारियों जैसे स्तन कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, हड्डियों की कमजोरी के खतरे को कम किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के इतने गुण होने के बावजूद भी देश में उत्पादित कुल सोयाबीन का केवल 5 प्रतिशत ही खाद्य पदार्थों के लिए उपयोग हो रहा है। ऐेसे में सोयाबीन के उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है।
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