बस्ती (उत्तर प्रदेश)। “जलवायु परिवर्तन से आज जो परिस्थितियां बदल रही हैं उसके लिए मोटे अनाज की खेती अच्छी है। बाढ़, सूखा सभी परिस्थितियों में इस खेती में जोखिम कम है। मैंने दो साल पहले मोटे की अनाज की खेती करना शुरू किया था आज मेरे साथ 250 किसान जुड़े हुए है।” अपने अनुभव को बांटते हुए श्रीधर पांडेय कहते हैं।
प्रगतिशील किसान श्रीधर पांडेय यूपी के बस्ती जिले पुस्तक मेले में आयोजित किसान गोष्ठी में दूसरे किसानों को मोटे अनाज के फायदे गिना रहा थे। समारोह में सिद्धार्थनगर, बस्ती, बाराबंकी, बलिया समेत कई जिलों के प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया गया था। ये समारोह दिल्ली प्रेस की पत्रिका फॉर्म एन फूड और जॉन डियर ट्रैक्टर के सौजन्य से किया गया था। समारोह में अधिकारियों के साथ ही किसानों ने अपने अनुभव बांटे।
सिदार्थनगर जिले के उसका गाँव में रहने वाले श्रीधर ने 80 बीघे में मोटे अनाज (मडुआ सांवा और टागुन) की बुवाई की थी, जिससे उन्हें काफी मुनाफा हुआ। श्रीधर कहते हैं, “हमारा क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है इसलिए ज्यादा फसल नहीं हो पाती थी। ज्यादातर लोग एक ही फसल ले पाते थे लेकिन अब तीन फसल लेते है। मोटे अनाज के साथ सरसों और गेहूं भी होता है। जहां किसान की 100 रुपए की कमाई हो रही थी वहीं अब 250 से 300 रुपए हो रही है।” मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज शामिल हैं।
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कार्यक्रम में किसानों को मुख्य अतिथि सीडीओ अरविंद कुमार पांडेय व उपनिदेशक कृषि संजय कुमार त्रिपाठी ने सम्मानित किया। सीडीओ अरविंद कुमार पांडेय ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा, “किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है। इसके साथ ही जमीनी स्तर पर बड़े पैमाने पर किसानों को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा जानकारी भी दी जा रही है।”
वहीं उपनिदेशक कृषि संजय कुमार त्रिपाठी ने कहा, “किसान यंत्रीकरण के जरिये खेती में श्रम के याथ लागत में कमी ला सकते है इसके लिए सरकारी स्तर पर योजना चल रही है। इसमें कृषि यंत्रों की खरीद पर किसानों को अब 80 से 50 प्रतिशत की सब्सिडी सरकार दे रही है। सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना में ट्रैक्टर सहित कुल आठ तरह के कृषि यंत्रों को रखा गया है। इस योजना को किसानों तक पूरी पारदर्शिता से पहुंचाने का काम किया जा रहा है।”
यूपी सरकार द्वारा प्रमोशन ऑफ एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन फार-इन-सीटू मैकेनाइजेशन आफ क्राप रेज्ड्यू योजना के तहत प्रदेश के सभी पंजीकृत किसानों को यह छूट दी गई है कि वे भारत सरकार द्वारा इम्पैनल्ड निर्माता कंपनियों या उनके अधिकृत विक्रेताओं से स्वेच्छा से बिना किसी औपचारिकता एवं चयन पत्र निर्गत हुए ही यंत्र खरीद सकते हैं। इस योजना में ट्रैक्टर सहित कुल आठ तरह के कृषि यंत्रों को रखा गया है। ट्रैक्टर के साथ लेजर लैंड लेवलर ये दोनों यंत्रों के साथ बाकी छह प्रकार के यंत्रों में कोई तीन यंत्र खरीदने वाले किसानों को ट्रैक्टर और लेजर लैंड लेवलर की खरीद पर 40 प्रतिशत और बाकी तीन यंत्रों की खरीद पर 80 प्रतिशत की सब्सिडी मिलेगी।
बाराबंकी में सूरतगंज ब्लाक के तुरकौली के युवा किसान नरेंद्र शुक्ला को औषधीय पौधों की खेती के लिए सम्मानित किया गया। नरेंद्र ने बताया कि धान-गेहूं की परंपारिक खेती के साथ पिछले एक दशक से उनके घर में शतावरी जैसी फसलों की खेती हो रही थी, पिछले दो साल से वो सुपर फूड कहे जाने वाले सहजन यानि मोरिंगा की भी खेती कर रहे हैं।”
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इस कार्यक्रम के आयोजक बृहस्पति पांडेय बताते हैं, “कृषि, बागवानी और डेयरी के क्षेत्र में जो किसान अच्छा काम कर रहे है हम उनको प्रोत्साहित करने के लिए हर साल सम्मानित करते हैं। उनके अनुभव दूसरे किसानों के लिए भी मददगार होते है। यहां आए किसान फसल उगाने से लेकर उसको बेचने, नई तकनीकों के बारे में अपने अनुभव शेयर करते है।”
बस्ती जिले के किसान राममणि तिवारी पिछले कई वर्षों से डेयरी व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। डेयरी क्षेत्र में अच्छे उत्पादन के लिए उन्हें 10 बार गोकुल पुरुस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। कार्यक्रम में अपनी सफलता के बारे में वो कहते हैं, “गायों को साइलेज देना बहुत जरुरी है। इससे उत्पादन भी बढ़ता है और दूध की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है। हमारे यहां रोजाना 100 गायों से 500 लीटर दूध का उत्पादन होता है। अगर एक दिन साइलेज न दिया जाए तो 50 लीटर दूध का उत्पादन घट जाता है।”
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राममणि तिवारी ने बिना किसी सरकारी मदद के खुद ही डेरी की शुरुआत की थी। इनके एक एकड़ में फार्म में 100 से अधिक गायों है। यह दूध ही नहीं बल्कि खोया, पनीर व दही भी बनाते हैं। अच्छी गुणवत्ता होने की वजह से उनके उत्पादों की बस्ती के अलावा दूसरे जिलों में भी खूब मांग है।
इस युवा ने नौकरी छोड़ शुरू की मशरूम की खेती
बस्ती जिले के हरैया ब्लॉक के दिवाकर गाँव में रहने वाले शिवेंद्र सिंह ने नौकरी छोड़कर मशरुम की खेती शुरू की। शिवेंद्र बताते हैं, “शुरू में हमने 20 कुंतल भूसे मशरुम की खेती शुरू की थी आज 600 कुंतल भूसे में मशरूम का उत्पादन कर रहे है। मशरूम के लिए हमने 10 प्लांट लगा रखे है, जिससे 5 से 10 लाख कमा लेते है। गाँवों के 10 लोगों को रोजगार भी दे रखा है।” शिवेंद्र जिले में और युवाओं के लिए उदाहरण बने हुए है।
एक गाय से 30 एकड़ की खेती
रंगनाथ मिश्र पिछले कई वर्षों से एक गाय से 30 एकड़ की खेती को अपनाए हुए है। बलिया जिले के सोनवानी में रहने वाले रंगनाथ अपने आस-पास के गाँव में लोगों को गाय आधारित खेती करने के लिए जागरुक कर रहे है। रंगनाथ बताते हैं,”हमारे पास 200 एकड़ जमीन हैं, जिसमें हमने चना, मूंग, मूसर के साथ कई फसल बोते है जिसमें किसी भी तरह रायसानिक दवाओं का प्रयोग नहीं करते है। हमारे आस-पास भी किसान इसी पद्वति को अपना रहे है।”