सरकार का प्रयास है कि देश के हर व्यक्ति की थाली में दाल हो और इसके लिए कई स्तरों पर प्रयास भी हो रहे हैं। इसी बीच अगर दाल की एक ऐसी प्रजाति जिससे दाल के उत्पादन को कई गुना बढ़ाया जा सके, और वो प्रजाति अगर अरहर की हो तो ये काफी अच्छी ख़बर हो सकती है। अरहर की दाल की खपत देश में सबसे ज़्यादा है और इस दाल में प्रोटीन की मात्रा भी काफी अधिक होती है। आमतौर पर अरहर के लगभग 4 – 5 फीट के झाड़ जैसे दिखने वाले पौधे होते हैं और हर पौधे में लगभग 5-6 शाखाएं होती हैं लेकिन क्या आपने ऐसा अरहर का पौधा देखा है जो पेड़ जैसा दिखता हो। जी हां, अरहर का पेड़।
ये है खासियत
अरहर के इस पौधे का तना कुछ मोटा होता है और एक पेड़ में लगभग 60 शाखाएं होती हैं। इन शाखाओं पर फलियों के गुच्छे होते हैं जिनमें अधिक संख्या में फलिया होती हैं। कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के प्रोफेसर डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर बताते हैं, ”छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के गाँव गगोली में कई खेतों की मेढ़ों पर इस अरहर के पेड़ देखने को मिल जाते हैं।” वह बताते हैं कि अरहर के इस पौधे में 8 से 12 किलोग्राम दाना निकल आता है। इसका दाना कुछ मोटा, बड़ा और चमकीला होता है। इसकी फलियां 2 – 3 बार तोड़ी जा सकती हैं। फसल के परिपक्व होने का समय जनवरी से अप्रैल के बीच का होता है।
है बहुवर्षीय फसल
डॉ. तोमर बताते हैं कि यह अरहर की बहुवर्षीय फसल होती है। जुलाई-अगस्त में खरीफ की फसल की बुवाई के समय इसका बीज डाल देना चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी लगभग 2 से 3 मीटर होनी चाहिए। फसल 6 महीने में तैयार हो जाती है। एक पेड़ से दो से तीन बार फलियों को तोड़ा जा सकता है। गर्मी तेज़ होने पर यह पौधा सूखने लगता है। उस वक्त इसके तने को ज़मीन से 4 से 5 इंच छोड़कर काट देना चाहिए और समय – समय पर एक-दो गिलास पानी डालते रहना चाहिए जिससे ये सूखे नहीं।
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जब बारिश होती है तो ये पौधा फिर से हरा होने लगता है और फिर धीरे -धीरे बड़ा होकर इसमें फलियां आने लगती हैं। एक पौधे की उम्र लगभग 3 से 4 साल होती है। इसके बाद दोबारा बीज डालकर इसे लगाया जा सकता है। इस फसल में बस 2 से 3 बार कीटनाशकों का छिड़काव करने की ज़रूरत पड़ती है।
अरहर का पौधा बहुवर्षीय होता है या अगर पानी-खाद देते रहे तो चार पांच साल तक चलता रहता है। छत्तीसगढ़ की अरहर की किस्म भी कोई जंगली किस्म होगी जिसे किसानों ने मेड़ों पर अरहर के पौधे लगाए हैं।
डॉ. पुरुषोत्तम, वैज्ञानिक, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान
सहफसली खेती में होगा फायदा
डॉ. तोमर बताते हैं कि अरहर की इस प्रजाति के पौधे सामान्यत: किसान खेत की मेढ़ों पर लगाते हैं लेकिन अगर धान या किसी दूसरी खरीफ की फसल के साथ इसकी सहफसली खेती की जाए तो किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। जो लोग बड़े स्तर पर खेती नहीं करना चाहते हैं वे ये पौधे लगाकर कम से कम अपने परिवार के दाल का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं।
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सब्ज़ी और दाल दोनों के काम
डॉ. तोमर बताते हैं कि गगोली गाँव के किसानों ने उन्हें बताया – इस अरहर का इस्तेमाल सब्ज़ी और दाल दोनों के रूप में किया जाता है। सब्ज़ी बनाने के लिए इसकी कच्ची फलियों का इस्तेमाल किया जाता है।
अंबिकापुर में मिलेगा बीज
इस अरहर की खेती उन सभी क्षेत्री में हो सकती है जहां की जलवायु अरहर के लिए उपयुक्त होती है। इसके बीज छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से लिए जा सकते हैं क्योंकि ये वहां की स्थानीय किस्म है।