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इस किसान ने साउथ अफ्रीका में 3000 बीघा जमीन में की औषधीय खेती, सनाय ने बदली किस्मत

#Medicinal Crops

जोधपुर। कभी गेहूं जैसी फसलों की परंपरागत खेती करने वाले नारायणदास आज सोनामुखी (Sonamukhi) (सनाय) की खेती कर न केवल खुद मुनाफा कमा रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों को भी औषधीय फसलों की खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

वर्ष 1952 में उन्होंने पहली बार लूणी इलाके में गेहूं की परंपरागत खेती की बजाय रायड़ा की व्यावसायिक खेती शुरू की। जड़ी-बूटियों के बारे में जहां पर भी, जिस किसी भी ग्रंथ में, किसी वैद्य के पास, जिस किसी आदिवासी इलाके से जानकारी मिली वे उसको जुटाकर एक अनुसंधान के रूप में संकलित करते चले गए। उन्होंने अपने बड़े बेटे तरुण को आयुर्वेद औषधि विषय में पोस्ट ग्रेजुएट तक की पढ़ाई करवाई। आज विश्वस्तरीय वनौषधि संग्राहक, प्रसंस्कारक, उत्पादक और सलाह प्रदाता संस्थान का विराट रूप ले चुके हैं।


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वो बताते हैं, “आज औषधीय खेती के समाज कल्याणकारी आर्थिक महत्व को निरंतर एक सीरीज के रूप में मीडिया द्वारा प्रकाशित किया जाना जरूरी है, इससे आम आदमी यह जान सकेगा कि जड़ी-बूटियों की विवेक सम्मत खेती के लिए किस प्रकार परंपरागत खेती के साथ-साथ आधुनिक तौर-तरीकों को अपनाया जाना जरूरी है। किसान साथी कम लागत और सीमित पानी में अधिक से अधिक लाभ कैसे लें? यह जानकारी आम किसानों तक पहुंचनी बेहद जरूरी है।”

नारायणदास ने सिरोही जिले में 700 बीघा जमीन खरीदकर वर्ष 2009 में साढ़े चार लाख पौधे लगाए। दक्षिण अफ्रीका में करीब 3000 बीघा जमीन खरीदकर वनौषधियां उगाने का प्रोजेक्ट भी चलाया। जाहिर है कि औषधीय खेती में उच्चशिक्षा की ही नहीं बल्कि विवेकपूर्ण तरीके से योजनाबद्व निष्ठापूर्वक काम करने की भी जरूरत होती है। खेती को घाटे का सौदा मानने वालों को एकबारगी प्रजापति की कर्मठ दिनचर्या देखने की भी जरूरत है।


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खुद नारायणदास की निजी लाइब्रेरी में आज आयुर्वेद, इतिहास, लोक साहित्य, एग्रीकल्चर, होम्योपैथी, यूनानी दवाओं से संबंधित करीब 60,000 से भी अधिक पुस्तकें, ग्रंथ एवं पत्र पत्रिकाएं शामिल हैं। वो बताते हैं, “किताबों में अपार ज्ञान भरा है, उस ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए अपने स्तर पर उनके छोटे-छोटे प्रयोग शुरु करो, बारीकियों को समझो, खुद की गलतियों को पकड़ो और सुधार करते हुए आगे बढ़ो।”

प्रजापति कहते हैं, “आज के इस युग में धोखाधड़ी के डर से किसान भाई औषधीय खेती का नया प्रयोग करने से कतराते हैं, इसलिए सावधान होकर किसी भी वनौषधि की खेती, उन्नत किस्म, फसल प्रबंधन, उपज संग्रहण, मजदूरी, उपकरण, मार्केट में बेचने की सुविधा आदि का पूरा फीडबैक लेकर ही वनौषधियों की खेती की जानी चाहिए।

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उन्होंने अपनी संस्था ‘राजस्थान एग्रो फोरेस्ट्री कॉरपोरेशन’के तहत लगातार छः वर्षों तक सालाना 60 से 70 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करके बेरोजगार युवकों को जड़ी बूटियों की खेती का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया। इनसे लाभ लेकर आज अनेक युवाओं ने सफल औषधीय खेती करके उद्योग धंदे जमा लिए हैं।

अधिक जानकारी के लिए करें संपर्क.

नारायणदास प्रजापति, सोनामुखी नगर, सांगरिया फांटा, सालावास रोड़, जोधपुर- 342005 (राज.)

मोबाइल-09983327830

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