लखनऊ। किसान अगर खेती से ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं तो उसमें गैरपरंपरागत खेती का योगदान ज्यादा है। स्ट्रॉबेरी की खेती भी किसानों को अपनी ओर लुभा रही है। पहले ऐसी मान्यता थी कि इसकी पैदावार ठंडे प्रदेशों में ही संभव है, लेकिन अब अपेक्षाकृत गर्म प्रदेशों में भी इसकी पैदावार हो रही है और किसान इससे बंपर मुनाफा कमा रहे हैं। एक एकड़ की फसल में किसान पांच से छह लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं।
बेहद नाजुक, खाने में हल्का खट्टा और मीठा स्वाद लिए स्ट्रॉबेरी दिल के आकर का होता है। चटख लाल रंग का ये पहला ऐसा फल है जिसके बीज बाहर होते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा की स्ट्रॉबेरी की 600 किस्में मौजूद हैं और ये सभी अपने स्वाद रंग रूप में एक दूसरे से भिन्न होती है। स्ट्रॉबेरी में अपनी एक अलग ही खुशबू के लिए पहचानी जाती है। जिसका फ्लेवर कई सारी आइसक्रीम आदि में किया जाता है। इसमें कई सारे विटामिन और लवण होते हैं जो स्वास्थ के लिए काफी लाभदायक होते हैं। इसमें काफी मात्रा में विटामिन सी और, विटामिन ए और के पाया जाता है।
पहले ये ठंडे प्रदेश में होती है। लेकिन अब इसकी खेती उत्तर प्रदेश के भी कई जिलों में होती है। लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में भी किसानों का रुझान इसकी ओर बढ़ रहा है। ऐसे ही यहां के एक किसान हैं सतेंद्र वर्मा। सतेंद्र पहले टमाटर और केले की खेती करते थे, लेकिन अब वे भी स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। सतेंद्र बताते हैं “मैं करीब एक से डेढ़ एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहा हूं। सतेंद्र बताते हैं, पिछले दिनों में घूमने हिमाचल प्रदेश गया था, वहां मैंने स्ट्रॉबेरी की खेती देखी और फिर इसका रेट पता किया। उसी दौरान ख्याल आया अपने खेत में हो सकती है क्या। इसके बाद मैंने एक कंपनी से प्लांट खरीद कर थोड़ी खेती की। सब ठीक रहा तो इस बार रकबा बढ़ा दिया है।”
स्ट्रॉबेरी पहाड़ी इलाकों का पौधा है और देश के बारी इलाकों में ज्यादातर जगहों पर ये पॉली हाउस में उगाया जाता है। लेकिन कुछ किसान खुले में भी फसल ले रहे हैं। सतेंद्र ने पिछले साल सितंबर में प्लांटेशन किया था और नवंबर के आखिरी हफ्ते में उनके खेत में फल निकलने शुरु हो गए थे।
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हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्ट्रॉबेरी की नर्सरी तैयार करने वाले ठाकुर अर्जुन चौधरी बताते हैं “मोटा-मोटी हिसाब देखेंगे तो एक मजदूरी सहित कुल खर्च तीन से साढ़ तीन लाख रुपए बैठता है। छह महीने की इस फसल से किसान बड़ी आसानी से पांच से छह लाख रुपए तक की कमाई कर सकतें हैं।”
अर्जुन स्ट्रॉबेरी की नर्सरी तो तैयार करते ही हैं, साथ ही स्ट्रॉबेरी की खेती के विशेषज्ञ हैं। उनसे बातचीत के आधार स्ट्रॉबेरी की खेती की पूरी जानकारी नीचे दी जा रही है। ऐसे किसान जो पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहते हैं, उनके लिए ये जानकारी बेहद उपयोगी साबित हो सकती है।
स्ट्रॉबेरी की प्रमुख किस्में
भारत में स्ट्रॉबेरी की अधिकतर किस्में बाहर से मंगवाई हुई हैं। व्यावसायिक रूप से खेती करने के लिए प्रमुख किस्में निम्नलिखित हैं, विंटर डाउन, विंटर स्टार, ओफ्रा, कमारोसा, चांडलर, स्वीट चार्ली, ब्लैक मोर, एलिस्ता, सिसकेफ़, फेयर फाक्स आदि।
मिट्टी और जलवायु
वैसे तो इसकी खेती के लिए कोई मिट्टी तय नहीं है फिर भी अच्छी उपज लेने के लिए बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है। इसकी खेती के लिए ph 5.0 से 6.5 तक मान वाली मिट्टी भी उपयुक्त होती है। यह फसल ठंडी जलवायु वाली फसल है जिसके लिए 20 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है। तापमान बढ़ने पर पौधों में नुकसान होता है और उपज प्रभावित हो जाती है।
कैसे करें खेत की तैयारी
सितंबर के प्रथम सप्ताह में खेत की तीन बार अच्छी जुताई कर ले फिर उसमे एक हेक्टेयर जमीन में 75 टन अच्छी सड़ी हुई खाद्य अच्छे से बिखेर कर मिट्टी में मिला दें। साथ में पोटाश और फास्फोरस भी मिट्टी परीक्षण के आधार पर खेत तैयार करते समय मिला दें।
बेड तैयार करना
खेत में आवश्यक खाद् उर्वरक देने के बाद बेड बनाने के लिए बेड की चौड़ाई दो फिट रखे और बेड से बेड की दूरी डेढ़ फिट रखे। बेड तैयार होने के बाद उस पर ड्रिप इरीगेशन की पाइपलाइन बिछा दें।
पौधे लगाने के लिए प्लास्टिक मल्चिंग में 20 से 30 सेमी की दूरी पर छेद करें। स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाने का सही समय 10 सितंबर से 15 अक्टूबर तक लगा देना आवश्यक है। यदि तापमान ज्यादा हो तो पौधे सितंबर लास्ट तक लगा लें।
खाद् और उर्वरक
स्ट्रॉबेरी का पौधा काफी नाज़ुक होता है। इसलिए उसे समय समय खाद् और उर्वरक देना जरूरी होता है। जो की आपके खेत के मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट को देखकर दे। मल्चिंग होने के बाद तरल खाद् टपक सिंचाई के जरिये दें। जिसमें नाइट्रोजन फास्फोरस p2o5 और पोटाश k2o को कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लेकर समय समय पर देते रहें।
सिंचाई
पौधे लगाने के बाद तुरंत सिंचाई की जानी चाहिए, समय-समय पर नमी को ध्यान में रखकर सिंचाई करना चाहिए, स्ट्रॉबेरी में फल आने से पहले सूक्ष्म फव्वारे से सिंचाई कर सकते हैं। फल आने के बाद टपक विधि से ही सिंचाई करें।
लो टनल का उपयोग
पाली हाउस नही होने की अवस्था में किसान भाई स्ट्रॉबेरी को पाले से बचाने के लिए प्लास्टिक लो टनल का उपयोग करें जिसमें पारदर्शी प्लास्टिक चादर, जो 100-200 माइक्रोन की हो उसका उपयोग करना चाहिए।
स्ट्रॉबेरी में लगने वाले कीट और रोग
कीटों में पतंगे, मक्खियां चेफर, स्ट्रॉबेरी जड़ विविल्स झरबेरी एक प्रकार का कीड़ा, रस भृग, स्ट्रॉबेरी मुकट कीट कण जैसे कीट इसको नुकसान पंहुचा सकते हैं। इसके लिए नीम की खल पौधों की जड़ों में डालें इसके अलावा पत्तों पर पत्ती स्पाट, ख़स्ता फफूंदी, पत्ता ब्लाइट से प्रभावित हो सकती है। इसके लिए समय-समय पर पोधों के रोगों की पहचान कर वैज्ञानिकों की सलाह में कीटनाशक दवाइयों का स्प्रे करें।
शासन की तरफ से अनुदान
अलग-अलग राज्यों में उद्यानिकी और कृषि विभाग की तरफ से अनुदान भी है। जिसमें प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन फुवारा सिंचाई आदि यंत्र पर 40 से 50% तक अनुदान भी मिल जाता है।
स्ट्रॉबेरी की तुड़वाई
जब फल का रंग 70 फीसदी तक असली हो जाये तो तोड़ लेना चाहिए। अगर मार्केट दूरी पर है तो थोड़ा सख्त ही तोड़ना चाहिए। तुड़वाई अलग-अलग दिनों में करनी चाहिए। स्ट्रॉबेरी के फल को नहीं पकड़ना चाहिए। ऊपर से दण्डी पकड़ें। औसत फल सात से बारह टन प्रति हेक्टयेर निकलता है।
पैकिंग
स्ट्रॉबेरी की पैकिंग प्लास्टिक की प्लेटों में करनी चाहिए। इसको हवादार जगह पर रखना चाहिए। जहां तापमान पांच डिग्री हो। एक दिन के बाद तापमान जीरो डिग्री होना चाहिए।