गरीबी का एक कारण ये भी : कृषि की नई तकनीक अपनाने में पीछे हैं यूपी और बिहार के किसान

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   27 Nov 2017 2:48 PM GMT

गरीबी  का एक कारण ये भी : कृषि की नई तकनीक अपनाने में पीछे हैं यूपी और बिहार के किसानकमज़ोर बाज़ार व्यवस्था और किसानों के बीच सरकारी योजनाओं की पहुंच में कमी से किसानों को नहीं मिल रहा लाभ

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। भारत में कृषि क्षेत्र में बदलते समय के साथ साथ किसान नई तकनीकों से जुड़ रहे हैं। लेकिन उत्तर भारत में खस्ता बाज़ार व्यवस्था और किसानों तक सरकारी योजनाओं की पहुंच में कमी यूपी और बिहार के किसानों को नई कृषि तकनीकों को अपनाने में बाधक बन रही हैं।

लखनऊ जिले के गोसाईगंज ब्लॉक के जौरास गाँव में किसान रामदयाल सिंह ( 60 वर्ष) छह एकड़ खेत में धान की खेती करते है। धान की खेती के लिए वो बीज गोसाईगंज बाज़ार की प्राईवेट दुकान से खरीद कर लाते हैं। रामदयाल बताते हैं, “हर साल की तरह इस बार भी हमने 50 किलो सांभा मसूंरी धान बाज़ार से लेकर खेत में लगाया है। बरसात से पानी अच्छा मिल गया है, लग रहा है कि अबकी बार धान बढ़िया होगा।’’

किसान रामदयाल की तरह ही प्रदेश में हज़ारों की संख्या में किसान फसलों के बीज के लिए सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल न करके प्राईवेट दुकानों पर ही निर्भर रहते हैं। ऐसे में उन्हें अधिक उपजाऊ व उन्नशील बीजों की जानकारी नहीं मिल पाती है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान विभाग के अनुसार दक्षिणी राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में खस्ता बाज़ार व्यवस्था और किसानों के बीच सरकारी योजनाओं की पहुंच की कमी के कारण इन राज्यों के 75 फीसदी किसान खेती की नई तकनीकों से अनजान हैं।

ये भी पढ़ें - महिला पशुपालकों को कब मिलेगी पहचान

उत्तर प्रदेश के रामदयाल से विपरीत गुजरात के कुदसत गाँव के किसान नवनीत ईश्वर भाई पटेल (55 वर्ष) वैसे तो गन्ने की खेती मुख्यरूप से करते हैं, लेकिन खेत के कुछ क्षेत्र में वो धान की भी खेती करते हैं। नवनीत बताते हैं,'' हमारे यहां हर एक पंचायत पर कॉप्रेटिव सोसाइटी होती है। इन सोसाइटी में किसानों को सस्ते दर पर धान का बीज मिल जाता है। इससे किसानों को बीज के लिए दुकानों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते हैं।''

फसल कटने के बाद किसानों को कृषि उत्पाद बेचने के लिए नहीं बनाई गई कोई व्यवस्था -

कृषि मंत्रालय, भारत सरकार व्दारा जारी की पोस्ट हार्वेस्ट प्रोफाइल रिपोर्ट, 2015-16 के मुताबिक भारत के दक्षिणी राज्यों में किसानों को (पोस्ट हार्वेस्ट एग्री फेसिलिटीज़) फसल कटने के बाद दी जाने वाली सुविधाओं पर सरकारों ने अच्छा काम किया है। यूपी और बिहार जैसे राज्यों में यह व्यवस्था अभी नहीं लागू हो पाई है।

लखनऊ के बीकेटी ब्लॉक के अटेसुआ गाँव के किसान फखरूद्दीन ( 41 वर्ष) की गिनती केले की खेती करने वाले बड़े किसानो में होती थी।लेकिन फल मंडी में केला बेचने के लिए उन्हें अपनी उपज का दस फीसदी हिस्सा आढ़ति को देना पड़ता था।इसलिए उन्होंने अब केले की खेती करना छोड़ दिया है। फखरूद्दीन बताते हैं," पहले हम तीन एकड़ में केले की खेती करते थे, जिसमें हमें 25 किलो केला (एक पौध से) आसानी से मिल जाता था। केला कितना भी अच्छा हो पर मंडी में आढ़ति को उसका दस पर्सेंट देना ही पड़ता था। खेती में घाटे की वजह से अब केले की खेती नहीं करते हैं।''

उत्तर प्रदेश में सरकार ने केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए खासतौर पर टिश्यू कल्चर तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन अभी भी उत्तर प्रदेश सहित पूरे उत्तर भारत में केले की खरीद व बिक्री के लिए कोई पर्याप्त ढांचाकृत व्यवस्था नहीं बनाई जा सकी है।जबकि मौसमी सब्जियों व केले की खरीद व बिक्री के लिए तमिलनाडु और ओडिसा जैसे राज्यों में सबसे अच्छी ढांचाकृत व्यवस्थाएं हैं।

केंद्र सरकार की पोस्ट हार्वेस्ट प्रोफाइल रिपोर्ट वर्ष 2015-16 यह बताती है कि तमिलनाडु में केले की फसल कटाई के बाद सबसे जल्द (10 दिनों) के भीतर फसल का उचित निपटान किए जाने की व्यवस्था बनाई गई है। इसके लिए राज्य में अधिकतर मंडियों में कोल्ड स्टोर यूनिट बनाए गए हैं, जहां केला ज़्यादा दिनों तक स्टोर करके रखा जा सकता है।वहीं ओडिसा में सब्जी व फलों की कटाई के बाद किसान अपनी फसल को सीधे तौर खुदरा विक्रेताओं को सरकार व्दारा तय किए गए दामों पर बेचते हैं।
किसानों की आय बढ़ाने व उत्तर भारत में कृषि विस्तार पर शोध कर रहे बनारस हिंदू विश्व विद्यालय में कृषि विज्ञान विभाग के प्रमुख पी एस बादल बताते हैं,'' यह बात बिलकुल सच है कि जिस तरह भारत में दक्षिणी व पश्चिमी भारतीय राज्यों में किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए ठोस बाज़ार व्यवस्था बनाई गई है। उनकी तुलना में यूपी और बिहार में न के बाराबर काम हुआ है। आधुनिक बाज़ारों की कमी ने किसानों की निवेश की क्षमता को कम कर दिया है।इससे किसान पिछड़ते जा रहे हैं।''

छोटी जोत में किसान नहीं कर पाते आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रयोग -

यूनिवर्सिटी अॉफ एग्रीकल्चर साइंस, कर्नाटक के मुताबिक भारत के दक्षिणी राज्यों की तुलना में उत्तर भारत के किसानों के पास सबसे अधिक छोटी जोत के खेत हैं। छोटी कृषि भूमि होने के कारण किसान अपने खेतों में आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रयोग नहीं कर पाते हैं। ऐसे में वो खेती के पुराने तौर -तरीकों पर ही निर्भर रहते हैं। कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश के मुताबिक यूपी में लगभग दो करोड़ 30 लाख किसान हैं, जिनमें से 92. 5 प्रतिशत यानी 2.15 करोड़ लघु एवं सीमांत किसान हैं।सीमांत एवं लघु किसान वो हैं, जिसकी जोत 2.50 एकड़ से कम की है।वहीं बिहार सरकार व्दार जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक बिहार में कुल मिलाकर एक करोड़ चार लाख किसान हैं। इनमें से 83 फीसदी सीमांत किसानों के पास एक हेक्टेयर से कम ज़मीन है।

ये भी पढ़ें - आदिवासी क्षेत्रों में कृषि को मिलेगा बढ़ावा, भारतीय कृषि विभाग ने शुरू की कई योजनाएं

कर्नाटक राज्य में रायचूर क्षेत्र के कृषि विज्ञान विश्व विद्यालय के कृषि विशेषज्ञ डॉ. जे आर पाटिल बताते हैं,'' उत्तर भारत की तुलना में तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में सरकार का केवीके मौडल बहुत अधिक विकसित है। कर्नाटक में कृषि विश्वविद्यालयों की मदद से गाँवों में जाकर किसानों को मौसम के अनुसार फसलों का चयन व मिट्टी के अनुसार खेती करने की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है।'' वो आगे बताते हैं कि कर्नाटक में कृषि विभाग व्दारा किसानों को उनके नज़दीकी केवीके से लिंक किए जाने की व्यवस्था बनाई गई है,जिससे किसान फोन पर ही कृषि विशेषज्ञों से खेती की राय ले लेते हैं।सरकारी योजनाओं के बारे में भी उन्हें जानकारी रहती है।

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

uttar pradesh banana Bihar केला उत्तर प्रदेश KVK टिश्यू कल्चर BHU तमिलनाडु कृषि विभाग सरकारी योजनाओं तकनीकी केवीके बनारस हिंदू विश्वविद्यालय भारतीय कृषि सांभा मंसूरी धान खस्ता बाज़ार व्यवस्था पोस्ट हार्वेस्ट प्रोफाइल रिपोर्ट यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस कर्नाटक लघु एवं सीमांत tissue cluture post harvest profile report university of agriculture science karnataka 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.