गेहूं के सीजन में इन इलाकों में लहलहा रही है धान की फसल

Ashwani NigamAshwani Nigam   5 Jan 2017 5:26 PM GMT

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गेहूं के सीजन में इन इलाकों में लहलहा रही है धान की फसलपूर्वाँचल में बड़े पैमाने पर होने लगी है इस मौसम में धान की खेती।

अश्वनी कुमार निगम

लखनऊ। गेहूं के सीजन में अब यूपी में धान उगाया जा रहा है। पूर्वांचल में इस धान को बोरोधान कहा जाता है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया, देवरिया, गोरखपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, मिर्जापुर, वाराणसी और गाजीपुर के जिले में इस मौसम में भी धान की फसल लहलहा रही है। पूर्वांचल के 3 हजार हेक्टेयर का ऐसा क्षेत्र जहां पर जलजमाव के कारण कारण सामान्य खरीफ और रबी की फसल नहीं हो पाती थी, वहां पर बोरोधान धान की खेती की जा रही है। बोरोधान धान उत्पादक प्रमुख देशों के साथ ही नेपाल सीमा से लगे उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों में सदियों से बोरोधान की खेती होती थी। प्रचार-प्रसार के अभाव में बोरोधान गायब होने की कगार पर पहुंच गया था, लेकिन उत्तर प्रदेश कृषि विभाग और पूर्वांचल के किसानों की बदौलत बोरोधान की खेती फिर से शुरू की गई है।

नेपाल की सीमा से सटे महराजगंज जिले के गांगी बाजार के भेड़िया टोला गाँव के किसान मनोज कुमार ने कहा, ‘’मेरे खेत के पास से पानी की बड़ी नहर गुजरती है जिसके कारण उसके पास स्थित मेरे खेतों में वर्षों पानी का जलजमाव रहता है। इसके कारण मैं इसमें सामान्य तौर पर न तो गेहूं की खेती कर पाता हूं और ना ही धान की। ऐसे में पिछले कई वर्षों से मैं बोरोधान की खेती कर रहा हूं। इसकी पैदावार भी अच्छी हो रही है।’’

बरसात में निचले जलजमाव के ऐसे क्षेत्र जहां पर कोई खेती नहीं हो पाती थी वहां पर बोरोधान की खेती की जा रही है। बोरोधान से किसान सामान्य धान की तुलना में 30-40 प्रतिशत अधिक उपज भी प्राप्त कर सकते हैं।
ज्ञान सिंह, निदेशक, कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश

गोरखपुर जिले के सदर तहसील के मानीराम गाँव में भी कई किसान बोरोधान की खेती कर रहे हैं। इस गाँव के किसान रामभुअल निषाद ने बताया, “गाँव में बहुत बड़ा ताल है जिसके कारण से बरसात में गाँव के बाहर का तीन हिस्सा पानी में डूब जाता है। बरसात का मौसम खत्म होते ही यह पानी हटने लगता है। लेकिन उसके बाद भी पूरा पानी नहीं हट पाता है ऐसे में यहां पर बोरोधान की खेती हो रही है।

बोरोधान की खेती को लेकर कृषि वैज्ञानिकों ने कई रिसर्च करके बोरोधान की कई प्रजातियां भी विकसित भी गई हैं, किसान इस प्रजाति का बोरोधान लगाकर अधिक उपज ले सकते हैं।
डा. आरपी सिंह, कृषि वैज्ञानिक, पंडित गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय

डेढ़ सौ दिन में तैयार हो जाती है फसल

बोरोधान की खेती को बढ़ावा देने के लिए बोरोधान की कई किस्मों में विकसित किया गया है। जो 140 से लेकर 150 दिन में तैयारी हो जाता है। कृषि विभाग ने बोरोधान की फसल को लेकर किसानों में जागरूकता पैदा करने के लिए एक बुकलेट का भी प्रकाशन भी किया है। जिसमें किसानों को बोरोधान के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। इस बारे में जानकारी देते हुए उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद में तकनीकी सहाया डा. जेपी मिश्रा ने बताया कि बोरोधान के लिए पौध डालने का समय अक्टूबर मध्य से लेकर नवंबर तक होता है। एक माह में इसकी पौध जिसे पूर्वांचल में जरई भी कहा जात है तैयारी हो जाती है। इसके बाद इसकी रोपाई की जाती है। बोरोधान के पौधों केा डेपोग विधि से भी तैयार किया जा सकता है।

इस विधि में पौधे को छत या बड़ी आकार की लोहे या लकड़ी की ट्रे में तैयार किया जा सकता है। जिसमें अंकुरित बीज को एक इंच मोटी मिट्टी की सतह पर फैला दिया जाता है। इस सतह को हल्के हाथों से थपथपा देते हैं, पानी छिड़कर इसकी नमी को बनाए रखते हैं। इस विधि से पौध लगाने उगाने में ठंडक से हानि की संभावना कम हो जाती है।

    

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