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यह उपाय अपनाएं तो किसानों को नहीं फेंकनी पड़ेगी सड़कों पर अपनी उपज

vegetables farmers

किसानों को जब अपनी फसलों के उचित दाम नहीं मिलते हैं और लागत तक नहीं निकल पाती है तो वे अपनी उपज को सड़कों पर फेंकने के लिए मजबूर हो जाते हैं। मगर ऐसे भी उपाय हैं, जिससे वे अपनी उपज को फेंकने के बजाए उसी उपज पर अच्छा मुनाफा कमा सकें, वो भी अपने गांव में रहकर।

पिछले दिनों मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के गांव कुटनासिर के किसान होशियार सिंह ने अपनी पांच एकड़ में उपजी 100 कैरेट टमाटर की उपज को इसलिए तालाब में फेंक दिया क्योंकि मंडी में मिल रही कीमत से उनकी फसल की लागत तक नहीं निकल रही थी। ऐसे ही मामले प्रदेश के रायसेन जिले बाड़ी और बकतरा में भी सामने आए।

सिर्फ मध्य प्रदेश में ही नहीं, महाराष्ट्र, बिहार और छत्तीगढ़ में भी इस तरह किसानों ने अपनी सब्जियां इसलिए फेंक दी, क्योंकि उन्हें मंडी में कीमत नहीं मिल सकी। बीती फरवरी में ही बिहार के समस्तीपुर जिले की मूर्तिपुर सब्जी मंडी में एक किलो टमाटर सिर्फ एक रुपए के हिसाब से खरीदने को तैयार थे, जिससे मंडी के बाहर किसानों ने टमाटर फेंक दिए और सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ गुस्सा जाहिर किया।

एफपीओ से मिल सकती है किसानों को बड़ी मदद

Farmer Producer Organization (FPO) यानि किसान उत्पादक संगठन, असल में यह किसानों का एक समहू होता है, जो वास्तव में कृषि उत्पादन कार्य में लगा हो और कृषि व्यावसायिक गतिविधियां चलाने में एक जैसी धारणा रखते हों, एक गांव या फिर कई गांवों के किसान मिलकर भी यह समूह बना सकते हैं। यह समूह बनाकर संगत कंपनी अधिनियम के तहत एक किसान उत्पादक कंपनी के तौर पर पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकते हैं।

ये होंगे किसानों को फायदे

  • यह एक सशक्त किसानों का समूह होने के कारण किसानों को एफपीओ के सदस्य के रूप में फसलों की उपज का बेहतर मूल्य मिलने की ताकत देगा।
  • बीज, उवर्रक, कीटनाशकों सही कीमत पर किसानों को होता है उपलब्ध।
  • किसानों को बिचौलियों और मंडी में कालाबाजारी से मिलेगी मुक्ति।
  • सिर्फ इतना ही नहीं, एफपीओ मूल्य संवर्धन के लिए फूड प्रोसेसिंग और पैकिंग जैसी गतिविधियां भी शुरू कर सकता है, जिससे किसानों को उनके उत्पाद की अच्छी कीमत मिल सकती है।
  • एफपीओ के गठन से उपज की प्रसंस्करण, भंडारण, परिवहन जैसी मदों में संयुक्त खर्चा होता है, जिससे किसानों को बचत होती है।
  • एफपीओ से किसानों को सरकार की ओर से ग्रीन हाउस, कृषि की मशीनों, कोल्ड स्टोरेज जैसे संसाधनों में भी सब्सिडी की सुविधा मिलती है।

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उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के महोली ब्लॉक में किसान उत्पादक संगठन (FPO) चला रहे विकास सिंह ‘गाँव कनेक्शन’ से फोन पर बातचीत में बताते हैं, “हमने 10 किसानों के साथ मिलकर एफपीओ का गठन किया था, जिसकी संख्या आज की तारीख में 576 हो चुकी है। ये सभी किसान आज इस संगठन के जरिए बिचौलिए और कालाबाजारी से मुक्त हो चुके हैं और उन्हें उनकी उपज की अच्छी कीमत भी मिल रही है।“

विकास आगे बताते हैं, “इतना ही नहीं, हमारे संगठन में ज्यादातर सब्जी उत्पादक किसान हैं, यहां की मंडियों में बिचौलिओं की पौ बारह होने की वजह से एफपीओ के जरिए अब किसान अपनी उपज यहां बेचते हैं। संगठन में किसानों को उर्वरक, बीज, कीटनाशक, मशीनरी समेत कई कृषि उपयोग चीजें भी सही मूल्य पर मिल रही हैं। इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्र हर हफ्ते किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए भी आते हैं।“

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वहीं, उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में कृषि विज्ञान केंद्र, मऊ के प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर वीपी सिंह ‘गाँव कनेक्शन’ से फोन पर बातचीत में बताते हैं, “किसानों को एफपीओ से जुड़ना चाहिए। ये ग्रुप एक तरह की फसलों के लिए भी बनाए जाते हैं, जिन्हें सेम इंटरेस्ट ग्रुप भी कहते हैं। ऐसे में एक तरह की फसलों को भी प्रोत्साहित किया जाता हैं, जैसे किसी क्षेत्र में टमाटर का ज्यादा उत्पादन होता है, तो किसान बड़ी संख्या में ऐसा समूह बनाकर जुड़ सकते हैं, जो किसानों को उपनी टमाटर की उपज की अच्छी कीमत दिला सकता है।“

वह आगे कहते हैं, “दूसरी बात यह है कि गांव-गांव किसानों को आपस में जुड़ना चाहिए और महिला किसानों को फूड प्रोसेसिंग पर काम करना चाहिए, ताकि अगर मंडी में कीमत कम मिल रही है तो किसान इस तरह से भी मुनाफा कमा सकता है। यह तभी संभव होगा जब किसान एक साथ आएं।“

नाबार्ड उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय महाप्रबंधक नवीन रॉय बताते हैं, “अब तक उत्तर प्रदेश में 130 किसान उत्पादक संगठन का गठन किया जा चुका है। इनमें से करीब 20 सब्जी उत्पादन, संग्रहण और विपणन से जुड़े हैं। एफपीओ से जुड़कर छोटे और मझोले किसानों को अपनी उपज की न सिर्फ अच्छी कीमत मिल रही है, बल्कि कृषि से जुड़ी और भी सुविधाएं जा रही हैं। एफपीओ से किसानों को बाजार में मूल्य प्रतिस्पर्धा का काफी लाभ मिल रहा है।”

दूसरी ओर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक और राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एस अय्यपन बताते हैं, “एफपीओ किसानों के लिए एक ऐसा जरिया है कि गांव का एक छोटे से छोटा किसान भी बिना किसी बिचौलिए और मंडी की कालाबाजारी में आए अपनी उपज की अच्छी कीमत पा सके। इसलिए सरकार एफपीओ को न सिर्फ प्रोत्साहित कर रही है, बल्कि कई क्षेत्रों में सब्सिडी भी दे रही है। ऐसे में किसानों को बड़ी संख्या में इसका लाभ उठाना चाहिए।“

कृषि उत्पादों का डिजिटल बाजार, यानि ई-नाम

फोटो: फोटो गांव कनेक्शन

किसानों को उनकी उपज का अधिकतम लाभ पहुंचाने के लिए और कृषि विपणन क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार ने पूरे देश में कृषि उत्पादों की ऑनलाइन विपणन को प्रोत्साहन देने के लिए ई-नाम पोर्टल को योजना है। इसके तहत 250 नियमित बाजारों में ई-मार्केट की सुविधा दी गई है। इससे किसानों को ऑनलाइन व्यापार करने, ई-परमिट जारी करने और ई-भुगतान की सुविधा के साथ बाजार के सभी कार्यों के लिए ऑनलाइन सुविधा दी गई है। इसका उद्देश्य कृषि उत्पादों में लेन-देन की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और पूरे देश की बाजारों में किसानों की पहुंच आसान बनाना है।

साथ ही साथ यह किसानों को अधिकतम लाभ देने में भी लाभदायक है। इस योजना के तहत अब 10 राज्यों उत्तर प्रदेश (66), तेलंगाना (44), गुजरात (40), हरियाणा (37), हिमाचल प्रदेश (20), आंध्र प्रदेश (12), राजस्थान (11) और छत्तीसगढ़ (05) ई-नाम पोर्टल के साथ एकीकृत किया जा चुका है। ऐसे में किसानों के पास इन योजनाओं की मदद से अपनी उपज की सही कीमत प्राप्त कर सकते हैं।

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