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बढ़ते तापमान में कहीं झुलस न जाए गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद

कृषि मंत्रालय द्वारा फरवरी में जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार इस बार गेहूं की रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद की जा रही है, लेकिन मार्च महीने में अचानक बढ़े तापमान ने किसानों और वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है।
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गेहूं की कटाई की तैयारी कर रहे किसान विकास चौधरी को इस बार गेहूं के बढ़िया उत्पादन की उम्मीद थी, लेकिन मार्च महीने में अचानक बढ़े तापमान ने उनकी चिंता बढ़ा दी है। क्योंकि बढ़ता तापमान उत्पादन पर असर डाल सकता है, जबकि कृषि मंत्रालय के अग्रिम अनुमान के अनुसार में देश में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन होगा।

हरियाणा के करनाल जिले के तरावड़ी गाँव के 41 वर्षीय किसान विकास चौधरी ने इस बार लगभग 55 एकड़ में गेहूं की बुवाई की है। दो-चार दिनों में फसल की कटाई भी शुरू हो जाएगी, लेकिन बढ़े तापमान से वो चिंतित भी हैं। विकास गाँव कनेक्शन से गेहूं की फसल के बारे में बताते हैं, “आमतौर पर एक एकड़ में 24-25 क्विंटल गेहूं का उत्पादन हो जाता है, लेकिन बढ़ती गर्मी को देखकर लग रहा है कि इस बार उत्पादन घट सकता है।”

वो आगे कहते हैं, “अभी पूरी तरह से तो नहीं कह सकते हैं, दो-चार दिनों में फसल कटने के बाद ठीक से पता चलेगा कि कितना उत्पादन होगा।”

मार्च माह के आखिरी सप्ताह में अचानक बढ़े तापमान व तेज हवाओं का असर अब पैदावार पर देखने को मिल रहा है। उस दौरान अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस व न्यूनतम 20 डिग्री सेल्सियस तक रहा है। जबकि गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए अधिकतम तापमान 16 से 18 डिग्री सेल्सियस चाहिए होता है।

किसान अगेती, समय पर और पछेती गेहूं की किस्मों की बुवाई होती है। किस्म के हिसाब से इन्हें तैयार होने में समय लगता है, सामान्य तौर पर 140-145 दिनों में गेहूं की फसल तैयार होती, जिसमें बाली आने में लगभग 100 दिन लगते हैं।

25 नवबंर से पहले बोई गई फसल मार्च के महीने में तैयार हो जाती है, जबकि 25 नवंबर के बाद बोई गई फसल अप्रैल तक कटाई के लिए तैयार होती है। आखिरी के एक महीने में गेहूं की बालियों में दूध से दाने भरने की प्रक्रिया होती है, अगर तापमान सही रहा तो दाने गोलाई के आकार लेते हैं, लेकिन तापमान बढ़ने के कारण बालियां जल्दी से पक जाती है। समय कम मिलने पर गेहूं की बालियां में दाने पतले रह जाते हैं। जिसका सीधा प्रभाव उत्पादन पर बढ़ता है। इस बार गेहूं के साथ यही हुआ है।

उत्तरी गंगा-सिंधु के मैदानी क्षेत्र देश का सबसे उपजाऊ और गेहूं के सर्वाधिक उत्पादन वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में गेहूं के मुख्य उत्पादक राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा व उदयपुर सम्भाग को छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के जम्मू व कठुआ जिले व हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला व पोंटा घाटी शामिल हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले कई सालों से मार्च-अप्रैल के महीने में मौसम में बदलाव देखा जा रहा है। उत्तराखंड में भी कुछ ऐसे ही हालात हैं, जबकि यहां पर तापमान दूसरे राज्यों के मुकाबले काफी कम होता है, लेकिन यहां पर भी तापमान बढ़ गया। नैनीताल जिले के हलद्वानी ब्लॉक के मल्लादेवला गाँव के किसान नरेंद्र मेहरा भी गेहूं की खेती करते हैं। नरेंद्र मेहरा बताते हैं, “हमारे यहां वैसे भी एक एकड़ में 15-16 क्विंटल से ज्यादा गेहूं का उत्पादन नहीं होता है, लेकिन इस बार कई किसानों का प्रति एकड़ उत्पादन 11-12 क्विंटल तक आ रहा है। हमारे जबकि ऐसा कभी नहीं होता था, किसानों को लग रहा है कि अगर ऐसा ही रहा तो लागत भी निकालनी मुश्किल हो जाएगी।”

16 फरवरी को कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2021-22 के दौरान गेहूं का कुल उत्पादन रिकॉर्ड 111.32 मिलियन टन अनुमानित है। यह पिछले पांच वर्षों के 103.88 मिलियन टन औसत उत्पादन की तुलना में 7.44 मिलियन टन अधिक है।

जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विज्ञान विभाग के हेड व प्रोफेसर डॉ राजकुमार सिंह बताते हैं, “इस बार उत्तराखंड में तापमान सामान्य से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक है, मार्च महीने से ही तापमान बढ़ने लगा है, जिसका असर उत्पादन पर भी पड़ेगा, जबकि उत्तराखंड में दूसरे राज्यों के मुकाबले तापमान काफी कम रहता है।”

उत्तराखंड के तराई जिलों जैसे हरिद्वार, उधमसिंह नगर में गेहूं की खेती होती है, यहां पर फसल 15 अप्रैल के बाद हार्वेस्टिंग के लिए तैयार होती है। 

भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह के अनुसार बढ़े तापमान का असर गेहूं पर पड़ेगा, लेकिन बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। डॉ ज्ञानेंद्र गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “समय से बोई गईं और अगेती फसलों के उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, देर से बोई गईं फसल के उत्पादन में कमी आ सकती है, लेकिन वो भी बहुत ज्यादा नहीं 1-2 प्रतिशत तक कमी आएगी। वैसे भी ज्यादातर किसान नई किस्मों की ही खेती करते हैं, जिन पर गर्मी का ज्यादा असर नहीं होता है।”

भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान ने डीबीडब्ल्यू 187 (करण वंदना), डीबीडब्ल्यू 303 (करण वैष्णवी) है डीबीडब्ल्यू 71 जैसी किस्में हैं इनमें गर्मी सहने की क्षमता है, नुकसान तो थोड़ा बहुत होगा लेकिन दूसरी किस्मों के मुकाबले कम होता है। संस्थान के वैज्ञानिक गेहूं कुछ ऐसी ही किस्में विकसित कर रहे हैं, जिसपर बढ़ते तापमान का असर भी न पड़े और बेहतर उत्पादन भी मिलता रहे।

“मध्य भारत में गेहूं की हार्वेस्टिंग हो गई, बाकी बचे उत्तर भारत में भी हार्वेस्टिंग चल रही है। इस बार फिर गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन होगा, इस पर हमने पहले भी कहा कि रिकॉर्ड उत्पादन इस बार भी होगा। वैसे भी इस समय गेहूं का निर्यात बढ़ा है, सात मिलियन टन गेहूं का निर्यात हो गया है, अभी 10 टन तक गेहूं निर्यात होगा, “डॉ ज्ञानेंद्र ने आगे कहा।

आईपीसीसी की हाल ही में जारी हुई रिपोर्ट के अनुसार उच्च तापमान और चरम मौसम की घटनाएं फसलों को नुकसान पहुंचा रही हैं और अगर तापमान में वृद्धि ऐसे ही जारी रही तो दुनिया भर में फसल उत्पादन में तेजी से कमी आएगी। चावल, गेहूं, दालें और मोटे अनाज की पैदावार पर असर पड़ेगा।

तापमान में आ रहे बदलाव की वजह से खेती पर क्या असर पड़ेगा इस पर गाँव कनेक्शन ने वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक और प्रेसीडेंट ऑफ इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ इंग्रीकल्चर मेट्रोलॉजी और आईएमडी के पूर्व उप महानिदेशक मेट्रोलॉजी, कृषि मेट्रोलॉजी संभाग पुणे, डॉ. एन चट्टोपाध्याय से बात की।

डॉ एन चट्टोपाध्याय बताते हैं, “जिन किसानों ने गेहूं की देर से बुवाई की है, उनके उत्पादन पर ही असर पड़ेगा। बहुत से ऐसे किसान होते हैं जो आलू की खुदाई और गन्ने की कटाई के बाद गेहूं की बुवाई करते हैं जो अप्रैल में जाकर तैयार होती है। उन्हीं के उत्पादन ही असर पड़ सकता है।

वो आगे कहते हैं, “साल 2012 में भी यही हुआ था जब फरवरी महीने में अचानक से तापमान बढ़ गया था, जिससे बालियों में दाने नहीं भर पाए थे, यही इस बार भी हुआ है। गेहूं से ज्यादा तो नुकसान बागवानी फसलों को होगा, आईपीसीसी रिपोर्ट में भी यही बताया गया है कि आने वाले समय में और भी ज्यादा तापमान बढ़ेगा, जिसका सीधा असर फसलों पर पड़ेगा। अगर ऐसा ही रहा तो बहुत सी सर्दी में उगाई जाने वाली फसलें खत्म ही हो जाएंगी।”

डॉ चट्टोपाध्याय सुझाव देते हैं कि आने वाले समय में वैज्ञानिकों को कम समय में तैयार और अधिक तापमान को सहने वाली किस्मों को विकसित करना होगा, तभी इससे निजात पायी जा सकती है।”

गेहूं के साथ ही दूसरी ऐसी कई फसलें हैं जिनपर मौसम की मार पड़ी है। फूलों की खेती करने वाले रवि की परेशानी भी कम नहीं है। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के किसान रवि पाल (32 वर्ष) फूलों की खेती करते हैं। रवि मैनपुरी के सुल्तानगंज ब्लॉक के गाँव पद्मपुर छिबकरिया के रहने वाले हैं और पिछले कई साल से फूलों की खेती कर रहे हैं।

पिछले दो साल कोविड-19 के कारण नुकसान उठा रहे रवि बताते हैं, “नवरात्रि और शादियों के सीजन में फूलों की खेती में सबसे ज्यादा कमाई होती है, इस बार भी अभी फसल तैयार है और अभी नई फसल भी लगाई है। वैसे भी गर्मियों में फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है। 10-15 दिनों में सिंचाई करना होता है, लेकिन इस बार तो इतनी ज्यादा गर्मी है कि 4-5 दिनों में सिंचाई करनी पड़ रही है, अगर ऐसा ही रहा तो कमाई कैसे होगी।”

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