मटर की बुवाई का सही समय है सितंबर का महीना

हरी मटर की मांग आजकल सालों साल रहती है, लेकिन सितंबर में बोई गई अगैती मटर में जल्द फलियां आती हैं, जिससे मुनाफा भी ज्यादा होता है।

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मटर की बुवाई का सही समय है सितंबर का महीनामटर की फसल 

लखनऊ। मटर की अगेती प्रजातियों की सब्जियों के रूप में हर साल बड़ी मांग है, जिसको देखते हुए रबी सीजन की मुख्य दलहनी फसल मटर की अगेती प्रजातियों को सितंबर में बुवाई के लिए विकसित किया गया है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक बिजेन्द्र सिंह ने बताया '' दलहनी सब्जियों में मटर लोगों की पहली पसंद है, इससे जहां भोजन में प्रोटीन की जरूरत पूरी होती है वहीं इसकी खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है। किसान कम अवधि में तैयार होने वाली मटर की प्रजातियों की बुवाई सितंबर से अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के मध्य तक कर सकते हैं। ''

उन्होंने बताया कि किसान मटर की अगेती किस्मों की खेती करके जहां सब्जियों में मटर की बढ़ी हुई मांग को पूरा कर सकते हैं वहीं इससे अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने मटर की अगेती प्रजाति की कई किस्मों को विकसित किया है। जिसमें आजाद मटर-3, काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय और काशी अगेती प्रमुख हैं। मटर की इन प्रजातियों की सबसे खास बात यह है कि यह 50 से लेकर 60 दिन में तैयार हो जाती है, जिससे खेत जल्दी खाली हो जाता और किसान दूसरी फसलों की बुवाई भी कर सकते हैं।


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मटर की खेती के लिए दोमट और हल्की दोमट मिट्टी दोनों उपयुक्त हेाती है। मटर की बुवाई से पहले खेती की तैयारी के बारे में जानकारी देते हुए कृषि वैज्ञानिक डॉ. आर.के. सिंह ने बताया कि पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए और उसके बाद दो से लेकर तीन जुताई कल्टीवेटर से करनी चाहिए। बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 80 से लेकर 100 किलोग्राम बीज की जरूतर पड़‍ती है बुवाई से पहले बीजोपचार करना जरूरी होता है।

मटर को बीज जनित रोगों से बचाव के लिए थीरम 2 ग्राम या मैकोंजेब 3 ग्राम को प्रति किलो बीज की दूर से शोधन करना चाहिए। बुवाई की विधि- सब्जी मटर के लिए अगेती प्रजाजि की मटर की बुवाई से 24 घंटे पहले बीज को पानी में भिगो लें फिर छाया में सुखाकर इसकी बुवाई करें। बुवाई करने में उर्वरक का प्रयोग करने में भी विशेष् ध्यान देना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन डालना चाहिए। उत्तर प्रदेश में पिछले खरीफ सीजन 2016 में 450.00 हजार हेक्टेयर लक्ष्य की तुलना में 458.955 हजार हेक्टेयर में मटर की खेती की गई थी।

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क्या है मटर की अगेती प्रजातियों की विशेषता

  1. काशी नंदिनी- इस प्रजाजि को गौतम कुल्लू, एम सिंह की टीम ने साल 2005 में विकसित किया था। जम्मू-कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में इसकी खेती की जाती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर औसतन 110 से लेकर 120 कुंतल मटर का उत्पादन होता है।
  2. काशी उदय- 2005 में विकसित की गई इस किस्म की यह विशेषता है कि इसकी फली की लंबाई 9 से लेकर 10 सेंटीमीटर होती है। इसकी उपज प्रति हेक्टेयर 105 कुंतल है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में इसकी अच्छे से खेती हो सकती है।
  3. काशी मुक्ति- यह प्रजाति उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और झारखंड के लिए उपयुक्त है। इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 115 कुंतल होती है। इसकी फलिया काफी और दाने बड़े होते हैं। विदेशों में भी इसकी भारी मांग है।
  4. काशी अगेती- वर्ष 2015 में राजेश कुमार सिंह, बी सिंह जैसे वैज्ञानिकों ने इस किस्मको विकसित किया था। यह 50 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी फलियां सीधी और गहरी होती हैं। पौधे की लंबाई 58 से 61 सेंटीमीटर होती है। एक पौधे में 9 से लेकर 10 फलियां लगती हैं। प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 95 से 100 कुंतल होता है।

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