अगर आपको भी यही लगता है कि करेमुआ का साग, जिसे नारी भी कहते हैं सिर्फ बरसात के दिनों में मिलता है, तो ऐसा नहीं है वैज्ञानिकों ने करेमुआ की एक नई किस्म विकसित की है, जिसकी खेती सालभर की जा सकती है।
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के वैज्ञानिकों ने करेमुआ (Water Spinach) की नई किस्म, काशी मनु विकसित की है, जिसे एक बार लगाकर कई बार उत्पादन पा सकते हैं।
काशी मनु को विकसित करने वाले भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश कुमार दुबे इस किस्म के बारे में बताते हैं, “पहले करेमुआ बरसात के दिनों में तालाब और नदियों के किनारे जहां पर पानी होता था वहीं पर होता था, क्योंकि पहले इसकी कोई किस्म नहीं थी, इसलिए अपने आप उग जाती थी, उसे ही लोग खाने के लिए इस्तेमाल करते थे।”
वो आगे कहते हैं, “लेकिन तालाब-पाखरों में उगने वाले करेमुआ के कुछ नुकसान भी थे, क्योंकि ऐसे में होता था कि पानी में कई तरह के प्रदूषण होते हैं, क्योंकि यह पत्तेदार सब्जी है और इसकी पत्तियां ही खाने में इस्तेमाल की जाती हैं। दूसरा अगर बहुत ज्यादा पानी भरा है तो उसकी हार्वेस्टिंग करना मुश्किल होता था, इसके ध्यान में रखकर हमने इस किस्म को विकसित किया है।”
इस किस्म की सबसे खास बात यह है कि इसे दूसरे पत्तेदार सब्जियों की तरह से खेत में ही उगाते हैं। इसे तालाब-पोखरों में लगाने की जरूरत नहीं है।
“साथ ही इसकी खास बात ये है इसे महीने में तीन से चार बार काट सकते हैं, इसे जितना काटते हैं उतनी ही बढ़ती जाती है। इसे एक बार लगा देंगे ये सालों साल चलती रहेगी और इसके साथ-साथ इसमें पोषक तत्व की भी भरपूर मात्रा होती है, इसमें जिंक, आयरन और एंटी ऑक्सीडेंट की मात्रा भी भरपूर होती है, “डॉ राकेश ने आगे बताया।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, मऊ, जौनपुर, अयोध्या, बांदा, कुशीनगर जैसे से कई जिलों में किसानों को काशी मनु के बीज दिए गए और इसके अच्छे परिणाम भी मिले हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार इसका उत्पादन 90 से 100 टन प्रति हेक्टेयर होता है, जिसमें उत्पादन की लागत 1,40,000 से 1,50,000 रुपए तक आती है। साग का औसत दाम 15-20 प्रति किलोग्राम होता है, इस हिसाब से किसान की आय हर साल 12,000,000/- से लेकर 15,00,000 प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है। कुल मिलाकर यह किसानों के लिए काफी फायदे की फसल है, क्योंकि इसमें लागत बहुत कम लगती है, लेकिन उत्पादन बढ़िया मिलता है।
दूसरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक-मेथी की खेती सर्दियों में होती है, जिसमें 3-4 महीनों में फूल आ जाते हैं, लेकिन काशी मनु के साथ ऐसा नहीं है। डॉ दुबे बताते हैं, “गर्मियों में पत्तेदार सब्जियों का आभाव रहता है, इसकी खास बात यह है, जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है वैसे-वैसे इसकी पैदावार भी अच्छी होती है, बरसात में भी ये तेजी से बढ़ते हैं। सबसे खास बात ये है इसमें रोग-कीट भी नहीं लगते हैं।”
अगर आप भी इस किस्म की खेती करना चाहते हैं तो भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी से इसके बीज ले सकते हैं।
इसकी बुवाई मेड़ पर या क्यारी बनाकर लाइन में की जाती है, एक बार लगा देने पर कटाई चलती रहती है। इसमें पानी भी बहुत ज्यादा नहीं लगता है, गर्मियों में 15 दिन में सिंचाई की जरूरत होती है।