लखनऊ। इन रंग-बिरंगे फूलों की खेती कुछ महीनों में आपको दूसरी फसल के मुकाबले कई गुना मुनाफा दे सकती है। इस महीने किसान ग्लेडियोलस की खेती की शुरूआत कर सकते हैं।
ग्लेडियोलस के फूलों की मांग देश-विदेश तक होती है, किसान इसे आसानी से अपने आसपास के मार्केट में बेच सकता है। बाराबंकी जिले में कई किसान इसकी खेती करते हैं। देवां ब्लॉक का दफेदरपुरवा गाँव के प्रगतिशील किसान मोईनुद्दीन ने विदेशी ग्लेडियोलस फूलों की खेती शुरू की थी।
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पारंपरिक खेती की तुलना में अच्छे मुनाफे ने किसानों का ध्यान इस खेती की ओर खींचा। मोईनुद्दीन से सलाह और मार्गदर्शन लेकर गाँव के कुछ किसानों ने इसकी खेती में अपना हाथ आजमाया। स्टिक और बीजों से हुई अच्छी आय ने किसानों का हौसला बढ़ाया और देखते ही देखते पूरा गांव ग्लेडियोलस की खेती की ओर मुड़ गया। आज हालात यह है कि गाँव के अधिकतर किसान फूलों की खेती करने लगे हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र बलिया के बागवानी विशेषज्ञ डॉ. राजीव कुमार सिंह बताते हैं, “ये समय ग्लेडियोलस की खेती के लिए सही समय होता है, इसकी खेती में सबसे ज्यादा ध्यान खेत की मिट्टी पर देना चाहिए, क्योंकि जैसी मिट्टी होगी उतना ही बढ़िया उत्पादन होगा।”
ग्लेडियोलस की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मृदा जिसका पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच हो। साथ ही भूमि के जल निकास का उचित प्रबंध हो, सर्वोत्तम मानी जाती है। खुले स्थान जहां पर सूरज की रोशनी सुबह से शाम तक रहती हो, ऐसे स्थान पर ग्लेडियोलस की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय भारत सरकार की कृषि और प्रसंस्कृत खाद्दय उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल 1685 हजार टन खुले फूल और 472 हजार टन कट फ्लावर का उत्पादन हुआ। जिसमें से विश्वभर में 22518.58 मीट्रिक टन पुष्प कृषि उत्पाद का निर्यात करके 479.42 करोड़ रुपए अर्जित गए।
भारतीय फूलों की जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात में भारी मांग हैं। ऐसे में भारतीय फूलों की खेती (पुष्पकृषि) के बढ़ने की संभावना तेजी से बढ़ रही है। देश में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, तमिलनाडु, राजस्थान और पश्चिम बंगाल प्रमुख पुष्पकृषि केंद्र के रूप में उभरे हैं। वहां की राज्य सरकारों ने केन्द्र की मदद से अपने राज्य में फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही हैं।
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ग्लेडियोलस की उन्नतशील प्रजातियां
ग्लेडियोलस की लगभग दस हजार किस्में हैं लेकिन कुछ मुख्य प्रजातियों की खेती उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रो में होती है जैसे कि स्नो क्वीन, सिल्विया, एपिस ब्लासमें , बिग्स ग्लोरी, टेबलर, जैक्सन लिले, गोल्ड बिस्मिल, रोज स्पाइटर, कोशकार, लिंके न डे, पैट्रीसिया, जार्ज मैसूर, पेंटर पियर्स, किंग कीपर्स, किलोमिंगो, क्वीन, अग्नि, रेखा, पूसा सुहागिन, नजराना, आरती, अप्सरा, सोभा, सपना और पूनम आदि है।
लाल :- अमेरिकन ब्यूटी, ऑस्कर, नजराना, रेड ब्यूटी
गुलाबी :-पिंक फ्रैंडशिप, समर पर्ल
नारंगी:- रोज सुप्रीम
सफेद :- ह्वाइट फ्रैंडशिप, ह्वाइट प्रोस्पेरिटी, स्नो ह्वाइट, मीरां
पीला:- टोपाल, सपना, टीएस-14
बैंगनी:- हरमैजस्टी
भूमि की तैयारी और बुवाई
जिस खेत में ग्लेडियोलस की खेती करनी हो उसकी दो-तीन बार अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके लिए खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। क्योंकि इसकी जड़ें भूमि में अधिक गहराई तक नहीं जाती है। ग्लेडियोलस की खेती बल्बों द्वारा की जाती है। बुवाई करने का सही समय मध्य अक्टूबर से लेकर नवंबर तक रहता है। किस्मों को उनके फूल खिलने के समयानुसार अगेती, मध्य और पछेती के हिसाब से अलग-अलग क्यारियों में लगाना चाहिए।
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ग्लेडियोलस की प्रति हेक्टेयर बुवाई
एक हेक्टेयर भूमि कन्दों की रोपाई के लिए लगभग दो लाख के कन्दों की आवश्यकता पड़ती है यह मात्रा कन्दों की रोपाई की दूरी पर घट बढ़ सके ती है। कन्दों का शोधन बैविस्टीन के 0.02 प्रतिशत के घोल में आधा घंटा डुबोकर छाया में सुखाके र बुवाई या रोपाई करनी चाहिए।
कन्दों की रोपाई का उत्तम समय उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों सितम्बर से अक्टूबर तक होता है। कन्दों की रोपाई लाइनों में करनी चाहिए। शोधित कन्दों को लाइन से लाइन एवं पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर अर्थात 20 गुने 20 सेंटीमीटर की दूरी पर 5 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपाई केरनी चाहिए। लाइनो में रोपाई से निराई-गुड़ाई में आसानी रहती है और नुकसान भी कम होता है।
कुल चार-पांच निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। दो बार मिट्टी पौधों पर चढ़ानी चाहिये उसी में नाइट्रोजन का प्रयोग टॉप ड्रेसिंग के रूप में करना चाहिए। तीन पत्ती की स्टेज पर पहली बार व छह पत्ती की स्टेज पर दूसरी बार मिट्टी चढ़ानी चाहिए।
खेत तैयार करते समय सड़ी गोबर की खाद आख़िरी जुताई में मिला देना चाहिए। इसके साथ ही पोषके तत्वों की अधिक आवश्यकता होने के कारण 200 किलोग्राम नत्रजन, 400 किलोग्राम फास्फोरस तथा 200 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय बेसल ड्रेसिँग के रूप में देना चाहिए शेष नत्रजन की आधी मात्रा कन्दों की रोपाई एक माह बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।
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ग्लेडियोलस की सिंचाई
पहली सिंचाई घनकंदों के अंकुरण के बाद करनी चाहिए। इसके बाद सर्दियों में 10-12 दिनों के बाद और गर्मियों में पांच-छह दिन के अंतराल पर करनी चाहिए।
सिंचाई रोपाई के 10 से 15 दिन बाद जब कंद अंकुरित होने लगे तब पहली सिंचाई करनी चाहिए। फसल में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए तथा पानी सिंचाई का भरा भी नहीं रहना चाहिए। अन्य सिंचाई मौसमें के अनुसार आवश्यकतानुसार करनी चाहिए जब फसल खुदने से पहले पीली हो जाये तब सिंचाई नहीं करनी चाहिए।
फूलों की कटाई
घनकंदों की बुवाई के पश्चात अगेती किस्मों में लगभग 60-65 दिनों में, मध्य किस्मों 80-85 दिनों तथा पछेती किस्मों में 100-110 पुष्प उत्पादन शुरू हो जाता है। पुष्प दंडिकाओं को काटने का समय बाजार की दूरी पर निर्भर करता है।