गन्ने की बुवाई का ये तरीका अपनाइए, उत्पादन दो से तीन गुना ज्यादा पाइए

Neetu SinghNeetu Singh   9 Dec 2017 7:20 PM GMT

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गन्ने की बुवाई का ये तरीका अपनाइए, उत्पादन दो से तीन गुना ज्यादा पाइएराकेश दुबे गन्ने की नर्सरी दिखाते हुए 

नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)। मध्यप्रदेश के किसान राकेश दुबे गन्ने की खेती करने वाले अपने क्षेत्र के सफल किसानों में से एक हैं। ये नये तौर-तरीके अपनाकर जैविक तरीके से गन्ने की लागत कम करते जा रहे हैं, और मुनाफा अच्छा कमा रहे हैं। गन्ने की पौध नर्सरी तरीके से बुआई करके इन्होंने एक एकड़ में 30 से 40 कुंतल बीज की बजाए दो से ढाई कुंतल बीज से अच्छा उत्पादन लिया है।

राकेश दुबे गन्ने की खेती का अपना 20 साल का अनुभव साझा करते हुते बताते हैं, “पहले जब गन्ने का बीज बोते थे तो लागत बहुत ज्यादा आती थी, एक एकड़ खेत में 30 से 40 क्विंटल बीज लगता था। इतने बीज का भाड़ा, मजदूरी, बीजोपचार का खर्चा बहुत ज्यादा होता था। ये बीज जमेंगे या नहीं ये बुआई के एक से डेढ़ महीने बाद पता चलता था।”

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राकेश गन्ने की खेती करने के दौरान कई जगह पर खेती के नये तौर तरीके सीखने जाते थे। गन्ने के बुआई के बीज की मात्रा कम करने का तरीका सीख चुके राकेश का कहना है, “पिछले तीन साल से गन्ने के एक आँख के टुकड़े की नर्सरी तैयार करके गन्ने की बुवाई कर रहे हैं, जब हम नर्सरी से गन्ने की बुआई करते हैं तो जून से मार्च के बीच कभी भी लगा सकते हैं जबकि बीज से बुआई करने में ऐसा सम्भव नहीं है। नर्सरी विधी से उत्पादन दो से तीन गुना बढ़ जाता है।”

नर्सरी पौधे से गन्ने की बुवाई करने से एक पेड़ में कई कंसे निकलते हैं

मध्यप्रदेश में 50 प्रतिशत से ज्यादा गन्ना उत्पादन नरसिंहपुर जिले में होता है। राकेश दुबे इस जिले के गन्ना उत्पादन के जागरूक किसानों में से एक हैं। इनकी ख़ास बात ये हैं कि खेती करते-करते इन्होंने कई नये तौर-तरीकों को खुद इजाद कर लिया है। जिससे इन्होंने न सिर्फ अपनी खेती की लागत कम की है बल्कि अपने मुनाफे में भी कई गुना इजाफा किया है।

#MadhyaPradesh #Farming आइये मिलवाते हैं एक ऐसे गन्ना किसान से जो न सिर्फ जैविक तरीके से खेती करते हैं बल्कि गन्ने के प्...

Posted by Gaon Connection on Saturday, October 28, 2017

नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर करताज गाँव के रहने वाले राकेश दुबे के पास 40 एकड़ जमीन है। जिसमे हर साल 25 से 30 एकड़ जमीन में ये गन्ने का उत्पादन करते हैं। जबसे इन्होने नर्सरी विधी से गन्ना लगाना शुरू किया है तबसे ये पौध से पौध की दूरी का ख़ास ध्यान रखते हैं जिससे इस खेत में और भी कई तरह की सहफसल ले पाते हैं। सहफसल लेने से एक खेत में कई गुना मुनाफा हो जाता है और एक फसल की लागत में कई फसलें उग जाती हैं।

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एक आँख से ऐसे तैयार होती है नर्सरी

राकेश दुबे पिछले तीन वर्षों से नर्सरी लगाकर गन्ने की खेती कर रहे हैं। कोकोपिट नर्सरी से पौधे तैयार करके न केवल खुद इस्तेमाल कर रहे हैं बल्कि पूरे देश के किसानों को 2 रुपए 75 पैसे प्रति पौधे मुहैया करा रहे हैं, जिसमे टांसपोर्ट का अलग से खर्च होता है।

राकेश सोशल मीडिया का भी पूरा उपयोग करते हैं, इनके पास खेती के लगभग 40 व्हाट्सएप ग्रुप हैं, जिसमें देशभर के किसान कृषि तकनीकि का आदान-प्रदान करते हैं। इनका फेसबुक पर शुगरकेन ग्रोवर आफ इण्डिया का पेज भी है, जहाँ पर ये किसानों के साथ जुड़कर अपना अनुभव साझा करते रहते हैं।

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नर्सरी पौधे लगाने से के एक पौधे से कई कंसे निकलते हैं, जिससे गन्ने का उत्पादन दो से तीन गुना बढ़ जाता है

पौध नर्सरी से बुआई के ये हैं फायदे

  • प्रति एकड़ खेत में केवल 4800 पौधों की जरूरत लगती है जिसमें केवल ढाई कुंतल बीज लगता है।
  • पौधे के अवागमन का खर्च बहुत कम रहता है।
  • ढाई कुंतल के बीजोपचार में केवल पांच रुपए का खर्च।
  • 10 मजदूरों द्वारा एक एकड़ में पौध रोपाई।
  • ट्रे में अंकुरित बीज ही लगाया जाता है।
  • 100 प्रतिशत अंकुरित पौधा ही लगता है, इससे खेत में कोई खाली जगह नहीं छूटती है।
  • जहाँ पर पौधा लगा होता है वहीं पर खाद दी जाती है जिससे खाद का उपयोग सीमित हो जाता है।
  • नया बीज एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना आसान होता है।
  • एक आँख की पद्यति अपनाने के कारण प्रति पौधा कंसों की संख्या अधिक होती है।

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दूर-दूर से नर्सरी देखने आते हैं लोग

ट्रे नर्सरी में लगी होने के कारण गन्ने की उम्र डेढ़ महीने अधिक मिल जाती है।

उम्र अधिक मिलने का मतलब स्वस्थ्य लम्बा और मोटा गन्ने का पौधा रहता है।

पहले से अंकुरित होने के कारण किसी भी मौसम में गन्ने का रोपण किया जा सकता है।

इन वैरायटी का करते हैं इस्तेमाल

राकेश गन्ने की छह-सात तरीके की वैरायटी का इस्तेमाल करते हैं। जिसमे 86032, 3102, 238, 8005, 1001, संकेश्वर 92, 93 वैरायटी का इस्तेमाल करते हैं।

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गन्ने के साथ लेते हैं सहफसल

नर्सरी विधी से उत्पादन दो से तीन गुना ज्यादा

नर्सरी विधी से गन्ना लगाने से उत्पादन दो से तीन गुना ज्यादा होता है। राकेश अपने बढ़े हुए उत्पादन का अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “पहले एक एकड़ में 200 से 300 कुंतल ही उत्पादन होता था, नर्सरी लगाकर प्रति एकड़ गन्ने का उत्पादन पहले से बढ़ रहा है। पिछली साल जैविक तरीके से एक एकड़ में 650 कुंतल और रासायनिक तरीके से 900 कुंतल का उत्पादन लिया है।” वो आगे बताते हैं, “गन्ने के बढ़े हुए उत्पादन के साथ-साथ इसमे दो से तीन सहफसल भी ले लेते हैं। नर्सरी विधी से एक पौधे में 10 से लेकर 20 नये कंसे निकलते हैं, सभी कंसे पूरे गन्ने में परिवर्तित हो जाते हैं। इसमें खाद, पानी उतना ही लगता है जितनी पौधे को जरूरत होती है।”

गेंहूँ, मूंग, सनई गन्ने में लगाने के बाद मूंग और सनई को रोटावेटर से मिट्टी में मिलाकर हरी खाद बनाकर पोषक तत्व प्रबंधन एवं मृदा सुधार में सफलता प्राप्त हो रही है।

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घर पर ही बनाते हैं जैविक खाद

रासायनिक तरीके रोककर पूरी तरह से आ गये जैविक खेती पर

राकेश चार देशी गाय के पालन से जैविक खादें खुद बना रहे हैं। ये गाय के गोबर और गोमूत्र से नाडेप, वर्मीकम्पोस्ट, वर्मीवाश, जीवामृत, घनसत बनाकर पूरे तरीके से जैविक खेती करते हैं। राकेश का कहना है, “जैविक तरीके से पिछले तीन सालों में जैविक कार्बन 0.27 से बढ़कर 1.01 हो गया है, सभी मुख्य तत्व मध्यम एवम उच्च उपलब्धता पर आ गये हैं।”

नर्सरी लगाने के ये हैं नये तरीके

राकेश ने पिछले तीन वर्षों में पौध नर्सरी की कई विधियाँ अपनाई हैं। जिसमें एक विधी ये है कि ट्रे या पालीबैग का इस्तेमाल न करते हुए खेत पर उठे हुए बेड पर सीधे गन्ने की एक आँख की गढ़ेरी का रोपण करके सीधे पौधे तैयार करना। इस तरीके से प्रति एकड़ मात्र 2 से ढाई कुंतल बीज लग रहा है। पौध तैयार करने के बाद खेत में पुन: रोपण करने में मात्र 1600 रुपए मजदूर खर्च आ रहा है। जो परम्परागत तरीके से खर्चा कई गुना कम हैं।

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राकेश के द्वारा लगाई गयी नर्सरी पूरे भारत के किसान मंगाते हैं

राकेश द्वारा अन्वेषित की गयी सेट बण्डल तकनीक जिसमें नर्सरी तैयार करने के लिए मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता है। एक आँख के टुकड़ों को 200 लीटर पानी एवम् 100 ग्राम शहद के घोल में डुबोकर पालीथिन बैग में पैक करकर एक अँधेरे कमरे में रख दिया जाता है। तीसरे दिन इसमें जड़ें एवम् अंकुर निकल आते हैं और इन आँखों को सातवें दिन खेत में पुन: रोपित कर दिया जाता है।

इस विधि के अलावा राकेश कोकोपिट और पौधशाला ट्रे विधि भी ये अपना रहे हैं। सेटबंडल टेक्नीक से उत्पादन 92 प्रतिशत तक मिलता है। इस विधि से गन्ना लगाने में दो कुंतल बीज एवम 1200 रुपए प्रति एकड़ का मजदूरी का खर्च आता है। इस तरीके से 12 हजार से लेकर 20 हजार रुपए तक प्रति एकड़ बचत होती है।

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गन्ने की फसल के साथ लेते हैं कई और फसलें

पौध नर्सरी से बुआई करते समय छह फुट की दूरी पर गन्ना लगाते हैं। बीज शोधन चूना, बीजमृत, घनसत से उपचारित होता है। खेत की नालियों में नीम खली, वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करते हैं, ड्रिप से जीवामृत और भस्म रसायन दिया जाता है।

गन्ने के खेत में लगायें हैं 20 हजार खमेर के पेड़

राकेश ने गन्ने के खेत के चारो तरफ खमेर के 20 हजार पौधे एग्रोफारेस्ट्री के तहत लगाये गये हैं। अभी तीन हजार पौधे और लगाने का लक्ष्य है। जो 10 साल बाद 60 लाख का अच्छा रिटर्न देंगे।

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राकेश खेत के चारो तरफ लगा चुके हैं 20 हजार पौधे

राकेश को कई अवार्ड से किया जा चुका है सम्मानित

जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2016 के लिए गन्ने की नर्सरी पद्यति के इनोवेशन के लिए जैविक खेती के लिए राकेश दुबे को ‘कृषक फेलो अवार्ड’ से सम्मानित किया जा चुका है। यह सम्मान इन्हें गन्ना में बीज की लागत मूल्य कम करने के प्रयासों, जैविक उत्पादों के उपयोग एव गुड़ उत्पाद की गुणवत्ता सुधार के लिए दिया गया है।

कृषि विभाग की तरफ से इन्हें कई बार किया जा चुका है सम्मानित

वर्ष 2017 में आत्मा परियोजना के अंतर्गत इन्हें गन्ने की जैविक खेती व पौध रोपण की नई तकनीकि को विकसित करने के लिए सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर द्वारा राकेश को किसान मेला सह-प्रदर्शनी में जैविक खेती को व्यापारिक स्वरूप प्रदान करने के लिए ‘कृषि उदय सम्मान’ से सम्मानित किया गया। राष्ट्रीय कृषि मेला 2017 में जैविक गुड़ के स्टाल को ‘उत्कृष्ट स्टाल’ से भी सम्मानित किया गया है। सहकारिता क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए इफको के 50 वें स्थापना दिवस पर डॉ. उदयशंकर अवस्थी प्रबंध निर्देशक द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया।

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राकेश खुद करते हैं अपनी फसल की देखरेख

प्रदेश के बहार छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश व गुजरात में आयोजित उन्नत कृषि के लिए किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए भी राकेश को सम्मानित किया जा चुका है।

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