सर्दी ने छीनी सरसों की रंगत तो फीका पड़ा शहद का कारोबार, यूपी में उत्पादन 35 फीसदी घटा

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सर्दी ने छीनी सरसों की रंगत तो फीका पड़ा शहद का कारोबार,  यूपी में उत्पादन 35 फीसदी घटाशहद उत्पादन में कमी आने से कई मधु मक्खीपालक छोड़ रहे व्यवसाय।

सुधा पाल

लखनऊ। नए साल से ही शुरू सर्द हवाओं से न केवल किसानों की खेती पर असर आ रहा है बल्कि शहद उत्पादन पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। सरसों में पर्याप्त मात्रा में फूल न आने से मधुमक्खियों को पर्याप्त परागण नहीं मिल पा रहा है, जिसके चलते शहद उत्पादन घट गया है।

मेरे पास इस समय 800 मौनवंश हैं। हर एक मौनवंश में 25000 मधुमक्खियां पाली गईं हैं। इस समय धूप कम होने से और इससे पहले भी कोहरा और पाले की वजह से मक्खियां बाहर नहीं जाती हैं। ये हाल पिछले कई साल से हो रहा है। मौसम सही न होने की वजह से शहद नहीं बन पाता है।”
बृजेश कुमार, मधुमक्खीपालक, गोसाईंगंज, लखनऊ

उत्तर प्रदेश में लखनऊ समेत करीब 15 जिलों में शहद का उत्पादन होता है। लेकिन बेहद सर्द मौसम मौन पालकों के लिए घातक साबित हो रहा है। मौसम की मार से पिछले तीन वर्षों सें शहद का उत्पादन करीब 35 फीसदी घट गया है। शहद उत्पादकों के लिए ये मौसम सबसे बेहतर होता है। सरसों के फूल ही मधुमक्खियों के भोजन का सबसे बेहतर स्त्रोत होते हैं, लेकिन मौसम में आए बदलाव, सर्द हवाओं और पाले के चलते कई इलाकों में सरसों में फूल नहीं बन पा रहे हैं, जो बन रहे हैं वो झड़ रहे हैं। कृषि विशेषज्ञ के मुताबिक सर्दी से एक तो फूलों में पराग नहीं बन पा रहा है तो दूसरे कड़ाके की ठंड में मधुमक्खियां भी बॉक्स से बाहर नहीं निकल रहीं , जिससे शहद उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

पहले और अब के मौसम में काफी अंतर आ चुका है। पहले जनवरी महीने में ही इतनी बारिश हो जाती थी कि मक्खियों को भरपूर मात्रा में पराग मिल जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। स्वस्थ फूल नहीं बनने से उत्पादन गिर रहा है।”
अमृत कुमार वर्मा, वरिष्ठ स्रोत सहायक, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उप्र

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उप्र के वरिष्ठ स्रोत सहायक अमृत कुमार वर्मा बताते हैं, “पहले और अब के मौसम में काफी अंतर आ चुका है। पहले जनवरी महीने में ही इतनी बारिश हो जाती थी कि मक्खियों को भरपूर मात्रा में पराग मिल जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। स्वस्थ फूल नहीं बनने से उत्पादन गिर रहा है।”

वो आगे बताते हैं, “अधिक ठंड होने की वजह से मधुमक्खियां बॉक्स से बाहर नहीं निकल पाती हैं। मक्खियां परागण के लिए सुबह से निकल जाती हैं और पूरा दिन नेक्टर की तलाश में घूमती रहती हैं लेकिन इस समय तापमान में आ रही लगातार गिरावट से वे बाहर नहीं निकल पा रहीं हैं।” मधुमक्खियों के भोजन के लिए जनवरी से मार्च का समय सबसे उपयुक्त होता है। इसके साथ ही नवंबर से फरवरी का समय तो इनके लिए और अधिक लाभकारी है जब अच्छी मात्रा में परागण इकट्ठा किया जा सकता है।

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के मुताबिक तीन साल पहले अच्छे मौसम के चलते मधुमक्खीपालकों को अच्छा मुनाफा हुआ करता था। एक मौनवंश (मक्खियों का बाक्स) से लगभग 60 से 70 किलो तक शहद उत्पादन किया जाता था वहीं अब तीन सालों से एक मौनवंश से पालक केवल 20 किलो तक ही शहद निकाल पा रहे हैं।

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के मुताबिक तीन साल पहले अच्छे मौसम के चलते मधुमक्खीपालकों को अच्छा मुनाफा हुआ करता था। एक मौनवंश (मक्खियों का बाक्स) से लगभग 60 से 70 किलो तक शहद उत्पादन किया जाता था वहीं अब तीन सालों से एक मौनवंश से पालक केवल 20 किलो तक ही शहद निकाल पा रहे हैं।

गाँव कनेक्शन

गोसाईंगंज के मधुमक्खीपालक बृजेश कुमार बताते हैं, “मेरे पास इस समय 800 मौनवंश हैं। हर एक मौनवंश में 25000 मधुमक्खियां पाली गईं हैं। इस समय धूप कम होने से और इससे पहले भी कोहरा और पाले की वजह से मक्खियां बाहर नहीं जाती हैं। ये हाल पिछले कई साल से हो रहा है। मौसम सही न होने की वजह से शहद नहीं बन पाता है।”

जहां पहले एक बाक्स से साल भर में एक क्विंटल तक शहद निकलता था वहीं अब इसका आधा तक हो जाता है। निजी कंपनियां भी कम रेट देकर कच्चा शहद खरीद रही हैं। एक किलो शहद का कंपनियां 65 से 70 रुपए देकर पालकों से खरीद रहीं हैं। जबकि इसकी कीमत इससे ज्यादा है। बृजेश कुमार के मुताबिक कच्चे शहद का मूल्य 150 रुपए है लेकिन मजबूरी में उन्हें घाटा उठाना पड़ रहा है। सहारनपुर के शहद के थोक खरीदार देवव्रत शर्मा बताते हैं कि मैं प्रदेश भर से शहद की खरीद करता हूं। उत्तर प्रदेश में कम से कम 10000 टन तक तो शहद उत्पादन किया ही जाता है लेकिन कुछ सालों से कमी आई है।

प्रदेश की राजधानी समेत अन्य जनपदों में भी मधुमक्खी पालन कर शहद का स्वउत्पादन कर इस व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा रहा है। इनमें मुरादाबाद, गोरखपुर, बस्ती, वाराणसी, जौनपुर, सहारनपुर, सुल्तानपुर, आजमगढ़, फैजाबाद, इलाहाबाद, बरेली, आगरा, कानपुर नगर और गाजीपुर शामिल हैं। इस साल शहद उत्पादन का लक्ष्य 49 क्विंटल तक रखा गया है लेकिन मौसम को देखते हुए आने वाले समय में ही इसका उत्पादन पता चल पाएगा।

     

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