नील हरित शैवाल के इस्तेमाल से यूरिया की खपत होगी कम
Divendra Singh 26 April 2017 5:57 PM GMT
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। धान की फसल में यूरिया के ज्यादा इस्तेमाल से खेत में मीथेन गैस का अधिक उत्सर्जन होता है, जो इंसानों और वातावरण दोनों के लिए नुकसानदायक है, ऐसे में किसान धान की फसल में नील-हरित शैवाल का उपयोग करके यूरिया की खपत कम कर सकते हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद किसानों को नील हरित शैवाल उत्पादन की तकनीक सीखने जा रहा है। परिषद प्रशिक्षण के साथ ही नील हरित शैवाल भी किसानों को देगा। नील हरित शैवाल मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करता है। इससे 20 फीसदी तक उपज भी बढ़ जाती है।
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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद की संयुक्त निदेशक डॉ. हुमा मुस्तफा बताती हैं, “इसके इस्तेमाल करने से एक हेक्टेयर धान की फसल में 66 किलो यूरिया की खपत कम हो जाती है, लेकिन नील हरित शैवाल का प्रयोग यूरिया के साथ करना नहीं चाहिए।” उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार, प्रदेश में जल जमाव वाले क्षेत्रों में धान की खेती और फसलों में नाइट्रोजन के अधिक इस्तेमाल से मीथेन गैस का उत्सर्जन बढ़ रहा है और फसलों की पैदावार घट रही है। जिस खेत में तीन-चार साल तक नील हरित शैवाल का इस्तेमाल किया जाता है। उसकी मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा अच्छी हो जाती है, जिससे मिट्टी अधिक उपजाऊ बन जाती है।
इसके इस्तेमाल करने से एक हेक्टेयर धान की फसल में 66 किलो यूरिया की खपत कम हो जाती है, लेकिन नील हरित शैवाल का प्रयोग यूरिया के साथ करना नहीं चाहिए।डॉ. हुमा मुस्तफा, संयुक्त निदेशक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद
नील हरित शैवाल जनित जैव उर्वरक में आलोसाइरा, टोलीपोथ्रिक्स, एनावीना, नासटाक, प्लेक्टोनीमा होते हैं। ये शैवाल वातावरण से नाइट्रोजन लेते हैं। यह नाइट्रोजन धान के उपयोग में तो आता ही है, साथ में धान की कटाई के बाद लगाई जाने वाली अगली फसल को भी नाइट्रोजन और अन्य उपयोगी तत्व उपलब्ध कराता है। डॉ.मुस्तफा आगे बताती हैं, “गोरखपुर में कुछ किसानों ने प्रशिक्षण के बाद अपने खेत के लिए नील हरित शैवाल तैयार किए।”
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