किसान रजाउल हाजी की गन्ना की फसल पिछले कुछ दिनों में सूखने लगी, जब गन्ने को बीच से फाड़कर देखा तो पूरा गन्ना अंदर से लाल होकर सड़ गया है, ऐसा सिर्फ रजाउल हाजी की फसल में ही नहीं, आज पास के कई किसानों की फसलों का यही हाल है।
रजाउल हाजी (40 वर्ष) उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के कुंदरकी ब्लॉक के मलक फतेहपुर गाँव के रहने वाले हैं। रजाउल हाजी के बेटे सदफ अली गांव कनेक्शन से बताते हैं, “शुरू में गन्ने की फसल सूखने लगी थी, पहले तो समझ ही नहीं पाए कि क्या है, कई लोगों की फसल ऐसे ही हो गई थी। मेरे दस बीघा में यही बीमारी लगी है और ताया के यहां 7 बीघा में गन्ने का यही हाल है। एक लोग ने तो अपनी पांच बीघा फसल काट दी।”
दरअसल रजाउल हाजी और दूसरे किसानों ने गन्ना को की को 0238 किस्म लगाई है, जिसमें रेड रॉट बीमारी का सबसे अधिक खतरा रहता है, इस बीमारी को गन्ने का कैंसर भी कहा जाता है। इससे देखते ही देखते पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। सदफ अली आगे बताते हैं, “हमारे तरफ यह बीमारी पहली बाद आयी है, इसे हमने पहले गन्ना की फसल में नहीं देखा था।”
गन्ना की किस्म 0238 को गन्ना प्रजनन संस्थान के करनाल क्षेत्रीय केंद्र पर विकसित किया गया था, साल 2009 के बाद उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड जैसे कई राज्यों तक गन्ने की किस्म पहुंच गई। पश्चिमी व पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों में किसान इसी किस्म की खेती करते हैं। जैसे-जैसे सभी जिलों में इस किस्म का रकबा बढ़ा वैसे वैसे ही इस में बीमारियां बढ़ने लगी, सबसे ज्यादा असर रेड रॉट (लाल सड़न) का रोग रहा है।
ऐसा क्यों है कि रेड रॉट रोग का असर इसी किस्म पर ज्यादा है, इस बारे में भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संजीव कुमार बताते हैं, “देखिए जब कोई किस्म ज्यादा एरिया में हो जाती है, जिसे मोनो कल्चर कहते हैं, जिसमें एक ही किस्म को किसान ज्यादा एरिया में लगाते हैं। इसमें बीमारी बढ़ने लगती हैं। उत्तर प्रदेश में 90 फीसदी एरिया में इसी किस्म को किसान लगा रहे हैं, जिससे रेड रॉट बढ़ रहा है।”
रेड रॉट बीमारी में तने के अन्दर लाल रंग के साथ सफेद धब्बे के जैसे दिखते हैं। धीरे धीरे पूरा पौधा सूख जाता है। पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे दिखायी देते हैं, पत्ती के दोनों तरफ लाल रंग दिखायी देता है। गन्ने को तोड़ेंगे तो आसानी से टूट जाएगा और चीरने पर एल्कोहल जैसी महक आती है।
“ऐसा नहीं है कि गन्ने में रेड रॉट सिर्फ यूपी में ही दिख रहा है, यह पंजाब, हरियाणा और बिहार में रिपोर्ट किया गया है, “डॉ संजीव ने आगे कहा।
लेकिन हर एक किस्म की एक उम्र होती है, डॉ संजीव कहते हैं, “वैसे एक किस्म एक किस्म की उम्र 12 से 15 साल होती है, लेकिन किस्में 20 साल से अच्छी चल रही है, क्योंकि निर्भर करता है कि आप किस तरह से इसे मैनेज कर रहे हैं। अगर 30-40 प्रतिशत किस्में हैं तो ऐसी बीमारियां नहीं बढ़ती हैं।”
पिछले कुछ साल में जैसे जैसे गन्ना का एरिया बढ़ा उसी तरह ही यह बीमारी भी बढ़ रही है। “यह बीमारी साल 2017-18 में ही देखी गई थी, लेकिन उस समय लोग इसे छिपाते रहे, जिससे एरिया बढ़ता है। अगर उसी समय उस पर रोक लग जाती और एरिया कम हो जाता तो इतना फैल ही न पाता। जैसे लखीमपुर, बहराइच और कुशीनगर जिले जहां जो तराई एरिया हैं, जहां पानी ज्यादा लगता है। वहां भी 2018-19 में यह बीमारी देखी गई, पिछले साल तो कुशीनगर और लखीमपुर में तो बहुत नुकसान हुआ। इस बार भी यही हाल हुआ है, मान के चलिए तो किसान रोने की स्थिति में पहुंच गए हैं।”
इस बीमारी की शुरूआत तराई जिलों से हुई और अब यह पूरी तरह से पूरे प्रदेश में फैल गई है।
चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग, उत्तर प्रदेश के अनुसार प्रदेश में 2020-21 में गन्ना का रकबा 27.40 लाख हेक्टेयर रहा और गन्ने का उत्पादन 2232.82 लाख टन हुआ।
उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, के निदेशक डॉ ज्योत्स्येंद्र सिंह बताते हैं, “अगर यह बीमारी किसी खेत में लग गई तो उसे बचाना बहुत मुश्किल हो जाता है, आखिर यही विकल्प बचता है कि फसल काटकर बर्बाद कर दी जाए।”
को 0238 के विकल्प के रूप में भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ व उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर ने गन्ने की नई किस्म सीओएलके-14201 (CoLk-14201) जो जल्दी तैयार हो जाती है और सामान्य किस्म सीओएस-14233 (CoS-14233)भी विकसित की है।
गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर के निदेशक डॉ. ज्योत्सेंद्र सिंह बताते हैं, “कई साल के परीक्षण के बाद हमने पाया है कि इसमें चीनी का परता भी अधिक है और को.लख. 14201′ लाल सड़न रोग के प्रतिरोधी भी है। हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द हम गन्ना किसानों को नई किस्म उपलब्ध करा दें।”