स्मॉग घटा देगा गेहूं की पैदावार

Ashwani NigamAshwani Nigam   10 Nov 2017 6:53 PM GMT

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स्मॉग घटा देगा गेहूं की पैदावारफोटो: गाँव कनेक्शन

लखनऊ। दिल्ली के साथ ही पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अपनी चपेट में लिए स्मॉग से जहां लोगों की जिंदगियों को खतरा उत्पन्न हो गया है, वहीं इससे खेती पर भी बड़ा असर पड़ने जा रहा है।

पत्त्तियों पर जम जाते हैं छोटे-छोटे कण

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा नई दिल्ली के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. वाईपी सिंह बताते हैं, “स्मॉग दौरान के पौधों की पत्तियों पर धूल के छोटे-छोटे कणों की परत जम जाती है। इसके कारण पौधे के विकास में जरूरी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे पौधे का विकास नहीं हो पाता है।''

सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचने देती पत्तियों तक

डॉ. सिंह बताते हैं, “स्मॉग में धूल की परत सूर्य से मिली रोशनी को हरी पत्तियों तक सीधे नहीं पहुंचने देती है, चूंकि प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान पौधे अपने लिए जरूरी ऊर्जा का निर्माण करते हैं। पर्याप्त ऊर्जा के अभाव में पौधे का समुचित विकास नहीं हो पाता है। इसके अलावा स्मॉग के कारण अंकुरण की प्रक्रिया पर भी असर पड़ता है।“

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रभाव

रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं की सबसे ज्यादा खेती पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही होती है, यही वह क्षेत्र हैं जो स्मॉग से आजकल प्रभावित हैं, ऐसे में इन क्षेत्रों की गेहूं की फसल पर इसका असर पड़ेगा।

गैस की मात्रा अधिक होने पर बढ़ती है समस्या

भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान ने भी अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि पिछले कुछ सालों में ग्रीन हाउस गैसों को बढ़ाने में खेतों में पराली जलाना भी अपना बड़ा योगदान दे रहा है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रीन हाउस गैस वातावरण का प्राकृतिक घटक है जिसके बगैर धरती पर जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं, लेकिन जब इस गैस की मात्रा अधिक हो जाती है तो यह बड़ी समस्या बन जाती है। लकड़ी और फसल अवशेष जलने, गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाले धुओं से कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन, नाइट्रस आक्साइड और हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन होने से ओजोन परत में छेद होने के साथ ही तापामन में वृद्धि से जलवायु परिवर्तन हो रहा है।

चुनौतीपूर्ण होता जा रहा गेहूं की खेती करना

भारत में कृषि उत्पादन खासकर अनाज में गेहूं की खेती करना एक चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। गेहूं उत्पादन में देश के अग्रणी राज्य पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जलवायु परिवर्तन और जल की उपलब्धता की कमी के कारण यह समस्या आने वाले दिनों में भयावह होने वाली है। इन राज्यों में मोनोक्रापिंग से मृदा के स्वास्थ्य में काफी गिरावट आई और राज्य भूजल के अधिक दोहन से भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है, जिससे परिस्थितिक असंतुलन भी हो रहा है। ऐसे में खेतों में पराली जलाना इस समस्या को और बढ़ा सकता है।

कई फसलों खासकर गेहूं में बढ़ सकता है बीमारियों का प्रकोप

कृषि वैज्ञानिक राजपाल मीन कहते हैं, “स्मॉग के कारण कई फसलों खासकर गेहूं में बीमारियों का प्रकोप बढ़ सकता है। ऐसा स्मॉग और नमी के कारण हो रहा है। दरअसल स्मॉग के कारण नमी बढ़ जाती है। स्मॉग का एक और असर यह होता है कि इससे दवाओं का असर पौधों पर कम होने लगता है, खासकर खरपतवारनाशी दवाओं का असर कम हो जाता है।“

इस साल गेहूं का उत्पादन 98.38 मिलियन टन अनुमानित

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार ने इस साल गेहूं का उत्पादन 98.38 मिलियन टन अनुमानित किया है, जोकि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। देश में 2016-17 में गेहूं का उत्पादन 2016 के दौरान 92.29 मिलियन टन की तुलना में 6.09 मिलियन टन अधिक है। ऐसे में स्मॉग के कारण गेहूं के इस लक्ष्य को प्राप्त करना मुश्किल होगा।

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