गर्मी बढ़ने के साथ ही अगेती मेंथा में कई तरह के रोग-कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, ऐसे में किसान सही प्रबंधन करके इनसे बचाव कर सकते हैं।
बारांबकी जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी. दूर मसौली ब्लॉक के मेढ़िया गाँव के किसान रिंकू वर्मा (35 वर्ष) वर्षों से मेंथा की खेती करते हैं। रिंकू बताते हैं, “गर्मियों में मेंथा की फसल में सिंचाई भी ज्यादा करनी पड़ती है, साथ ही कीट भी ज्यादा लगते हैं, इससे हमारा खर्च ज्यादा बढ़ जाता है।”
प्रदेश में बाराबंकी, सीतापुर, हरदोई, रायबरेली, कानपुर, उन्नाव, रामपुर, मुरादाबाद और बरेली जैसे कई जिलों में बड़ी मात्रा में किसान मेंथा की खेती करते हैं।
केन्द्रीय औषधि एवं सगंध अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक, डॉ. सौदान सिंह बताते हैं, “इस समय सिंचाई की जरूरत ज्यादा होती है, तो शाम के समय सिंचाई करनी चाहिए, दिन में तेज धूप होने पर सिंचाई करने से बचना चाहिए।” मेंथा में बढ़ते समय अधिक पानी की जरूरत होती है, ताकि जड़ें अच्छी तरह से विकसित हो सकें। गर्मी के दिनों में हर सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए।
इस समय मेंथा की फसल का खास ध्यान देने की जरूरत होती है, क्योंकि गर्म हवाओं से खेत जल्दी सूख जाते हैं, इसलिए सिंचाई प्रबंधन के साथ ही कीट प्रबंधन भी करना चाहिए, क्योंकि कीट पत्तियों को खा जाते हैं, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है।
डॉ. सौदान सिंह, प्रमुख वैज्ञानिक केन्द्रीय औषधि एवं सगंध अनुसंधान संस्थान
मेंथा की पत्ती में गिडार, पॉड बोरर जैसे कीट लगते हैं, इनका नियंत्रण 0.2 फीसदी कार्बेरिल या इकोलेक्स 0.05 फीसदी या मैलाथियान एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद तथा दूसरी पहली के 30 दिन बाद की जाती है, यदि खरपतवार अधिक उगते हैं, तो बुवाई के बाद एक-दो दिन के अंदर 30 फीसदी पेंडीमेथलीन 3.3 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।