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टमाटर : कभी माटी मोल तो कभी 100 रुपए किलो, क्यों पहुंचती हैं कीमतें ?

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लखनऊ। टमाटर वो सब्जी है, जिसकी कीमतें साल में कुछ दिन सुर्खियों में रहती हैं। इस बार भी देश के कई हिस्सों में टमाटर 100 रुपए प्रति किलो बिका लेकिन महज डेढ़ महीने पहले यही टमाटर मंडियों में फेंका जा रहा था। आखिर वजह क्या है जो टमाटर हर साल ‘लाल’ हो जाता है?

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की फुटकर मंडियों में टमाटर की कीमतें 80 रुपए से गिरकर 50 तक पहुंच गई हैं लेकिन आम लोग अब भी टमाटर खरीदने से पहले दो बार सोच रहे हैं। लोग जब ठेले पर रखे टमाटर पर हाथ रखने से सहमने लगते हैं, सियासत शुरू हो जाती है।

महंगे टमाटर का मुद्दा विधानसभा के अंदर उठा तो बाहर कांग्रेस ने टमाटर के साथ प्रदर्शन किया। लखनऊ में कांग्रेस ने बैंक ऑफ टमाटर तक खोल दिया तो सोशल मीडिया में टमाटर चुटकुला बन चुका है, जबकि सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक हर साल लगभग एक लाख करोड़ की सब्जियां और फल सड़ जाते हैं।

पिछले 14 वर्षों में देश में टमाटर की पैदावार तो बढ़ती रही लेकिन इसका लाभ न तो टमाटर उगाने वाले किसानों को हुआ और न ही आम उपभोक्ताओं को, अगर किसी को लाभ मिला तो सिर्फ बड़े व्यापारी और बिचौलियों को।

डॉ. राकेश सिंह, एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट के प्रोफेसर और क्वॉर्डिनेटर, बीएचयू

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आम उपभोक्ता को भले ये लगता हो इतना महंगा टमाटर बिकने से किसान मालामाल हो गया होगा लेकिन हालात बिल्कुल उलट हैं। फैजाबाद के रामनगर धौरहरा में रहने वाले किसान विवेक सिंह (31 वर्ष) ने सर्दियों के सीजन में एक एकड़ टमाटर लगाए थे। वो बताते हैं, ‘आज की कीमतें सुन-सुन कर खून जलता है। फरवरी से लेकर अप्रैल तक मेरे टमाटर को मंडी में कोई पूछने वाला नहीं था। कई बार तो एक पूरा कैरेट (25 किलो) पांच रुपए में बेचना पड़ा। यहां तक की ट्रॉली से उतरवाई और खेत में तुड़वाई जेब से देनी पड़ी।’ विवेक जैसे देश में लाखों किसान मिलेंगे जिनकी टमाटर की खेती में लागत नहीं निकली। कई किसानों ने खेत के खेत जोत दिए।

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देश में टमाटर के दामों में अचानक से कमी और बढ़ोतरी के साथ ही बिचोलियों की क्या भूमिका होती है, इसको जानने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के कृषि अर्थशास्त्र विभाग के वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया। ‘टमाटर मार्केट इंटेलीजेंस परियोजना’ के तहत पिछले 14 वर्षों में देशभर में टमाटर की पैदावार, मंडियों में टमाटर की आवक और मूल्यों का अध्ययन किया गया।

आज की कीमतें सुन-सुन कर खून जलता है। फरवरी से लेकर अप्रैल तक मेरे टमाटर को मंडी में कोई पूछने वाला नहीं था। कई बार तो एक पूरा कैरेट (25 किलो) पांच रुपए में बेचना पड़ा। यहां तक की ट्रॉली से उतरवाई और खेत में तुड़वाई जेब से देनी पड़ी।

विवेक सिंह, किसान

इस परियोजना को हेड करने वाले बीएचयू के एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट के प्रोफेसर और क्वॉर्डिनेटर डॉ. राकेश सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, ‘पिछले 14 वर्षों में देश में टमाटर की पैदावार तो बढ़ती रही लेकिन इसका लाभ न तो टमाटर उगाने वाले किसानों को हुआ और न ही आम उपभोक्ताओं को, अगर किसी को लाभ मिला तो सिर्फ बड़े व्यापारी और बिचौलियों को।’

वो बताते हैं, ‘अध्ययन में पता चला कि जब टमाटर की बंपर पैदावार होती है तो भंडारण क्षमता का बहाना बनाकर बड़े व्यापारी जानबूझकर दाम कम कर देते हैं, जिससे किसान सस्ते में बेचना मजबूरी हो जाता है, इसी का फायदा उठाकर बड़े जमाखोर टमाटर को स्टोर कर लेते हैं, जिससे मंडियों में टमाटर की आवक कम हो जाती और इसके दाम बढ़ जाते हैं।’

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भारत में विश्व का कुल 4.46 प्रतिशत टमाटर होता का उत्पादन होता है। देश में आलू और प्याज के बाद सबसे ज्यादा उपयोग टमाटर का ही होता है। देश में 767 हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती होती है, जिससे हर साल 16385 मीट्रिक टन टमाटर पैदा होता है लेकिन इसमें से आधा टमाटर भी देश में स्टोर करने की सुविधा नहीं है।

डॉ. चंद्रसेन, अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर, बीएचयू

टमाटर समेत दूसरी सब्जियों के लिए बारिश जहर की तरह काम करती है। मिर्च-टमाटर और बेल वाले सब्जियां, सब सड़ जाती हैं। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और कर्नाटक मुख्य उत्पादक राज्य हैं। वैसे तो टमाटर अब देश में सालोंसाल होने लगा है लेकिन सर्दियों वाला टमाटर फरवरी से जून तक उत्पादन होता है। विवेक वबाते हैं, ‘पहली बारिश के साथ ही उत्तर भारत की टमाटर की फसल चौपट हो जाती है। उस वक्त दक्षिण से टमाटर आता है जो आवागमन शुल्क के चलते महंगा बिकता है। अगर हमारे यहां सब्जियों वाले कोल्ड स्टोर होते तो किसान खुद अपने टमाटर रखता और कम से कम 20-25 दिन तो फायदा उठाता, इससे कीमतें इतनी नहीं बढ़तीं।’

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आलू की वजह से टमाटर पर पड़ता है असर

टमाटर मार्केट इंटेलीजेंस परियोजना के अध्ययन में बताया गया कि टमाटर कीमत को अप्रैल से लेकर जून तक कम रखा जाता है लेकिन इसके बाद जब मानसून आता है तो इसके दाम को बढ़ा देते हैं। डॉ. राकेश सिंह ने बताया कि टमाटर के दामों को बढ़ाने में देशभर में सरकारी कोल्ड स्टोरेज की कम संख्या भी जिम्मेदार है। उन्होंने बताया कि देशी में 5170946 मीट्रिक टन कोल्ड स्टोरेज की क्षमता है। इसमें से जो 95 प्रतिशत कोल्ड स्टोरेज हैं वह प्राइवेट सेक्टर के हैं। 3 प्रतिशत सहकारिता और मात्र 2 प्रतिशत पब्लिक सेक्टर का है। देश में मौजूद कोल्ड स्टोरेज की कुल क्षमता का 75 प्रतिशत में आलू का भंडारण किया जाता है। जिसका असर भी टमाटर पर पड़ता है।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के कृषि अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. चंद्रसेन बताया, ‘भारत में विश्व का कुल 4.46 प्रतिशत टमाटर होता का उत्पादन होता है। देश में आलू और प्याज के बाद सबसे ज्यादा उपयोग टमाटर का ही होता है। देश में 767 हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती होती है, जिससे हर साल 16385 मीट्रिक टन टमाटर पैदा होता है लेकिन इसमें से आधा टमाटर भी देश में स्टोर करने की सुविधा नहीं है।’

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने भी अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि देश में कोल्ड स्टोरेज की संख्या कम होने के कारण कर साल लगभग एक लाख करोड़ की फल-सब्जियां हर साल सड़ जाती हैं, आईसीएआर के लुधियाना स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी ने इस रिपोर्ट में टमाटर का खास तौर पर जिक्र करते हुए टमाटर के लिए अलग से कोल्ड स्टोरेज और टमाटर के विपणन की निगरानी करने का सुझाव दिया है।

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