अभी तक किसान गन्ने की खेती की पुरानी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें लागत तो ज्यादा आती है, उतना उत्पादन भी नहीं मिल पाता है। ऐसे में तस्वीरों में देखिए कैसे नर्सरी विधि से गन्ना लगा किसान ज्यादा उत्पादन पा सकते हैं।
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के प्रगतिशील किसान जैविक तरीके से गन्ने की खेती करते हैं। राकेश दुबे बताते हैं, “दूसरी विधियों में बीज भी ज्यादा लगता है और खाद भी, ऐसे में खेती की लागत बढ़ जाती है, लेकिन इस विधि में बीज भी कम लगता है और उत्पादन भी ज्यादा मिलता है।”
दूसरी विधियों में जहां प्रति एकड़ 20-25 कुंतल बीज लगता है, इसमें दो-ढाई कुंतल में नर्सरी तैयार हो जाती है।
सबसे पहले सिंगल बड गन्ने को तैयार किया जाता है, बाकी बचे गन्ने की पेराई कर लेते हैं।
इसके बाद गन्ने के इन टुकड़ों को स्यूडोमोनास से उपचारित कर लेतें हैं, ताकि कोई रोग ने लगे।
इसमें दो विधियों से नर्सरी तैयार की जाती है, एक कोकोपिट पर ट्रे में और दूसरी बेड पर।
पच्चीस से तीस दिनों में तैयार हो जाती है नर्सरी…
अगर नर्सरी में पत्तियां ज्यादा बड़ी हों तो हंसिए से सावधानी से काट देना चाहिए।
इसके लिए प्रति सिंचाई 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है। गन्ने की बुवाई नाली में और सहफसली बुवाई मेड़ों पर होती है। सामान्य विधि की तुलना मे इस विधि से पेड़ी गन्ना की पैदावार 25 से 49 प्रतिशत अधिक होती है। दीमक का प्रभाव भी कम होता है। इसे साल में दो बार बोया जा सकता है।
कीटनाशकों और उर्वरकों की भी बचत होती है, क्योंकि इसमें एक-एक पेड़ी पर छिड़काव होता है।