अगर किसी किसान के पास कोई जमीन ऊसर बंजर या पथरीली होती है, तो सबसे बड़ी समस्या होती है कि उस जमीन क्या खेती करें, जिससे अच्छी पैदावार मिल जाए। ऐसी जमीन में किसान बेल की थार दिव्य किस्म लगा सकते हैं।
बेल की थार दिव्य किस्म को किसी भी मिट्टी में लगाया जा सकता है। यह किस्म ऊसर, बंजर, कंकरीली जमीन पर भी लगाई जा सकती है, साथ ही जहां पानी निकलने की उचित व्यवस्था हो तो बलुई दोमट मिट्टी भी इसकी खेती के लिए सही होती है।
गुजरात के गोधरा स्थित केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र ने बेल की कई किस्में विकसित की हैं, इसमें से थार दिव्य भी एक है। बेल की थार दिव्य को विकसित करने वाले प्रधान वैज्ञानिक डॉ एके सिंह बताते हैं, “इस बेल की सबसे खास बात यह होती है, बेल की दूसरी किस्में अप्रैल में पकना शुरू होती हैं, लेकिन यह किस्म जनवरी में ही पकने लगती है। दस साल के पेड़ से 90 से 108 किलो तक फल मिल जाता है।”

वो आगे कहते हैं, “देश भर की बेल की किस्मों का परीक्षण करने का बाद कई साल में इस किस्म को विकसित किया है। इसके पेड़ पर कांटे भी बहुत कम होते हैं। इसके एक फल का वजन डेढ़ से ढाई किलो तक हो सकता है। इसके छिलके भी बहुत पतले होते हैं और फल में दूसरी किस्मों की तुलना में बीज भी बहुत कम होते हैं।”
दूसरी किस्मों में ज्यादा गर्मियों के दिनों में ज्यादा धूप पड़ने फल झुलस जाते हैं, लेकिन इसके पेड़ की पत्तियां इतनी ज्यादा घनी होती हैं कि फल उनके पीछे सुरक्षित रहते हैं। इससे फल भी नहीं झुलसते और न उनके अंदर के गूदे को कोई नुकसान होता है।
सूखे क्षेत्र में थार दिव्य में जनवरी के पहले सप्ताह में फल पकने लगते हैं, जब फल का रंग हरे से पीला होने लगे, तब फलों की तुड़ाई 2 सेमी डंठल के साथ करनी चाहिए। पौधा लगाने के तीन साल बाद फल आने लगते हैं, जैसे-जैसे पेड़ पुराना होता है फलों की संख्या भी बढ़ती रहती है।

थार दिव्य की खासियतों के के बारे डॉ सिंह आगे कहते हैं, “प्रोसेसिंग के जरिए इससे कई तरह के उत्पाद बनाए जा सकते हैं। इसके कच्चे फलों से अचार, मुरब्बा, कैंडी और पके फलों से पाउडर, शरबत, टॉफी, जैम, आइसक्रीम जैसे उत्पाद बना सकते हैं।
थार दिव्य के साथ ही केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र ने बेल की दो और किस्में गोमा यशी और थार नीलकंठ भी विकसित की है। इसमें गोमा यशी बौनी प्रजाति है, जिसमें कांटे नहीं होते हैं और ज्यादा उत्पादन भी मिलता है और इसका फल पकने के बाद हाथ से तोड़ सकते हैं, रेशा बहुत ही कम होता है और एक हेक्टेयर में चार सौ पौधे लगा सकते हैं। ये किस्म देश के ज्यादातर राज्यों में जा चुकी है
जबकि थार नीलकंठ मीठी किस्म होती है, इसके फल में रेशे की मात्रा कम होती है और दस साल के एक पेड़ से एक कुंतल से ज्यादा उत्पादन मिल सकता है।
अधिक जानकारी और बेल के पौधों के लिए यहां कर सकते हैं संपर्क
केन्द्रीय बागवानी परिक्षण केंद्र
गोधरा-वडोदरा राजमार्ग, वेजलपुर-389340
दूरभाष : 02676-234657
ई मेल : chesvejalpur@gmail.com