बसन्तकाल में गन्ने की बुवाई का समय नजदीक आ गया है। ऐसे में उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद ने ट्रेंच विधि से की जाने वाली गन्ने की बुवाई के तरीके में कुछ संसोधन करते हुए एक नई ट्रेंच तकनीक इजाद की है। इस विधि से किसान अगर गन्ने की बुवाई करें तो समान्य विधि के मुकाबले करीब 40 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होगी। इस विधि से बुवाई शरद, बसन्त व देर बसन्त में सफलता पूर्वक की जा सकती है। यह विधि शरदकाल में अन्त: फसल के लिए विशेष उपयोगी है।
”ट्रेंच की इस तकनी में खेत तैयार करने के बाद ट्रेंच ओपनर से एक फीट चौड़ी और लगभग 25-30 सेमी गहनी नाली बनाते हैं। एक नाली से दूसरी नाली के बीच की दूरी 120 सेमी की होती है। नाली बनाने के बाद सबसे नीचे खाद डालते हैं,” ट्रेंच की संसोधित तकनीक के बारे में बताते हुए उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद के प्रसार अधिकारी ड़ॉ. एसके पाठक ने बताया, ”खाद की मात्रा एक हेक्टेयर में 180 किग्रा नाइट्रोजन, 80 किग्रा फास्फोरस, 60 किग्रा पोटास और 25 किग्रा जिंक सल्फेट। इसमें नाइट्रोजन की कुल मात्रा का बुवाई के समय एक तिहाई प्रयोग करते हैं। बाकी फासफोरस पोटास और जिंक सल्फेट डाल कर बुवाई करते हैं।”
बुवाई का समय
- बसन्त : 15 फरवरी से मार्च तक
- देर बसंत : अप्रैल से 15 मई तक
- शरद : 15 सितम्बर से अक्टूबर तक
गन्ने के बीज का चुनाव
गन्ने के बीज के लिए ऐसे गन्ने का चुनाव करना चाहिए जो लगभग 8 से 10 महीने का हो, जिसमें रोग व कीट न लगे हों। इसके अलावा हमे ध्यान रखना चाहिए कि हम बीज के लिए ऐसे ही गन्ने का चुनाव करें जिसमें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व दिया गया हो और गन्ना गिरा हुआ व बहुत पतला न हो।
बीज का उपचार
गन्ने के बीज की बुवाई करने से पहले उसे उपचारित करना बहुत ज़रूरी होता है। बीज को उपचारित करने के लिए बावस्टीन के 0.1 प्रतिशत घोल (112 ग्राम दवा को 112 लीटर पानी में मिलाकर) पांच मिनट पैड़ों को डुबोना चाहिए, उसके बाद बुवाई करनी चाहिए।
बीज दर
प्रति हेक्टेयर गन्ने की बुवाई के लिए लगभग 70-75 कुंतल गन्ना की आवश्यकता होती है। नाली में दो आंख के 10 गन्ने के टुकड़े प्रति मीटर की दर से डालने चाहिए।
गन्ना बुवाई व भूमि उपचार
नाली में दो आंख के उपचारित 10-12 गन्ने के टुकड़े प्रति मीटर की दर से सीढ़ीनुमा इस प्रकार डालें कि उनकी आंखें अगल-बगल में हों। दीमक व अंकुर बेधक नियंत्रण के लिए गन्ने के टुकड़ों के ऊपर रीजेन्ट 20 किग्रा या फोरेट 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर का छिड़काव या क्लोरपाइरीफास पांच लीटर प्रति हेक्टेयर को 1875 लीटर पानी के साथ गन्ने के टुकड़ों पर छिड़काव करना। गन्ने के टुकड़ों की ढकाई सावधानी पूर्वक इस प्रकार करें कि गन्ने के टुकड़ों के ऊपर 2-3 सेमी से अधिक मीट्टी न पड़े।
गन्ना जमाव
एक सप्ताह में जमाव शुरू हो जाता है तथा एक माह में पूरा हो जाता है। जमाव 80-90 प्रतिशत तक होता है जबकि सामान्य विधि से 40 से 50 प्रतिशत तक ही होती है। जमाव अधिक व समान रूप से होने तथा गन्ने के टुकड़ों को क्षैतिज रखने से नाली में दोहरी पंक्ति की तरह जमाव दिखता है जिसके कारण कोई रिक्त स्थान नहीं होता और पेड़ी की पैदावार भी पौधा गन्ने के समान होती है।
सिंचाई
- बुवाई के समय नमी की कमी या देर बसन्त की दशा में पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें।
- पर्याप्त नमी की दशा में बुवाई की गई हो तो पहली सिंचाई 2-3 दिन पर भी कर सकते हैं।
- मिट्टी के अनुसार ग्रीष्मकालीन में समाप्त के अन्तराल पर सिंचाई करना आवश्यक है।
- वर्षाकाल में 20 दिन तक वर्षा न होने की दशा में सिंचाई अवश्य करें। नाली में सिंचाई करने से प्रति सिंचाई 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है।
- नाली में सिंचाई करने से केवल 2.5-3 घण्टा प्रति हेक्टेयर का समय लगता है जिससे ईंधन/डीजल की बचत होती है।
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खरपतवार नियंत्रण
नाली में गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण करना कठिन है इसलिए मेट्रीव्युजीन 725 ग्राम प्रति हेक्टेयर तथा 2,4-डी सोडियम साल्ट 1.25 किग्रा प्रति हेक्टेयर को 1000 लीटर पानी में आवश्यकतानुसार 30 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए। छोटे किसान खुरपी से भी खरपतवार नियंत्रण कर सकते हैं।
मिट्टी चढ़ाना
जून के आखिरी सप्ताह में बैल चलित ट्रेंच ओपनर से जड़ों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए। इससे नाली की जगह पर मेड़ व मेड़ की जगह पर नाली बन जाती है जो जल निकास का काम करती है।
ट्रेंच विधि के लाभ
- इस विधि से फसल का जमाव 80-90 प्रतिशत होता है जबकि सामान्य विधि में 35-40 प्रतिशत होता है।
- प्रति सिंचाई 60 प्रतिशत पानी की बचत।
- ऊर्वरकों की बर्बादी नहीं होती है।
- गन्ना अपेक्षाकृत कम गिरता है।
- मिल योग्य गन्ने समान मोटे व लम्बे होते हैं जिसके कारण परम्परागत विधि की तुलना में 35-40 प्रतिशत अधिक उपज व 0.5 इकाई अधिक चीनी परता प्राप्त होती है।
- सामान्य विधि की तुलना में इस विधि से पेड़ी गन्ने की पैदावार 20-25 प्रतिशत अधिक होती है।
- भूमिगत कीट, ह्वाइट ग्रव एवं दीमक का आपतन कम होता है।
- इस विधि द्वारा गन्ने के बाद गन्ने के कुप्रभाव को कम किया जा सकता है, क्योंकि पेड़ी के बाद जहां गन्ना नहीं होता वहा पर गन्ने की बुवाई की जाती है।
- उत्तर भारत में उपज क्षमता व वास्तविक उपज में 35-40 प्रतिशत का अन्तराल है जिसे इस विधि द्वारा आसानी से पूरा किया जा सकता है।
- क्षेत्रफल मे बिना वृद्धि किये गन्ने की उत्पादकता बढ़ाने में वह विधि किसानों के लिए सुलभ एवं उपयुक्त विधि है।