रामगढ़ (झारखंड)। दस साल पहले ओम प्रकाश मनकी के पिता ने खेत में उर्वरक के रूप में वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करना शुरू किया और चाटक गाँव के मुंडा जनजाति के किसान ओम प्रकाश ऐसा ही कर रहे हैं।
“मेरे पिता को जैविक खेती के महत्व का एहसास हुआ और उन्होंने दो बेड पर वर्मीकम्पोस्ट बनाना शुरू किया, हर एक 50 फीट लंबा, 4 फीट चौड़ा और 2.5 फीट गहरा बनाया था। फिर 2020 में जब मैंने खेती संभाली, तो मैंने धीरे-धीरे ऐसे 150 बेड बनाकर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन बढ़ाया, “ओम प्रकाश ने गाँव कनेक्शन को बताया।
मनकी ने हर एक बेड पर लगभग 7,000 रुपये की लागत लगाई और हर एक बेड से उन्हें 4000 का मुनाफा हुआ। वह 40 क्विंटल गाय के गोबर से वर्मीकम्पोस्ट बनाते हैं, जिसे वह बोकारो जिले से 3500 में खरीदते हैं और लगभग 60 दिनों में लगभग 15 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट तैयार कर लेते हैं।
वो अकेले नहीं हैं। रांची, रामगढ़ और हजारीबाग जिलों के लगभग 100 अन्य किसानों ने अपनी मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है, अब सभी वर्मी कम्पोस्ट का ही इस्तेमाल करते हैं।
ट्रांसफ़ॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF), दिल्ली स्थित एक गैर-सरकारी संगठन इन किसानों को तकनीकी कौशल और वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध कराता है और उनके वर्मीकम्पोस्ट को बेचने में मदद करके उनकी इस जैविक यात्रा में मदद कर रहा है।
टीआरआईएफ के राजगढ़ स्थित पदाधिकारी रतन कुमार सिंह ने कहा कि किसानों को बेचने के लिए वर्मीकम्पोस्ट बनाने जैसे कृषि आधारित व्यवसायों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
रतन कुमार ने कहा, “हम किसानों को प्रशिक्षण दे रहे हैं और रामगढ़ में कृषि आधारित स्टार्टअप शुरू करने के लिए उन्हें एक लाख रुपये तक का लोन भी दे रहे हैं।” उनके अनुसार, 2020 से अब तक लगभग 80 किसानों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
हेसापोड़ा गाँव के एक किसान नंद किशोर मुर्मू ने रासायनिक उर्वरकों के बजाय वर्मीकम्पोस्ट पर स्विच किया और परिणामों से खुश हैं। “रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के वर्षों के बाद, मेरी मिट्टी ने अपनी उर्वरता खो दी थी। जब से मैंने वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करना शुरू किया है, उत्पादन बढ़ा है और मेरे खेतों की मिट्टी धीरे-धीरे ठीक हो रही है, “उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।
वर्मीकम्पोस्ट मिट्टी की जलधारण क्षमता को बढ़ाने में भी मदद करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि पूरे वर्ष उर्वरता बनी रहे, रतन कुमार ने समझाया
“फसलें केवल उन पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं जिनकी उन्हें स्वाभाविक रूप से मिट्टी से जरूरत होती है और अतिरिक्त पोषक तत्व मिट्टी में छोड़ दिए जाते हैं जो रासायनिक उर्वरकों के मामले में नहीं है। साथ ही, यह भी देखा गया है कि उपयोग किए जाने वाले वर्मीकम्पोस्ट की मात्रा भी धीरे-धीरे कम होती जाती है, जबकि रासायनिक उर्वरकों के मामले में उपयोग की जाने वाली मात्रा समय के साथ बढ़ती ही जाती है, ”उन्होंने आगे कहा।
‘तरल वर्मीकम्पोस्ट’
ओमप्रकाश वर्तमान में अपने खेतों में तरल वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग कर रहे हैं जिसका उपयोग सब्जियों और धान की खेती के लिए किया जाता है।
“वर्मीकम्पोस्ट को पानी में डाला जाता है। इसे रोजाना पानी में मिलाया जाता है, जिससे इसके सारे पोषक तत्व पानी में घुल जाते हें। इस लिक्विड का प्रयोग एक फसल के लिए तीन बार किया जा रहा है। करीब 20 से 25 डिसमिल प्लॉट [एक चौथाई एकड़] के पौधों पर छिड़काव के लिए 15 लीटर पानी में तीन लीटर तरल खाद मिलाकर छिड़काव किया जा रहा है। क्योंकि पौधों को इसकी पत्तियों और शाखाओं पर सीधे खाद मिलती है, इसलिए अच्छे रिजल्ट जल्दी ही आते हैं और पौधे स्वस्थ हो जाते हैं, “उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।
यह रिपोर्ट TRIF के सहयोग से की गई है।