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श्री विधि से धान की रोपाई, कम लागत में मिलेगा ज्यादा उत्पादन

धान की रोपाई की परंपरागत विधि में लागत भी ज्यादा लगती है और उत्पादन भी उतना नहीं मिल पाता है, लेकिन श्री विधि से धान की रोपाई में समय के साथ लागत भी कम लगती है और उत्पादन भी ज्यादा मिलता है।
sri vidhi

कैमूर (बिहार)। अगर अभी भी आप धान रोपाई की परंपरागत विधि अपना रहे हैं, तो आपको किसान राम बिहारी सिंह से सीखना चाहिए, जो श्री विधि से धान की खेती करके न केवल लागत कम कर रहे हैं, बल्कि दूसरी विधियों के मुकाबले ज्यादा उत्पादन भी पा रहे हैं।

बिहार के कैमूर जिले के रामगढ़ ब्लॉक के ठकुरा गाँव के रहने वाले किसान रामबिहारी सिंह पिछले दस साल से श्रीविधि से धान की खेती कर रहे हैं। अब तो दूसरे किसान भी उनसे श्रीविधि की जानकारी लेने आते हैं और श्रीविधि से धान की खेती भी करने लगे हैं।

रामबिहारी सिंह बताते हैं, “जब मैंने श्रीविधि से खेती करनी शुरू की तो उस समय लोग कहते थे कि यह विधि सफल नहीं हो पाएगी। लेकिन जब मैंने शुरु किया तो उत्पादन सामान्य खेती से ज्यादा था। उसके बाद लोगों ने मेरे विधि से खेती करने के बारे में सोचा। आज बहुत लोग श्रीविधि से खेती कर रहे हैं। जमीन तो वही है, लेकिन जनसंख्या निरन्तर बढ़ रही है, उसको देखते हुए। हमें नई तकनीक से खेती करनी ही पड़ेगी। नई तकनीक से ही उत्पादन में बढ़ोतरी हो सकती है।”

श्रीविधि के फायदे गिनाते हुए रामबिहारी सिंह कहते हैं, “श्रीविधि के बहुत सारे फायदे हैं, जैसे कि इसमें बीज बहुत कम लगता है। इसमें एक एकड़ के लिए दो किलो बीज पर्याप्त रहता है। हमेशा अच्छे क्वालिटी के बीच का चयन करें। बीजोपचार के लिए सबसे पहले नमक का घोल बनाते हैं, इसके बाद उसमें एक अंडा डालते हैं, अगर अंडा तैरने लगता है तो समझिए नमक और पानी का घोल तैयार हो गया है। अंडे को निकालकर उसमें दो किलो बीज डाल दीजिए। जो बीज तैरने लगे उसे निकालकर फेक दें और जो बीज नीचे बैठ जाए वो सही बीज होता है।”

आगे की प्रक्रिया के बारे में वो बताते हैं, “इसके बाद धान को इस पानी से निकालकर दूसरे पानी में रातभर के लिए भिगो दें। फिर इसे पानी से छानकर जूट के बोरे में रख दें, और कुछ घंटों के बाद जब बीज अंकुरित होने लगे तो उसका कार्बेंडाजिम से उपचार कर दें। उपचार करने बाद फिर इसे जूट के बोरे से 12-14 घंटों के लिए भिगो दें। ये बीज नर्सरी में डालने के लिए तैयार हो जाता है। नर्सरी के लिए पांच फीट चौड़ा और बीस फीट लंबा बेड तैयार कर लेते हैं। इस बेड पर बीज का अंकुरण बहुत अच्छा होता है। एक बेड पर आधा किलो बीज के साथ पांच किलो वर्मी कम्पोस्ट डालते हैं। इसके बार इसको पुआल से ढ़क देते हैं। 12-15 दिनों में नर्सरी रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।”

नर्सरी तैयार होने के बाद धान रोपाई की बारी आती है। 12-15 की दिन की तैयार नर्सरी रोपाई के लिए तैयार हो जाती है, जब पौधे में कुछ पत्तियां निकल जाती हैं। नर्सरी से पौधे निकालते समय खास बात रखनी चाहिए, जिससे कि बीज से पौधे का तना न टूटे और एक-एक पौधा निकल जाए और सबसे जरूरी बात नर्सरी निकालने के एक घंटे अंदर रोपाई कर देनी चाहिए।

रोपाई करने के लिए एक रस्सी से नापकर रोपाई की जाती है। रोपण के समय अंगूठे और वर्तनी से सावधानी से पौधों की रोपाई करें। रस्सी से बनाए निशान पर एक समान दूरी पर पौधों को रोपा जाता है। नर्सरी से निकालने के बाद पौधों की मिट्टी को बिना धोए और बीज सहित ज्यादा गहराई में नहीं लगाया जाता है।

किसान राम बिहारी सिंह पिछले 10-12 साल से श्रीविधि से खेती कर रहे हैं। ये 16 बीघा में धान की खेती करते हैं। धान दो से ढ़ाई लाख रुपए की कमाई हो जाताी है। जबकि दूसरे किसान जो पारम्परिक तरीके से खेती करते हैं, वह एक लाख से ज्यादा का धान नहीं बेच पाते थे। वे कहते है कि लोग पारम्परिक खेती को छोड़ना नहीं चाहते हैं। आज समय की मांग है कि अब हमें समय के साथ खेती के तौर तरीके बदलने की जरूरत है।

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