नरेंद्र सिंह मेहरा नए-नए प्रयासों से उत्तराखंड की खेती में ला रहे बदलाव

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नैनीताल (उत्तराखंड)। इनकी पहचान आज एक सफल किसान के रूप में हैं, नैनीताल ही नई उत्तराखंड के कई जिलों में इनकी पहचान मेहरा जी के तौर पर है। ये पहले किसान हैं जिन्होंने गेहूं के संवर्धन एवं संरक्षण की दिशा में काम करते हुए गेहूं की नई प्रजाति विकसित की है। इसके अलावा वह प्रदेश में गोंद कतीरा पद्धति से कम पानी से धान की सफल फ़सल को करने में कामयाब हुए।

 नैनीताल जिले के ब्लॉक हल्द्वानी का इलाका गौलापार के गाँव मल्लादेवला किसान नरेंद्र सिंह मेहरा रहते हैं। भूगोल से पोस्ट ग्रेजुएट और टूरिज्म में पीजी डिप्लोमा करने वाले नरेंद्र सिंह प्रदेश में आज प्रगतिशील किसान के रूप में पहचाने जाते हैं। खेती में सफल प्रयोग और खेती को बढ़ावा देने के किए उन्हें मुख्यमंत्री के साथ कई अन्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। वह आजीविका के लिए कृषि कार्य करने के साथ ही अन्य किसानों की बेहतरी के लिए भी कार्य कर रहे हैं।

नरेंद्र सिंह मेहरा गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “मैं हर फसल पर चाहता हूं कि कही न कही कुछ नया मिलता रहे और उसको प्रयास करके आगे लाऊं। अभी मेरा प्रयास गेहूं पर चल रहा है, मैंने पिछले वर्ष बिना पानी के धान की खेती का प्रयास किया था जो सफल रहा। अभी तक तो मैने जो भी कार्य किए वह अपने संसाधनों से शुरू किए लेकिन मेरे कार्यों से संतुष्ट होने के बाद कृषि विभाग द्वारा मुझे एक टैंक दिया गया है और उद्यान विभाग द्वारा एक पॉली हाउस दिया गया है।”


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उनका कहना है किे आज के समय में खेती एक बहुत बड़ा घाटे का सौदा बनता जा रहा है, जिस तरीके से योजनाएं बन रही हैं उन योजनाओं को धरातल पर लाने की बहुत आवश्यकता रहती है। आज खेती में मानव श्रम की बहुत जरूरत है।

गेहूं की बाली ने दिलाई पहचान, नाम दिया नरेंद्र-09

नरेंद्र सिंह मेहरा को पहचान गेहूं की उस बाली से मिली जिससे उन्होंने गेहूं का नया पैटर्न नरेंद्र-09 इजाद किया। नरेंद्र बताते हैं, “उत्तराखंड जो कि गेहूं के लिए बहुत अधिक उपयुक्त नहीं माना जाता है, वहां पर पंक्ति चयन पद्धति द्वारा विकसित गेहूं की खेती को किसानों के बीच लाने का मैंने विशेष प्रयास किया है। उन्‍होंने बताया कि साल 2009 में मैंने अपने खेत में गेहूं की फसल बोई थी, एक रोज मैं गेहूं की फसल को खेतों में देख रहा था, तभी मेरी नजर एक अलग सी बाली पर पड़ी। मैंने उसे संभाल कर रख लिया और उसके बीज को तैयार कर, अगले साल खेत में बो दिया। इसकी पैदावार देखकर हर कोई हैरान था। मैंने इसका नाम नरेंद्र 09 रखा और आज यह हजारों किसानों की पसंद बन चुका है।


वह बताते हैं, “वर्तमान में यह गेहूं परीक्षण के लिए गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर, कृषि अनुसंधान केंद्र मझेड़ा जिला नैनीताल और कृषि विज्ञान केंद्र ग्वालदम जिला चमोली में बोया गया है। जब इसका परीक्षण किया गया तो पाया गया कि गेहूं नरेंद्र 09 बीज मैदानी क्षेत्रों में अगेती/ पिछेती दोनों स्थितियों में बोया जा सकता है। यह मैदानी व पर्वतीय दोनों क्षेत्रों में बोया जा सकता है।

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उत्तराखंड में बिना पानी के शुरू की धान की खेती…

जल संरक्षण को ध्यान में रखते हुए और वर्षाजल संचय की दिशा में कार्य करते हुए नरेंद्र सिंह ने बिना पानी धान की खेती की पद्धति को विकसित किया। इस पद्धति को गोंद कतीरा पद्धति कहा जाता है। जिसमें धान की सीधी बुआई की जाती है। इसमें वर्षा जल ही पर्याप्त होता है। इससे किसानों को भी फसल में लागत खर्च बहुत कम रहता है।

नरेंद्र कहते हैं कि गोंद कतीरा पद्वति से धान की खेती में हमें बहुत अधिक जुताई के साथ सिचाईं के लिए पानी, मिट्टी को फेटने के लिए ट्रैक्टर और रुपाई के लिए मजदूरों की जरूरत नहीं पड़ती है। मैंने पिछले वर्ष 15 बीघा खेती में धान की खेती की थी। उसमें अगर हम पानी से धान की खेती करते तो करीब 32 लाख रुपए का खर्चा आता लेकिन मैंने गोंद कतीरा पद्धति से इस फसल को मय कटाई के केवल 6 हजार रुपए में धान की फसल की थी।”

वो आगे कहते हैं, “मेरा डॉ. वीरेंद्र सिंह लाठर से संपर्क हुआ। इनके ही मार्गदर्शन पर मैंने गोंद कतीरा पद्धति से बिना पानी और कम लागत पर धान की पैदावार को तैयार कर एक मिसाल यहां के किसानों के लिए कायम की।” इसे लेकर पहाड़ के किसानों का कहना है कि यह पद्धति बहुत ही बेहतरीन है इस पद्धति में न तो मानव श्रम की जरूरत होती है और ना ही इसमें अधिक लागत लगती है।


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जैविक खेती पर दे रहे हैं जोर…

नरेंद्र सिंह मेहरा हाल के कुछ वर्षों से जैविक खेती को बढ़ावा देने के मिशन में भी जुटे हैं। उनका मानना है कि जैविक खेती आने वाले समय के लिए एक बहुत बड़ी आवश्यकता होगी, देश की जनता को शुद्ध अनाज देना है तो जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा। खेतों में रसायनों के अधिक प्रयोग से भोजन की थाली जहरीली हो चुकी है। इससे इंसान कई बीमारियों की चपेट में आ रहा है, लिहाजा जैविक खेती को बढ़ावा दिए जाने की बहुत जरूरत है।

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