इस बात में कोई दोराय नहीं है कि भारत के किसान नए भारत की नींव रख रहे हैं। वे हमारे उन सैनिकों जैसे ही हैं, जो राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिए सीमाओं की रक्षा करते हैं। उनका समर्पण, प्रतिबद्धता और योगदान किसी से कम नहीं है, ये दोनों देश के लिए अपने जीवन का बलिदान करने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में, सरकार को किसानों की जायज शिकायतों का निपटारा युद्धस्तर पर करने के लिए बाध्य होना चाहिए और उनके आत्मसम्मान का ध्यान रखना चाहिए, जिससे वे दूसरे कामकाजों में लगे अपने साथियों की तरह ही ज़िंदगी अच्छे से बिता सकें।
फसल की उत्पादकता बढ़ाकर लागत को कम किया जा सकता है और इससे खेती से होने वाली आय भी बढ़ेगी। इसके लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है, बीज। अच्छे बीज से ही अच्छी फ़सल मुमकिन है। बीज की बेहतर किस्मों के इस्तेमाल से ही कृषि में सफलता पाई जा सकती है। लेकिन सच बात यह है कि भारतीय किसानों के पास इन दोनों ही चीज़ों की बहुत कमी है। ऐसा नहीं है सरकार को ये बातें मालूम ही नहीं रहीं, लेकिन सरकार बीज उपलब्ध करवाने वाली एजेंसियों पर कोई दबाव नहीं डालती कि वे किसान के भले को देखते हुए अपना कारोबार करें। इसमें निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र की एजेंसियां शामिल हैं।
बीज की लोकप्रिय क़िस्मों के तथाकथित ‘प्रमाणित बीज’ आमतौर पर खुली मंडियों से प्राप्त किए जाते हैं, प्रॉसेस के बाद उन्हें लॉट-संख्या दी जाती है और फिर ‘राष्ट्रीय स्तर एजेंसियों’ के थैले में पैक कर दिए जाते हैं। यही बीज किसानों को मुहैया करवाए जाते हैं। इसके अलावा, लगातार नॉन-डिसक्रिप्ट बीजों का बड़ा हिस्सा खुले टेंडरों के ज़रिए प्राप्त किया जाता है, और इसे सिस्टम में लाकर किसानों को संकट में डाला जाता है।
भारतीय कृषि को ज़्यादा उत्पाद, ज़्यादा फायदा देने वाली और गतिशील बनाने के लिए इन बातों का ध्यान रखा जाना ज़रूरी है:
1. ओपन टेंडर के माध्यम से प्रमाणित बीज की खरीद पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना और केंद्र द्वारा समर्थित राष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों के ज़रिए ही किसानों को बीज की आपूर्ति करना। बिना बिके हुए ख़राब बीजों को नए बीच के साथ मिलाकर फिर से बेचने के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
2. भारत सरकार के कृषि मंत्रालय का समर्थन पाने वाले ‘नेशनल सीड्स कॉर्पोरेशन’ को हरियाणा, राजस्थान और कर्नाटक की हज़ारों हेक्टेयर खेती की ज़मीन पर बीजों का सही इस्तेमाल करने के निर्देश दिए जाने चाहिए। एसएफसीआई और एनएससी के मिलने के बाद यह और ज़रूरी हो गया है।
3. नकली बीज के स्रोत से निपटने के लिए ‘सीड सर्टिफिकेशन सिस्टम’ को पुनर्जीवित करें; नई नीति तैयार करने के लिए एक उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समिति नियुक्त करें; तकनीकी ऑडिट के लिए बीज लेखा परीक्षकों का एक पूल बनाएं और स्वास्थ्य और बीज की शुद्धता को प्रमाणित करने वाली बहु-विषयक वैज्ञानिक टीम को शामिल करें।
4. अलग-अलग तरह की फसल के लाखों टन बीजों को, 10 साल के भीतर केंद्र सरकार के खर्च पर एक राज्य से खरीदकर दूसरी जगह भेजा जाना बंद कर देना चाहिए, ये बर्बादी है।
5. पिछले 5 वर्षों की जारी जलवायु-स्मार्ट किस्मों को किसानों के हाथों में होना चाहिए, जिससे वे जलवायु परिवर्तन की प्रतिकूलताओं से लड़ सकें। नई पीढ़ी की किस्मों का मातृ बीज, बीज गुणा अनुपात के आधार पर 1-5 किलोग्राम, कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से प्रत्येक जिले में उन इच्छुक किसानों को सौंप दिया जाना चाहिए, जो बदले में किसानों को गुणवत्ता वाले बीज का उत्पादन करने और फार्म सेव्ड बीज के रूप में उपयोग करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
6. आईसीएआर और एसएयू के कमोडिटी संस्थानों को राज्यों में जलवायु-स्मार्ट किस्मों के बुनियादी बीज और केवीके को आपूर्ति करने के लिए प्राथमिकता निर्धारित करनी चाहिए, जिसके लिए उन्हें लागत की प्रतिपूर्ति के लिए एमओए, जीओआई के लिए सूचना के साथ जारी किया गया था।
इनके अलावा, सरकार की नाक के नीचे बिचौलिए द्वारा किसानों के बढ़ते शोषण ने किसान समुदाय की रीढ़ तोड़ दी है। अब वक्त हो गया है कि प्राथमिकता से केंद्र में सबसे विश्वसनीय सरकार को बढ़ती कलह का एहसास होना चाहिए और अपना वजन क्षति नियंत्रण में रखना चाहिए। इस समय सरकार के लिए ज़रूरी है कि आगे बढ़कर यह समस्या सुलझाए। अतीत, वर्तमान और भविष्य की सरकारों को समझ जाना चाहिए कि किसान भीख नहीं मांग रहे हैं, बल्कि अपने बकाया की मांग कर रहे हैं, और कृषि में निवेश पर सही तरीके से वापसी कर रहे हैं।
एक जातिविहीन समुदाय किसानों का तुष्टिकरण, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सेवा करने के लिए अपनी जड़ें फैलाने का सबसे अच्छा तरीका है।
(यह लेख मूल रूप से डॉक्टर मुक्ति साधन बासु का लिखा हुआ है।)