लखनऊ। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह किसानों का रुझान नए हाइब्रिड बीजों की तरफ तेजी से बढ़ा है। इसके चलते किसान फसलों की पुरानी किस्मों को भूल रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि धीरे-धीरे ये किस्में गायब हो रहीं हैं। ऐसे में कुछ ऐसे भी किसान हैं जो धान की पुरानी किस्मों की न केवल खेती कर रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों को भी इसकी खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
काला नमक, काला भात, जवा फूल, कला मल्ली, तिलक चंदन जैसी धान की किस्मों के बारे में नई पीढ़ी के किसानों को पता भी नहीं होगा। लेकिन अयोध्या जिले के सोहावल ब्लॉक के बहराएं गाँव के किसान राकेश दुबे ऐसी ही पुरानी किस्मों की खेती कर उसे सहेजने मेें जुटे हुए हैं। वो धान किस्मों के बारे में बताते हैं, “अभी मैं काला नमक, जवा फूल, तिलक चंदन, मल्ली फूल जैसी नौ तरह की पुरानी देसी किस्मों की खेती कर रहा हूं।”
सभी धान की किस्मों की हैं अपनी कुछ खासियतें
काला नमक उत्पादकता कम आती है लेकिन गुणवत्ता अच्छी होती है, पूसा ने काला नमक नमक 102 विकसित की है, जो कम समय में 160 दिनों में तैयार होता है उत्पादन भी सही मिलता है, लेकिन चावल की गुणवत्ता उतनी सही नहीं होती है। वहीं काला नमक की जो पुरानी किस्म है ये एंटी शुगर होता है चावल की खुशबू भी बहुत अच्छी होती है
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जवा फूल किस्म छत्तीसगढ़ की पुरानी किस्म है, ये साइज में छोटा होता है और खाने में बहुत अच्छा होता है, पिछले चार वर्षों से इस किस्म की खेती कर रहा हूं, 170 दिन में तैयार होती है
तिलक चंदन मोटा खुशबूदार चावल होता है और 140-145 दिनों में ये तैयार हो जाते हैं, इसके बारे में वेदों में भी लिखा गया है, ये काफी पुरानी किस्म है, इसका उत्पादन 40 कुंतल प्रति हेक्टेयर होता है।
चौथी किस्म मल्ली फूल है जो उड़ीसा की किस्म है जो 180 दिनों में तैयार होती है, गर्भवती महिलाओं के लिए ये काफी लाभदायक होता है।
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दूसरे प्रदेशों से भी मंगाते हैं पुरानी देसी किस्मों के बीज
राकेश दूसरे प्रदेशों से उनकी किस्में मंगाते हैं, राकेश बताते हैं, “दूसरे प्रदेशों में भी कई पुरानी किस्में हैं, इसलिए हम दूसरे प्रदेशों के किसानों को अपने यहां की पुरानी किस्मों का बीज उपलब्ध करा देते हैं और उनसे उनके यहां की किस्मों को मंगा लेते हैं।
वो आगे बताते हैं, “उड़ीसा, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, त्रिपुरा, गुजरात, पंजाब जैसे प्रदेशों के किसानों से हम लगातार जुड़े रहते हैं और उनके यहां की पुरानी किस्में जो लुप्त हो रही हैं उनको बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। पहले हम दूसरे राज्यों से थोड़ा बीज मंगाते हैं और एक-दो साल तक अपने यहां उसकी खेती करते हैं और जब वो पूरी तरह से यहां के सही हो जाती हैं तो हम दूसरे किसानों को वो बीज उपलब्ध कराते हैं।”
यही हम हम दूसरे राज्यों के किसानों को भी अपने यहां के बीज उपलब्ध कराते हैं, जैस कि अभी हमने काला नमक किस्म को उड़ीसा, त्रिपुरा, सिक्किम जैसे कई राज्यों के किसानों को दिया है।”
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जैविक तरीके से करते हैं खेती
राकेश धान की खेती में किसी तरह के रसायनिक उर्वरक या कीटनाशक का प्रयोग नहीं करते हैं वो अपनी फसल में जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं, इसके लिए उनके पास एक दर्जन गीर गाय हैं, जिनके गोमूत्र व गोबर से वो जैविक खाद व कीटनाशक बनाते हैं।
वो बताते हैं, “मेरे यहां तीन लोगों की मौत कैंसर से हुई थी, अब मैं नहीं चाहता कि हमारे यहां किसी को शुगर या कैंसर जैसी बीमारियां हों इसलिए अब हम पूरी तरह से प्राकृतिक खेती करते हैं।
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लंदन व कोरिया जैसे देशों तक भी पहुंच रहा उनका चावल
वो आगे बताते हैं, “हमारे कई जानने वाले हैं जिनके यहां हमारे से जैविक गुड़ व चावल जाता रहता है, वो लोग ही आगे अपने कई रिश्तेदारों को चावल भेजते हैं। ऐसे में हमारा जैविक उत्पाद विदेशों तक भी पहुंच जाता है।
करते हैं सहफसली खेती
राकेश ने गन्ने के साथ ही धान की रोपाई की है। राकेश बताते हैं, “सहफसली खेती से कई फायदें होते हैं एक ही सिंचाई और खाद से दोनों फसलों की खेती हो जाती है, कई कीट सहफसली खेती करने से गन्ने व धान की फसलों में नहीं लगते हैं।