अभी तक ज्यादातर किसान पीली मक्का और बेबी कॉर्न की खेती करते आए हैं, लेकिन किसान इस समय रबी में सफेद मक्का की खेती भी कर सकते हैं।
भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ अभिजीत दास बताते हैं, “सफेद और पीले मक्का में केरोनाइट नाम के रसायन को छोड़कर सब कुछ एक समान ही होता है, इसी केरोनाइट से ही पीले मक्का में पीला रंग आता है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, बिहार और राजस्थान के साथ ही कई आदिवासी क्षेत्रों में सफेद मक्का को लोग ज्यादा पसंद करते हैं। इसीलिए संस्थान से सफेद मक्का की कुछ ऐसी किस्में विकसित की जा रही हैं, जिसमें उत्पादन भी ज्यादा मिल जाए।”
“अगर पोषण की बात की जाए तो सफेद मक्का में एक कमी है, केरोनाइट नहीं होने से इसमें विटामिन ए नहीं होता है। बाकी के सभी पोषक तत्व इसमें भरपूर होते हैं, “उन्होंने आगे बताया।
मक्का को असम, बिहार, सिक्किम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश व हिमाचल प्रदेश में प्रमुख खाने के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इनमें पत्तियों में व जीवाणु रोग से प्रतिरोधन क्षमता है और इनका कुल उत्पादन 45-50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। कई संस्थानों ने अनुसंधान करके सफेद कम्पोजिट और संकर मक्का को किसानों के लिए विकसित किया है।
अभी तक कुल मिलाकर 48 संकुल व 12 संकर मक्का प्रजातियां हैं, जो कि अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के विभिन्न केद्रों द्वारा विकसित की गई हैं।
सफेद क्यूपीएम क्वालिटी प्रोटीन मक्का की खोज 1960 के मध्य में ओपेक-2 की खोज से शुरू हुई है, जो कि मक्का के एंडोस्पर्म में दो अमीनो अम्ल लाइसिन व ट्रिप्टोफेन का उत्पादन करता है। सामान्य मक्का से क्वालिटी मक्का प्रोटीन में 55 प्रतिशत से ज्यादा ट्रिप्टोफेन, 30 प्रतिशत से ज्यादा लाइसिन व 38 प्रतिशत से कम ल्यूसिन होता है। इसका एक अलग जैविक महत्व भी है। पीली मक्का में क्वालिटी प्रोटीन की बहुत सी उन्नत किस्में जारी की गयी हैं लेकिन सफेद मक्का में क्वालिटी प्रोटीन की कवेल दो किस्में शक्तिमान-1 व शक्तिमान-2 विकसित की गयी हैं, जोकि बिहार में उगायी जा रही है।
सफेद मक्का से कई ऐसे उत्पाद बनाए जा सकते हैं। लड्डू, हलवा, सेवइयां, केक, इडली जैसे कई उत्पादन बनाने के लिए सफेद मक्का उपयुक्त होता है। अभी इसपर लगातार शोध चल रहा है।
सफेद मक्का की चारा किस्में
बढ़ती हुई चारे की मांग को देखते हुए मक्का को चारे के रूप में काफी मात्रा में उपयोग किया जा रहा है। चारा के अनुसंधान में मक्का को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। मक्का में पोषक तत्व अधिक होते हैं। चारा खोज में सपेफद मक्का की एक संयुक्त कम्पोजिट किस्म 1982 में कोल्हापुर केन्द्र ने जारी की थी व दूसरी तरफ संयुक्त किस्में जैसे-जे-1006 व प्रताप मक्का चरी 6 को क्रमशः पीएयू, लुधियानाः एमपीयूएटी उदयपुर ने जारी किया था। ये किस्में चारे के रूप में उपयोग के लिए उपयुक्त हैं।