ट्यूलिप के फूलों का जिक्र होते ही आपके जेहन में भी कई रंगों से सजे श्रीनगर के ट्यूलिप गार्डन का खयाल आता है, लेकिन देश में अब कश्मीर में ही नहीं हिमाचल प्रदेश में भी ट्यूलिप गार्डेन तैयार किया जा रहा है। जल्द ही यहां के किसानों को भी ट्यूलिप के खेती की ट्रेनिंग डी जाएगी।
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित सीएसआईआर- इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (IHBT) ने पालमपुर में कई रंगों के 40000 से अधिक ट्यूलिप बल्ब लगाए हैं। आइएचबीटी के फ्लॉरिकल्चर विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ भव्य भार्गव गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “साल 2017 में हमने इसका ट्रायल शुरू किया था, हमने लाहौल स्पीति जैसे क्षेत्र के किसानों को ट्रायल के तौर पर इसके बल्ब दिए थे कि वहां पर ये मल्टीप्लाई होते हैं कि नहीं, वहां हमने तीन-चार साल तक देखा कि वहां ट्यूलिप अच्छे से ग्रो कर रहे हैं, क्योंकि वो ऑफ सीजन क्लाइमेट हो जाता है तो हमने अपने यहां ट्यूलिप लगवाए। यहां भी अच्छा रिजल्ट आया।”
वो आगे कहते हैं, “पिछले बार दुनिया भर से टूरिस्ट यहां गार्डेन देखने आए, इसलिए इस बार हमने यहां 2000 वर्ग मीटर में करीब 40,000 बल्ब लगाएं हैं, हम चाह रहे हैं कि पालमपुर में एग्रो टूरिज़्म बढ़े, क्योंकि पालमपुर टूरिज़्म प्लेस है।”
कश्मीर में अप्रैल मई के महीने में ट्यूलिप के फूल खिलते हैं, जबकि पालमपुर में फरवरी-मार्च में ही फूल आ जाते हैं। इस बारे में डॉ भार्गव कहते हैं, “अभी तक टूरिस्ट अप्रैल-मई में श्रीनगर ट्यूलिप गार्डेन देखने जाते हैं, लेकिन अब टूरिस्ट फरवरी-मार्च में पालमपुर आ सकते हैं, उसके बाद श्रीनगर और सबसे आखिर में लाहौल स्पति जा सकते हैं, जहां पर जून-जुलाई में फूल खिलते हैं, इसी के साथ इस हमने लेह के किसानों को भी ट्रायल के लिए बल्ब दिए हैं, जहां पर जून-जुलाई के महीने में फूल खिलते हैं।”
First ever trail of different varieties of Tulip flowers in Ladakh under open as well as protected conditions. @CSIR_IHBT @Ravinder_Dangi1 @lg_ladakh @StanChosphel @ddnewsladakh @ReachLadakhNews @prasarbharti @ANI pic.twitter.com/V2uZwju3yh
— རིག་འཛིན་ཚེ་དབང། Rigzen Tsewang (@RigzenTsewang) December 18, 2022
दुनिया का 80 प्रतिशत ट्यूलिप नीदरलैंड में उगाया जाता है, इसकी मांग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी है। ऐसे में भारत में ट्यूलिप की खेती को बढ़ावा देने से इसकी मांग पूरी की जा सकती है। डॉ भार्गव बताते हैं, “एक बार फूल खिलने के बाद 25 दिनों तक फूल खिला रहता है। हम इसे कट फ्लावर के तौर पर भी प्रमोट कर रहे हैं, इसका बल्ब तेजी से संख्या बढ़ते हैं, ऐसे किसानों को ट्रेनिंग देंगे, जिससे वो इसकी व्यवसायिक खेती कर सकें।”
ट्यूलिप एक समशीतोष्ण फसल थी और बल्बों को फूलों की शुरुआत के लिए ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है। पहाड़ियों में उगाए जाने वाले ट्यूलिप को विकास अवधि के दौरान 20-26 डिग्री सेल्सियस के दिन के तापमान और 5-12 डिग्री सेल्सियस के रात के तापमान की जरूरत होती है।
“नवंबर के महीने में पालमपुर में बल्ब लगाए जाते हैं, फूल खत्म होने के हम बल्ब निकाल लेते हैं, ऐसे में बल्ब बढ़ जाते हैं और उन्हें निकालकर डॉरमेंसी ब्रेक करनी होती है, इसके लिए इन्हें कोल्ड स्टोरेज में काम तापमान पर रखना होता है, तो उसके बाद फिर इसे निकाल कर दोबारा लगाते हैं, ” डॉ भार्गव ने आगे कहा।
लाहौल में करीब 15 किसानों को 60 हजार बल्ब दिए गए हैं, धीरे वो इसे बढ़ा रहे हैं। आने वाले समय पर किसान और भी किसान ट्यूलिप की खेती की ओट बढ़ेंगे। इसी तरह आईएचबीटी ने किसानों ने लाहौल के किसानों को लिलियम के बल्ब दिए थे और उन्हें ट्रैनिंग भी दी गई है, 330 किसान लिलियम की खेती से जुड़े हुए हैं, उनके फूल दिल्ली के गाजीपुर मंडी तक आते हैं।